अंतरराष्ट्रीय समुदाय से उम्मीद करते अफगान नागरिक
४ दिसम्बर २०११अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर जब जानकारी ढूंढने की बात आती है तो अफगान पुरुष अकसर मस्जिद के लिए रवाना होते हैं. इबादत के साथ साथ वहां देश के हालात पर ताजी जानकारी भी मिल जाती है. इनमें से एक युवक सय्यद शाह बताते हैं कि बॉन में हो रहा सम्मेलन उनके लिए कितना मायने रखता है, "दस साल पहले हुई बैठक में यह तय किया गया था कि अफगानिस्तान में विदेशी सैनिक भेजे जाएंगे. अब, जब उनकी अफगानिस्तान छोड़ने की बारी आई है, तो हम जानना चाहते हैं कि यहां आगे क्या होगा."
तालिबान की वापसी का डर
एक समय में कंदहार तालिबान का गढ़ हुआ करता था. अब इस बात का डर है कि विदेशी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी के बाद इस्लामी चरमपंथी इलाके को फिर से अपने नियंत्रण में कर सकते हैं. तालिबान और स्थानीय नेताओं के समर्थकों के बीच हिंसा होने का भी डर पैदा हो गया है. इस स्थिति में हर किसी के जबान पर एक ही सवाल हैः 2014 में अंतरराष्ट्रीय सैनिकों के अफगानिस्तान से लौटने के बाद हालात कितना बदलेंगे.
उत्तरी अफगान शहर मजार ए शरीफ में रह रहीं दो बच्चों की मां पलवशा को भी यही चिंता सता रही है. 28 वर्षीय पलवशा चाहती हैं कि जर्मनी के अफगानिस्तान बैठक के दौरान महिला अधिकारों पर भी ध्यान दिया जाएः "पिछले कुछ सालों में अफगान महिलाओं को जो कुछ अधिकार मिले हैं, बॉन बैठक में उनकी बलि नहीं चढ़ाई जानी चाहिए." मजार ए शरीफ में करीब 3,500 जर्मन सैनिक तैनात हैं.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय का वादा
अफगानिस्तान के पश्चिमी शहर हेरात के एक स्कूल के अध्यापक नसीर देहकान को अब भी तालिबान शासन और 90 की दशक में हुए गृहयुद्ध याद आते हैं. उस वक्त अफगानिस्तान में रूसी कब्जे के खिलाफ लड़ रहे मुजाहिदीन गुट देश के नियंत्रण के लिए आपस में लड़ रहे थे. काबुल सहित कई शहर इस लड़ाई की वजह से तबाह हो गए थे.
नसीर देहकान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के वादे याद हैं जिसमें पश्चिमी देशों ने अफगानिस्तान में शांति और लोकतंत्र स्थापित करने की बात कही थी. देहकान चाहते हैं कि पश्चिमी देश अपना वादा निभाएं, "बॉन में कई देशों के प्रभावशाली नेता आ रहे हैं. मैं उम्मीद करता हूं कि वे समझें कि अफगानिस्तान के लिए जो भी योजनाएं बनाई गई थीं, उनमें से काफी कुछ हासिल नहीं हुआ है."
अफगानिस्तान के नागरिक पिछले 30 सालों से जंग और गृहयुद्ध के माहौल में रह रहे हैं. देहकान कहते हैं, "हम बस इसलिए जिंदा हैं क्योंकि हम एक बेहतर भविष्य की उम्मीद कर रहे हैं." देहकान के मुताबिक, अफगानिस्तान में लोग यह नहीं चाहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय उनकी सारी समस्याएं सुलझाए. लेकिन अकेले, और बिना किसी अंतरराष्ट्रीय मदद के, अफगानिस्तान भविष्य का सामना करने के काबिल नहीं रहेगा.
रिपोर्टः रतबिल शामिल/एमजी
संपादनः महेश झा