अन्ना पर भड़कीं अरुंधति, अरुंधति पर लोग
२२ अगस्त २०११आम तौर पर सरकार को निशाना बनाने वाली अरुंधति रॉय ने इस बार सरकार का विरोध कर रहे अन्ना हजारे को निशाने पर लिया है. सात दिनों में जब अन्ना को सरकार और उसके मंत्रियों के अलावा हर किसी का समर्थन मिल रहा था, भारत की प्रमुख बुद्धिजीवी समझी जाने वाली अरुंधति ने उन्हें आड़े हाथों ले लिया.
अरुंधति ने द हिन्दू में अपने लंबे चौड़े लेख में अन्ना के आंदोलन की तुलना सीधे नक्सली मूवमेंट से कर दी, "भले ही उनका उद्देश्य अलग अलग हो लेकिन जन लोकपाल विधेयक और माओवादियों का उद्देश्य एक ही है, दोनों भारतीय सरकार को उखाड़ फेंकना चाहते हैं. एक गरीब और समाज के निचले तबके से आता है, जिसने हथियार उठा रखा है. दूसरा समाज का ऊंचा तबका है और शहरी इलाके से आता है, जिसके पास अभी अभी संत बना एक शख्स नेता के तौर पर मौजूद है."
अरुंधति रॉय खुद नक्सल आंदोलन से जुड़ी रही हैं और उनके नेतृत्व में भी कई धरने प्रदर्शन हो चुके हैं. हालांकि उन्हें कभी भी लोगों का उस तरह का साथ नहीं मिला है, जैसा कि इन दिनों दिल्ली के रामलीला ग्राउंड पर अनशन कर रहे अन्ना हजारे को मिल रहा है.
गांधी से तुलना बेकार
अन्ना हजारे की तुलना महात्मा गांधी से किए जाने पर भी अरुंधति रॉय नाराज हैं. उन्होंने लिखा है, "उनका तरीका भले ही गांधीवादी हो लेकिन उनकी मांग नहीं. गांधीजी तो सत्ता के विकेंद्रीकरण की बात करते थे, लोक जनपाल एक दमनकारी अभियान है. इसके पास जांच से लेकर सजा देने तक का अधिकार होगा, बस अपनी जेलें नहीं होंगी."
लेकिन अरुंधति रॉय के इस लेख के बाद लोगों ने जम कर उन पर भड़ास निकाली है. द हिन्दू के ऑनलाइन संस्करण में इस लेख को छापा गया है, जिस पर आम तौर पर लोगों ने अरुंधति रॉय के खिलाफ प्रतिक्रिया दी है. कई कमेंट में अरुंधति रॉय को साजिशी जेहन वाला बताया गया है. लेख के नीचे एक पाठक का पोस्ट है, "लेखक का नजरिया पक्षपाती है. उनकी कुछ बातों में साजिश की बू आ रही है. यह समझना बाकी है कि यह जानबूझ कर है या ऐसा हो गया है. मैं न तो अरुंधति का विरोधी हूं और न ही अन्ना का समर्थक लेकिन अन्ना सही बात के लिए लड़ रहे हैं. इस लेख में लेखक के नजरिए से अन्ना का आंदोलन कहीं ज्यादा स्वच्छ है."
अन्ना पर निजी हमला
कश्मीर के मुद्दे पर सरकार को आए दिन घेरने वाली अरुंधति रॉय पर देशद्रोह जैसे आरोप भी लग चुके हैं. उन्होंने अपने लेख में अन्ना पर निजी आरोप लगाया है, "उन्होंने राज ठाकरे के मराठी मानुष वाले पागलपन का समर्थन किया है और 2002 में मुस्लिमों के नरसंहार के आरोपी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भी तारीफ की है." अरुंधति ने लिखा है कि मणिपुर की इरोम शर्मिला 10 साल से अनशन कर रही है. कुडानकुलम गांव के लोग रिले भूख हड़ताल में लगे हैं. लेकिन उनकी ऐसी चर्चा नहीं हो रही है, जैसी अन्ना की. "वह हैं कौन. हमने तो उन्हें किसी अहम मुद्दे पर बोलते हुए नहीं सुना है. उनके गांव में किसान आत्महत्या कर रहे हैं, उस पर भी नही."
लेकिन इस मुद्दे पर भी अरुंधति को समर्थन नहीं मिल पाया है. उनके लेख के नीचे एक कमेंट में कहा गया, "यह लेख अन्ना पर निजी हमला है. अन्ना का आंदोलन उनकी शक्ति या कमजोरी के बारे में नहीं है, बल्कि यह भारत के लोगों और उनके लोकतांत्रिक अधिकारों से जुड़ा है. वे तो लोकतंत्र को मजबूत करना चाहते हैं."
अरुंधति रॉय ने अन्ना हजारे के पूरे आंदोलन को मीडिया का तमाशा बना कर पेश किया है. उन्होंने लिखा है, "अन्ना के आंदोलन में सब कुछ उधार का है. आरक्षण विरोधी आंदोलन का, विश्व कप जीतने पर हुई परेड का और परमाणु परीक्षण के बाद के जश्न का. मीडिया हमें बता रही है कि अगर हमने अनशन का साथ नहीं दिया, तो हम सही भारतीय नहीं हैं."
मीडिया पर सवाल
उन्होंने लिखा है कि मीडिया किस तरह से इस आंदोलन को बढ़ा चढ़ा कर पेश कर रहा है. "सिर्फ वही लोग असली हैं, जो इस आंदोलन में हैं. हो सकता है कि उनकी संख्या एकाध लाख के आस पास हो. लेकिन टीवी चैनल वाले उन्हें कई गुना बढ़ा दे रहे हैं. वैसे ही, जैसे ईसा मसीह भूखों के लिए मछलियों और ब्रेड के टुकड़ों को कई गुना कर देते थे.."
हालांकि इस मुद्दे पर भी अरुंधति रॉय को लोगों का समर्थन नहीं मिला और आम तौर पर पाठकों ने उनके खिलाफ प्रतिक्रिया दी है.
अरुंधति ने टीम अन्ना को मिल रहे समर्थन के साथ साथ उसे मिल रहे पैसों पर भी सवाल उठाया है. उन्होंने लिखा है, "टीम अन्ना के प्रमुख सदस्यों अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसौदिया की संस्था को हाल ही में फोर्ड ने चार लाख डॉलर (लगभग पौने दो करोड़ रुपये) दिए हैं."
रिपोर्टः अनवर जे अशरफ
संपादनः ए कुमार