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अपने दिल को पत्थर बना कर रखना

३० अगस्त २०१०

डॉयचे वेले हिंदी की वेबसाइट पर श्रोता क्या सोचते हैं, कार्यक्रम कैसे लगे, इन सभी पर आपके संदेश हमें लगातार मिल रहे हैं, उन संदेशों को हम आप सभी से भी बांटना चाहते हैं, आईये जाने क्या लिखते हैं हमारे श्रोता..

https://p.dw.com/p/Oza3
तस्वीर: Picture-Alliance /dpa

कार्यक्रम अंतरा में मदर टेरेसा के 100वे जन्मदिवस के अवसर पर प्रसारित विशेष कार्यक्रम सुनकर अच्छा लगा. कार्यक्रम सुनकर एक बार फिर से पुरानी यादें ताज़ा हो गयी. उन्होंने अपना पूरा जीवन दूसरों के लिये अर्पित कर दिया था. उन्होंने अपने व्यवहार से सभी को प्रभावित किया. व्यवहार एक आईना होता है जो मनुष्य के व्यक्तित्व को प्रतिफलित करता हैं. उन्होंने जो प्रेम दूसरो के प्रति दिखाया, वह संसार के अंत तक याद किया जाएगा.

जीउराज बसुमतारी, सोनितपुर (असम)

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डॉयचे वेले की वेबसाइट भ्रमण करने के कारण मुझे बर्लिन में शाहरुख़ खान की फिल्म की शूटिंग होने की जानकारी मिली. काफी सुखद लगा, शाहरुख़ जर्मनी में पहले से ही काफी लोकप्रिय है और इस शूटिंग के बाद और भी प्रसिद्ध हो जायेंगे. इस शूटिंग से भारत जर्मन मित्रता को भरपूर बल मिलेगा तथा हम श्रोता भी फिल्म के माध्यम से जर्मनी को नज़दीक से देखेंगे और जानेंगे.

Berlinale 2010
तस्वीर: DW

इन्टरनेट पर लाइफ लाइन कार्यक्रम सुना. कोहरे से पानी निकालने के बारे में प्रस्तुत रिपोर्ट काफी विस्मयकारी लगी. आज विज्ञान इतना आगे निकल चुका है कि धरती पर कुछ भी असंभव नहीं है. हर प्राकृतिक समस्या का मानव कोई ना कोई समाधान निकाल ही लेता है. किसी ने सच ही कहा है कि मानव जब जोर लगता है तो पत्थर भी पानी हो जाता है. धन्यवाद डॉयचे वेले को रोचक जानकारी उपलब्ध करने के लिए.

अतुल कुमार, राजबाग रेडियो लिस्नर्स क्लब, सीतामढ़ी (बिहार)

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अंतरा बार-बार सुनने का दिल करता है. काफी दिनों से अपने मोबाइल पर आपकी वेब साइट का लुत्फ उठा रहा हूं. किन शब्दों में सराहना करुं...कुछ कह नहीं सकता.

आबिद अली मंसूरी, ईमेल से

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आपके प्रोग्राम में कॉमनवेल्थ गेमस पर अलग -अलग प्रकार की दो बातें सुनी. भारत में इस आयोजन पर कई सवाल उठ रहे हैं.एक तरफ देश की प्रतिष्ठा है और दूसरी और भ्रष्टाचार की बदबू. मेरे हिसाब से इस आयोजन पर देशवासियों को बिल्कुल बताना चाहिए कि देश को और नागरिकों को क्या लाभ हो रहा है. 1982 में हमने बहुत ही अच्छी तरह से एशियन गेम्स का सफल आयोजन किया. इसके बाद इतनी बड़ी कोई प्रतोयोगिता भारत में नहीं हुई. भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा और ताकत के लिए भी यह आयोजन जरुरी लग रहा है. मीडिया को सही रूप से इस बात को लोगो के सामने रखना चाहिए. अगर इन खेलों के आयोजन में रूकावट आयेगी तो भारत अंतराष्ट्रीय स्तर पर कभी भी नही आ पाएगा. इससे देश को जो आमदनी होगी उसे सही रूप से बांटना जरूरी है. आम आदमी के लिए और खास कर युवाओं के लिए खेलों से क्या लाभ हो रहा है यह बहुत ही आवश्यक है. सभी भारतीय इस बात को स्वीकार करें कि कॉमनवेल्थ गेम्स भारत को सभी तरह से तरक्की कराएगा.

Das Maskottchen der Commonwealth Games 2010
तस्वीर: UNI

नानजी जानजानी, भुज-कच्छ, गुजरात

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खोज कार्यक्रम में मेंढक के अण्डों से बनाने वाले सेन्सर्स की अनोखी जानकारी और समुंद्र में सिर्फ 12ज्ञ मछली होने के बारे में रिपोर्ट और साथ में बाकि समुद्री जीवों की गिनती के बारे में जानने को मिला. जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.


संदीप जावले, मार्कोनी डी एक्स क्लब, परली वैजनाथ (महाराष्ट्र)
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चमड़ी के धंधे से होने वाली मोटी कमाई का श्रेय वैसे तो दुनिया में होने वाले सभी तरह के बड़े आयोजनों में होता है पर विश्व सितारे खेलो में तो यह व्यवसाय चरम पर रहता है क्योंकि ये आयोजन लम्बे समय तक चलता है और दुनिया के खेल प्रेमी इसमें शिरकत करते है. वैसे तो भारत में यह धंधा प्रतिबंधित है पर सेक्स वर्कर छिप छिप्पे यह काम करते ही है. जमाना बदल गया है लोग भी इसमें काफी दिलचस्पी लेते है. दिल्ली में कॉमनवेल्थ खेल के दौरान सेक्स वर्कर की गतिविधियां बढ़ गई हैं और देश विदेश के सेक्स वर्कर दिल्ली में डेरा डालना शुरू कर दिए हैं. भारत सरकार कुछ जगहों पर कंडोम वेंडिंग मशीन लगा रही है यानि सरकार परोक्ष रूप से इस धंधे को करने की इजाजत दे रही है. यह सरकार की मज़बूरी है,नहीं तो इस खेल के दौरान दुनिया से आने वाले पर्यटकों की संख्या में भरी कमी आ सकती है. अंततः सरकार इस चमड़े के धंधे को अप्रत्यक्ष सहमती देकर सरकार एवं सेक्स वर्कर दोनों की मोटी कमाई का रास्ता साफ कर रही है. अशोकजी आपका चिंतन स्वाभाविक एवं एकदम सही है. पर धंधा तो धंधा है, चाहे यह धंधा सरकार करे या सेक्स वर्कर, क्या फर्क पड़ता है, पैसा तो सब को कमाना है, अतः समझौता करना पड़ रहा है.

एस. बी. शर्मा, जमशेदपुर (झारखण्ड)

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डॉयचे वेले हिन्दी सेवा की वेबसाइट पर आर्टिकल पढ़ने को मिला मशहूर पत्रिका टाइम के ताज़ा सर्वे के मुताबिक देश के 24 फीसदी लोग मानते हैं कि ओबामा मुस्लिम हैं.उनके सलाहकारों ने इसे विरोधियों का दुष्प्रचार कहा. इतनी सफ़ाई दी गईं कि लगने लगा कि जैसे ओबामा का बहुत बड़ा अपमान हुआ हो और यह सब उसकी भरपाई के लिए किया जा रहा है.ओबामा ने अभी पिछले हफ़्ते ही इफ़्तार की दावत दी और वहां ग्राउंड ज़ीरो के पास बनने वाली मस्जिद का खुल कर समर्थन किया. उन्हें एक क्षण को भी नहीं लगा कि इससे उन पर मुसलमानों का हिमायती होने का ठप्पा लग सकता है. लेकिन इस सर्वेक्षण ने जिस तरह अमरीकी अधिकारियों को चौकन्ना किया वह शायद आमतौर पर नहीं होता. दुनिया के सबसे ताक़तवर व्यक्ति बराक ओबामा मुसलमान नहीं हैं. अगर अमेरिका में हुए एक सर्वेक्षण में शामिल हर पांच में से एक व्यक्ति ऐसा मानता है तो यह उसकी एक बहुत बड़ी भूल है. इतनी सफाई दी जा रही है जैसे मुसलमान होना कोई अपराध है और ओबामा पर किसी अपराध का आरोप लगाया गया है. इस्लाम को हिंसा कि प्रेणना देना वाला प्रचारित किया जा रहा है. इससे लोगों के मन में इस्लाम कि नकारात्मक छवि बन रही है. धर्म का उद्देश्य विध्वंश बिल्कुल ही नहीं होना चाहिए. धर्म जोड़ता है न कि लोगों को तोड़ता है. आप जिस देश में रहें, उसके प्रति देशभक्ति दिखाएं, न कि धर्म के आधार पर फूट की बुनियाद बनें.

रवि शंकर तिवारी, छात्र टीवी पत्रकारिता, जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी (नई दिल्ली)

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अब सुंदर शब्दों में एक लिखी कविता पढ़ते हैं. लिखी है हमारे श्रोता रवि सेठिया ने , जिला रतलाम, मध्य प्रदेश से, जिसका शार्षक हैः

अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना

अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना ,
हर चोट के निशान को सजा कर रखना.
उड़ना हवा में खुल कर लेकिन ,
अपने कदमों को ज़मी से मिला कर रखना.
छाव में माना सुकून मिलता है बहुत ,
फिर भी धूप में खुद को जला कर रखना.
उम्रभर साथ तो रिश्ते नहीं रहते हैं ,
यादों में हर किसी को जिन्दा रखना.
वक्त के साथ चलते-चलते , खो ना जाना ,
खुद को दुनिया से छिपा कर रखना.
रातभर जाग कर रोना चाहो जो कभी ,
अपने चेहरे को दोस्तों से छिपा कर रखना.
तुफानो को कब तक रोक सकोगे तुम ,
कश्ती और माझी का याद पता रखना.
हर कहीं जिन्दगी एक सी ही होती हैं ,
अपने ज़ख्म अपनो को बता कर रखना.
मन्दिरो में ही मिलते हो भगवान जरुरी नहीं ,
हर किसी से रिश्ता बना कर रखना.


संकलनः विनोद चढ्डा
संपादनः आभा एम