अंशु जैन पर जर्मन प्रेस फिदा
२२ जुलाई २०११अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की भारत यात्रा का अहम लक्ष्य था दिल्ली और वॉशिंगटन के बीच रिश्तों में फिर से गर्माहट लाना. नॉएस डॉयचलांड अखबार कहता है, "नेताओं की पुरानी पीढ़ी इस बात को नहीं भूल सकती कि पाकिस्तान की सेना ने एक छोटी लेकिन सघन लड़ाई 1965 में भारत की सीमा पर छेड़ी थी और भारतीय सेना पर अमेरिकी टैंकों से हमला किया था. शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और पाकिस्तान का साथ हो गया. भारत उस समय गुटनिरपेक्षता अभियान का अगुआ था. उस समय मॉस्को से नजदीकी रिश्ते और संरक्षणवादी नीति ने भारत को अमेरिका की नजरों में दुश्मन बना दिया था."
आगे लिखा है कि भारत अमेरिका के बीत रिश्ते सबसे अच्छे 2008 में रहे. तात्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने परमाणु संधि को आगे बढ़ाया और परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों के समूह पर दबाव डाला कि वह परमाणु तकनीक और ईंधन भारत को देने की अनुमति दे. हालांकि दिल्ली ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं.
"गैरकानूनी परमाणु ताकत, भारत के लिए यह बहुत बड़ी सफलता थी. लेकिन यह खुशी जल्दी ही काफूर हो गई. परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह ने जल्द ही नया नियम बनाया कि उन देशों को परमाणु ईंधन की आपूर्ति नहीं की जाएगी जिन्होंने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. इसलिए दिल्ली ने अमेरिका से मांग की कि अमेरिका इस तरह की तकनीक बेचे जिस कारण ओबामा प्रशासन काफी नाजुक स्थिति में आ गया."
डॉयचे बैंक में भारतीय अंशु जैन को प्रमुख पद देने के फैसले को आधुनिक विचारधारा कहा जा रहा है. वेल्ट अम सोनटाग अखबार का कहना है कि आधुनिकता का यह संकेत जर्मनी और उसकी बैंक के लिए अच्छा है. लेकिन ऐसे बहुत हैं, जो जैन का विरोध करते हैं. उनके मुताबिक जैन राजनैतिक नहीं हैं, पैसे से उन्हें बहुत प्यार है और जर्मनी में उनकी कोई रुचि नहीं है.
"लेकिन इस सोच का सच्चाई से कुछ लेना देना नहीं है. अगर जैन पर कोई आरोप लगाए जा सकते हैं तो वह यह है कि उन्हें अपने करियर के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए पहले ही जर्मन सीख लेनी चाहिए थी. यह उनकी छोटी सी समस्या हो सकती है, जैन एक ऐसे व्यक्ति हैं जो बहुत तेज सोचते हैं और जल्दी सीखते हैं. जैन बिलकुल स्पष्ट हैं और फैसले कड़ाई से लेते हैं. 48 साल के बैंकर मानते हैं कि इसलिए वह अपने बहुत अच्छे दोस्तों को भी बाहर कर देते हैं जब वे एक ही गलती बार बार करते हैं. अंशु जैन का जीवन एकदम बेदाग है. कोई स्कैंडल उनके नाम पर नहीं है. पिछले 25 साल से उन्होंने एक ही महिला से शादी की है, दो बच्चे हैं और माता पिता हैं. उनके माता पिता ने अपने बेटे की पढ़ाई के लिए इतना कर्ज लिया कि उनके अस्तित्व का सवाल पैदा हो गया था. भारत में पैदा हुए अंशु पढ़ाई के लिए अमेरिका आए. और वह इतने सफल हैं कि उन्हें दुनिया कि किसी भी बड़े बैंक का प्रमुख बनाया जा सकता है. उन्हें आदर दिए जाने की जरूरत है, पूर्वाग्रह नहीं."
मुंबई में फिर धमाका हुआ. बुधवार को भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में तीन धमाके हुए. बर्लिन का दैनिक अखबार डी वेल्ट लिखता है.
"इन धमाकों का तरीका किसी आतंकी नेटवर्क अल कायदा या किसी पाकिस्तानी आतंकी गुट का संकेत नहीं देता बल्कि देश के किसी आतंकी नेटवर्क या लोकल माफिया का काम लगता है. क्योंकि धमाके का लक्ष्य कोई लक्जरी होटल नहीं था जिसमें अमीर या विदेशी लोग रह रहे हों, बल्कि मध्य और गरीब वर्ग के लोगों पर हमला हुआ. धमाके में मुख्य तौर पर अमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल किया गया था जो कि खाद बाने का सामान है और किसी भी बाजार में आसानी से मिल जाता है. इसकी तुलना में 2008 में हुए हमलों में आतंकियों ने बहुत आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल किया था."
नौए ज्यूरिषर साइटुंग लिखता है कि जो भारत तेजी से आगे जाते भारत को कमजोर करना चाहता हो उसे मुंबई में अफरा तफरी, गड़बड़ी और फैलानी पड़ेगी. लेकिन 2008 के हमलों की तरह इस बार आतंकी गड़बड़ी नहीं फैला सके.
"मुंबई ने खासकर एक बार फिर भारी धमाकों के बाद खड़े हो चलने की ताकत दिखाई. हालांकि सभी टीवी चैनलों पर यह घटना दिखाई गई और लोगों ने भी इस पर गुस्सा जाहिर किया लेकिन उस समय किसी को भी इसका डर नहीं था कि दो धर्मों के लोग भारत में भिड़ जाएंगे. अगर इसके जरिए आर्थिक राजधानी की धड़कन को निशाना बनाया जा रहा था तो यह सफल नहीं हुआ. इन दिनों में शेयर बाजार हमेशा लाभ में रहा और तब गिरा जब अमेरिका और यूरोपीय संघ में कर्ज खबरें आई."
संकलनः प्रिया एसेलबॉर्न/आभा एम
संपादनः ए जमाल