अफगानिस्तान को ले कर चिंतित है भारत
३१ मई २०१२भारत का कहना है कि उसे इस बात का डर है कि नाटो सेनाओं के देश से चले जाने के बाद अफगानिस्तान में एक बार फिर तालिबान सक्रिय हो जाएगा. 21 मई को शिकागो में हुए नाटो सम्मेलन में इस बात पर चर्चा हुई कि 2014 के अंत तक अफगानिस्तान से नाटो की सेनाओं को वापस बुला लिया जाए. अफगानिस्तान में पिछले दस साल से पश्चिमी देश तालिबान के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं. भारत अफगानिस्तान के सबसे करीबी समर्थकों में से है. देश में विकास के लिए भारत अफगानिस्तान को पिछले दस सालों में दो अरब डॉलर की मदद दे चुका है.
भारत और अमेरिका के बीच अगले महीने होने वाली सालाना उच्च स्तरीय बैठक से पहले वॉशिंगटन में भारत की राजदूत निरूपमा राव ने कहा कि दोनों देश मिल कर लोकतांत्रिक और खुशहाल अफगानिस्तान के लिए काम कर रहे हैं. अफगानिस्तान के मुद्दे पर अमेरिका में बात करते हुए उन्होंने कहा, "दस साल के लम्बे युद्ध के बाद इस विवाद को खत्म करने की इच्छा को हम समझते हैं. लेकिन साथ ही हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि एक दशक तक किए गए प्रयास बर्बाद ना हो जाएं." भारत के डर को बयान करते हुए उन्होंने कहा, "अफगानिस्तान के पिछले कुछ दशकों के इतिहास को और वहां चरमपंथ की समस्या को देखते हुए देश के भविष्य की चिंता होना स्वाभाविक है."
पाकिस्तान से डर
अफगानिस्तान को ले कर भारत और पाकिस्तान में भी मतभेद बने रहे हैं. भारत की अफगानिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश पाकिस्तान के लिए नाराजगी का विषय बनी रही है. 9/11 के हमलों के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ लड़ने में पाकिस्तान का सहयोग लिया. लेकिन ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान में मारे जाने के बाद से दोनों देशों के संबंध खराब होने लगे. पिछले साल नाटो हमलों में पाकिस्तानी सैनिकों की मौत के बाद से पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में सहायता सामग्री ले जाने वाले नाटो के ट्रकों के लिए सीमा बंद कर दी.
वॉशिंगटन के ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूट पहुंचे बीजेपी के यशवंत सिन्हा ने भी कड़े शब्दों में भारत की चिंता को बयान किया, "मुझे इस बात का डर है कि पाकिस्तान भूराजनैतिक कारणों से तालिबान को अफगानिस्तान पर कब्जा करने के लिए प्रोत्साहित करेगा." सिन्हा ने कहा कि अफगानिस्तान के पास ना ही सेना है और ना ही तालिबान का सामना करने के लिए बल. "नाटो को तब तक अफगानिस्तान में रहना होगा जब तक यह सुनिश्चित नहीं हो जाता कि अफगान सैनिक तालिबान के खतरे का सामना करने में सक्षम हैं."
अमेरिका में किए गए कई सर्वेक्षण दिखाते हैं कि अधिकतर अमेरिकी अफगानिस्तान में चल रही जंग को खत्म करना चाहते हैं. कई सांसदों का मानना है कि हिंसा से तालिबान को काबू में नहीं लाया जा सकता. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा समेत पश्चिमी देशों ने नाटो सेनाओं के अफगानिस्तान छोड़ने से पहले अफगान सेनाओं को पूरी ट्रेनिंग देने का समर्थन किया हैं.
आईबी/एमजे (एएफपी, पीटीआई)