अधिकारों के लिए लड़तीं ब्राजील की महिलाएं
३१ अगस्त २०११ब्राजील के रैप गानों में अधिकतर महिलाओं को सेक्स ऑब्जेक्ट के रूप में दर्शाया जाता है. पुरुषों की गायकी वाले ऐसे गानों में अक्सर महिलाओं के लिए भद्दी भाषा भरी होती है. लेकिन अब वहां भी जमाना बदल रहा है, गानों का रूप बदल रहा है. कुएब्रा बाराको नाम की महिला ने पहली बार एक रैप गाना तैयार किया है जिसमें पुरुषों पर तंज कसा गया है. 'आय एम अगली बट, आय एम ट्रेंडी' नाम के इस गाने ने पूरे देश का ध्यान खींचा है.
पहली महिला राष्ट्रपति
सिर्फ गाने ही नहीं नौकरियों के लिहाज से भी ब्राजील में बदलाव देखा जा रहा है. महिलाएं अब ऐसी नौकरियां कर रही हैं जो अब तक केवल पुरुष ही किया करते थे. बस और टैक्सी चलाना, पुलिस विभाग में नौकरी, सुरक्षाकर्मी का काम या फिर कंस्ट्रक्शन साइटों और खेतों में मेहनत करना. महिलाएं अब ऐसे पेशों में भी अपनी योग्यता दर्शा रही हैं. महिलाओं के लिए सबसे बड़ी जीत यह है कि पहली बार एक महिला देश की राष्ट्रपति बनी हैं.
जनवरी में राष्ट्रपति बनने के बाद डिलमा रुसेफ ने अपने भाषण में, "मैं चुने जाने के बाद अपनी सबसे पहली जिम्मेदारी बता देना चाहती हूं, मैं ब्राजील की महिलाओं को सम्मान देना चाहती हूं ताकि लोग इस परिणाम को अनोखा नहीं, बल्कि सामान्य मानें." ओबामा के 'येस वी कैन' नारे को 'येस वुमेन कैन' में बदलते हुए उन्होंने कहा, "मैं चाहती हूं कि मां बाप अपनी बेटियों की आंखों में देख कर कहें हां, औरतें भी कर सकती हैं."
यौन उत्पीड़न के बढ़ते मामले
राष्ट्रपति पद संभालने के बाद से अब तक डिलमा 38 सदस्यों वाले मंत्रिमंडल में दस महिलाओं को चुन चुकी हैं. पूर्व राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा के आठ साल के कार्यकाल में इस से आधी महिलाएं ही मंत्रिमंडल का हिस्सा रहीं. साल 2000 में तो कैबिनेट में एक भी महिला नहीं थी.
महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को खत्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र समिति की सिल्विया पिमेंटल का मानना है कि डिलमा का राष्ट्रपति बनना महिलाओं की स्थिति में सुधार का संकेत नहीं है, "यह बात हर कोई जानता है कि वह (डिलमा) एक समर्थ महिला हैं, लेकिन अगर राष्ट्रपति लूला (दा सिल्वा) ने उन्हें नियुक्त नहीं किया होता तो वह आज इस पद पर नहीं होती. इसलिए न तो यह कोई क्रांति है और न ही विकास का पैमाना कि इस देश में महिलाएं उच्च पदों पर नियुक्त हो रही हैं."
एक स्थानीय संस्था फुंडाकाओ पैरसेयु अब्रामो के अनुसार हर साल कम से कम 20 लाख महिलाएं ब्राजील में यौन उत्पीड़न और घरेलू हिंसा का शिकार बनती हैं. साल 2009 में दो लाख से अधिक महिलाओं ने सरकार द्वारा चलाई गई हॉटलाइन पर फोन कर खुद के खिलाफ हो रही हिंसा के बारे में बताया.
मारिया दा पेन्हा बनी प्रेरणा
60 साल की मारिया दा पेन्हा ब्राजील की औरतों के लिए एक मिसाल हैं. मारिया ने अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और ब्राजील में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून बनाने के लिए सरकार से लड़ाई भी लड़ी. अपनी दुखद शादी के बारे में मारिया बताती हैं, "मुझे लगता था कि मेरी शादी हमेशा चलेगी, लेकिन 1983 में एक दिन जब मैं सो कर उठी तो एहसास हुआ कि मेरी पीठ में गोली है. मेरे पति ने मुझे गोली मारी थी." 80 के दशक में मारिया का पति रोज उन्हें पीटा करता और दो बार उसने उनकी जान लेने की भी कोशिश की. इस सब के कारण मारिया के निचले शरीर में लकवा हो गया. इसके बाद भी अदालत में उनके मामले की सुनवाई होते होते आठ साल लग गए. हालांकि उनका पति गुनाहगार साबित हुआ. लेकिन इसके बावजूद उसे रिहा कर दिया गया. मारिया इस फैसले से निराश तो हुईं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने एक किताब लिख कर अपने पति की क्रूरता को जगजाहिर किया. इस किताब ने पूरे देश में हलचल मचा दी.
इसके बाद मानवाधिकार की अदालत इंटर अमेरिकन कोर्ट ऑफ ह्यूमन राइट्स में मारिया के मामले की सुनवाई हुई. अदालत ने कहा कि क्योंकि ब्राजील इस मामले में न्याय नहीं दिला पाया, इसका मतलब यह है कि ब्राजील ने आरोपी को माफ कर दिया है. साथ ही यह भी कहा गया कि ब्राजील की सरकार ने मारिया के दुखों को बढ़ाया है. आखिरकार मारिया को न्याय मिल सका. अमेरिकी अदालत द्वारा हस्तक्षेप ने यह दिखा दिया कि पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय का यह कर्त्तव्य है कि दुनिया में हर जगह महिलाओं को न्याय दिलाया जा सके. 2006 में लूला दा सिल्वा ने 'मारिया दा पेन्हा लॉ' के नाम से एक नया कानून तैयार किया और सुनिश्चित किया कि घरेलू हिंसा के मामलों को पूरी संजीदगी से लिया जाएगा.
ब्राजील में ऐसी हजारों मारिया हैं जो खुद पर और अन्य महिलाओं पर हो रहे जुल्मों के खिलाफ लड़ रही हैं. उनकी लड़ाई मुश्किल जरूर है, लेकिन उनके पास उम्मीद है और एक दूसरे का सहारा भी.
रिपोर्ट: मिल्टन ब्रागाटी/ ईशा भाटिया
संपादन: ओ सिंह