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अपने खिलाफ जनहित याचिका पर भड़के सिब्बल

९ जुलाई २०११

भारतीय टेलीकॉम मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा है कि जनहित याचिकाएं आपसी रंजिश निकालने के लिए इस्तेमाल नहीं होनी चाहिए. सिब्बल पर अनिल अंबानी की कंपनी को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए एक एनजीओ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा.

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सिब्बल की नाराजगीतस्वीर: AP

सिब्बल ने अपने ऊपर लगे आरोपों को बेबुनियाद बताया है और कहा है कि ये सब उनकी छवि को खराब करने के लिए किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि अगर यही सिलसिला जारी रहा तो कोई मंत्री कड़े फैसले नहीं ले पाएगा. सिब्बल ने एक प्रेस कांफ्रेस में कहा कि कुछ समय के लिए सर्विस रोकने के लिए अनिल अंबानी की रिलायंस कम्युनिकेशन पर जो 5 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया, वह यूएसओ (यूनिवर्सल सर्विस ऑबलिगेशन) फंड और निजी ऑपरेटर के बीच हुए समझौते के अनुसार था. सिब्बल ने गैर सरकारी संगठन के इस दावे पर भी सवाल उठाए कि रिलायंस कम्युनिकेशन से 650 करोड़ रुपये लिए जाने चाहिए थे.

परेशान दिख रहे सिब्बल ने कहा, "एक गैर सरकारी संगठन की ओर से दायर याचिका पर जो कुछ हो रहा है, मैं उससे बहुत आहत हूं. सुप्रीम कोर्ट में दायर इस याचिका में कहा गया है कि टेलीकॉम मंत्री ने अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करते हुए रिलायंस टेलीकॉम पर लगने वाले जुर्माने को घटा कर 5 करोड़ रुपये कर दिया."

सिब्बल ने इन आरोपों को भी गलत बताया कि उन्होंने अपने मंत्रालय के अधिकारियों की अनदेखी की. उन्होंने कहा कि ऐसे तो सरकार नहीं चल सकती कि कोई मंत्री इसलिए कोई फैसला नहीं ले सकता कि उस पर बेइमान और किसी प्राइवेट कंपनी की तरफदारी करने का ठप्पा लग सकता है. उनका कहना है कि जनहित याचिकाओं का गलत इस्तेमाल हो रहा है. उनका मकसद आम जनता के हितों की सेवा करना है लेकिन उन्हें आपसी रंजिश निकालने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.

सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि सिब्बल ने अनिल अंबानी की कंपनी पर लगने वाले 650 करोड़ रुपये के जुर्माने को घटा कर 5 करोड़ कर दिया. एनजीओ की तरफ से यह याचिका जाने माने वकील प्रशांत भूषण ने दायर की है जो संयुक्त लोकपाल विधेयक मसौदा समिति के सदस्य रहे हैं. बिल के मसौदे पर सरकार और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों के बीच एक दूसरे खिलाफ खूब बयानबाजी होती रही है.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः ओ सिंह

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