अनाज संकट की आशंका
८ अगस्त २०१२जब अनाज की कीमतें बढ़ने लगती हैं तो यह भुखमरी संकट के पैदा होने का संकेत होता है. संयुक्त राष्ट्र खाद्य संगठन एफएओ के अनुसार पिछले दो महीने में गेहूं की कीमत 32 फीसदी बढ़कर 330 डॉलर प्रति टन हो गई है. अमेरिका, रूस, यूक्रेन और कजाकिस्तान में पड़े सूखे के कारण विश्व बाजार में अनाज की सप्लाई कम हुई है और दाम तेजी से बढ़े हैं.
जर्मन राहत संगठन वेल्ट हुंगर हिल्फे के मथियास मोगे का कहना है कि यह चिंताजनक है. बहुत से अफ्रीकी देशों को अनाज का आयात करना पड़ता है. मोगे के अनुसार यदि विदेशी मदद समय पर न पहुंचे तो पश्चिम अफ्रीका में पौने दो करोड़ से ज्यादा लोग भुखमरी की चपेट में होंगे. लेकिन स्थिति जितनी खराब है उतनी ही तेजी से सुधारी भी जा सकती है.
चार साल पहले पहली बार अनाज के बाजार में बवाल हो गया था. 2005 से 2008 के बीच गेहूं, चावल और मक्के की कीमत तिगुनी बढ़ गई. विश्व खाद्य संगठन के अनुसार उस समय 8 करोड़ लोग भुखमरी और गरीबी के शिकार हुए. उसके बाद हालत थोड़ी सुधरी, लेकिन कीमतें पुराने स्तर पर नहीं पहुंची. इस बीच दामों में फिर से उछाल दिख रहा है.
श्टुटगार्ट के होहेनहाइम यूनिवर्सिटी के कृषि अर्थशास्त्री डॉ डेटलेफ विरचो बाजार के मौजूदा रुझानों से चिंतित हैं. यूनिवर्सिटी में खाद्य सुरक्षा सेंटर के प्रमुख विरचो कहते हैं, "हमारी ओर कुछ 2008 से भी बुरा आ रहा है." अफ्रीका में गरीबों के लिए मुश्किल के दिन आ रहे हैं. वे अपनी लगभग पूरी कमाई खाने पीने पर लगा देते हैं. विरचो कहते हैं कि वे अपनी कमर और नहीं कस सकते हैं. मतलब यह कि वे और बचत नहीं कर सकते. यदि वे कम खाएंगे तो भुखमरी के शिकार हो जाएंगे.
यह अजीब विरोधाभास है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया भर में 92 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार हैं. और उनमें से आधे छोटे किसान हैं जो खुद अनाज उपजाते हैं. विरचो कहते हैं कि सैद्धांतिक रूप से अनाज की कीमत में वृद्धि से उन्हें फायदा होना चाहिए लेकिन हकीकत कुछ और है. बहुत से किसानों को फसल के तुरंत बाद अनाज बेचना पड़ता है जब कीमतें कम होती हैं. उनके पास अनाज जमा करने की सुविधा नहीं है और उन्हें दूसरी चीजें खरीदने के लिए पैसे की जरूरत होती है. सीजन के अंत में उन्हें फिर से अनाज खरीदना पड़ता है जब अनाजों की कीमतें ज्यादा होती हैं.
पिछले सालों में अनाज की कीमत तेजी से बढ़ी है और वे अनिश्चित हो गई हैं. इसकी कई वजहें हैं. एक वजह तो यह है कि मीट की खपत बढ़ी है जिसके कारण चारे की मांग बढ़ी है. इसके अलावा पशुपालन के लिए भी काफी जमीन की जरूरत होती है. पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों ने बायो डीजल की मांग बढ़ा दी है. बायो डीजल बनाने के लिए मक्के, सरसों और गन्ने का इस्तेमाल हो रहा है. अमेरिका तो मक्के की आधी फसल का इस्तेमाल बायोइथेनॉल बनाने के लिए करता है. खेतों का इस्तेमाल अनाज उगाने के लिए नहीं बल्कि ऊर्जा पैदा करने के लिए किया जा रहा है. विरचो कहते हैं कि यह निष्पक्ष बाजार नहीं है. वे बायो डीजल के लिए सब्सिडी समाप्त करने की मांग करती हैं.
दुनिया के अनाज उत्पादन का 5 से 15 फीसदी अंतरराष्ट्रीय बाजार में बिकता है. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, ब्राजील और चीन जैसे देश इस बाजार के बड़े खिलाड़ी हैं. चीन अपनी सवा अरब की आबादी के लिए बाहर से चावल नहीं खरीदता, लेकिन वहां खराब फसल होने पर हालात बदल सकते हैं. विरचो कहते हैं, "अगर चीन अपनी सिर्फ दस फीसदी आबादी के लिए चावल खरीदे तो विश्व बाजार खाली हो जाएगा."
एमजे/ओएसजे(ईपीडी)