अब खा सकेंगे खीरे टमाटर
१० जून २०११जर्मनी में रॉबर्ट कॉख इंस्टिट्यूट के बीमारी नियंत्रण केंद्र और आपातस्थिति का आंकलन करने वाले सरकारी विभाग ने शुक्रवार को प्रेस कांफ्रेंस में यह बात कही. साथ ही चेतावनी दी है कि खतरा अभी भी बना हुआ है. ई कोलाई संक्रमण से अब तक तीस मौतें हो चुकी हैं और तीन हजार से अधिक लोग बीमार हैं.
अब तक माना जा रहा था कि ई कोलाई बैक्टीरिया का संक्रमण खीरे और टमाटर खाने से हो रहा है. लेकिन इस शक को अब खारिज कर दिया गया है. लोअर सेक्सनी में एक सरकारी अधिकारी ने कहा, "खीरे और टमाटरों पर किए गए हजारों टेस्ट नकारात्मक रहे हैं. लेकिन संक्रमण के अधिकतर मामले खेतों में काम करने या उनके आस पास रहने वाले लोगों में होना कुछ तो संकेत देता है."
अनाज का अंकुर मुसीबत की जड़
रॉबर्ट कॉख इंस्टिट्यूट के निदेशक राइनहार्ड बुर्गर ने कहा, "अंकुरित अनाज खाने वाले लोगों में ईहेक का संक्रमण नौ गुना अधिक पाया गया है." बुर्गर के अनुसार रेस्त्रां में खाने खाने के बाद बीमार पड़े सौ लोगों पर शोध किया गया और उसके बाद वे इस नतीजे पर पहुंचे हैं की ई कोलाई की असली जड़ अनाज का अंकुर ही है. बुर्गर ने कहा कि संक्रमण की शुरुआत लोअर सेक्सनी के एक खेत से हुई.
जब उनसे यह पूछा गया कि संक्रमण का स्रोत पता करने में इतना समय क्यों लग रहा है तो उन्होंने कहा, "ऐसा पहली बार नहीं हो रहा कि किसी बीमारी की वजह का पता ना लग पा रहा हो." बुर्गर ने बताया कि ईहेक के मामलों में कमी देखी जा रही है. जर्मन सरकार ने 25 मई को खीरे और टमाटरों पर चेतावनी जारी की थी. इस के बाद से मामलों में कमी देखी गई है. इस बारे में बुर्गर ने कहा, "अभी हमें यह पता लगाने में थोड़ा समय लगेगा कि क्या चेतावनी जारी होने और मामले के कम होने में कोई संबंध है या नहीं."
टनों खीरे बर्बाद
मार्के की बात यह है कि पिछले हफ्तों में जर्मनी में सैंकड़ों टन खीरे और टमाटर फेंके जा चुके हैं. इस के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि खीरे और टमाटरों से ई कोलाई संक्रमण का कोई खतरा नहीं है. यानी जो सब्जियां फेंकी गई वे खाने लायक थी. लेकिन केवल शक के आधार पर उन्हें फेंक दिया गया. जिन देशों में खाद्य सामग्री का जरूरत से अधिक उत्पादन होता है वहां सरकारें इन्हें नष्ट करते समय यह नहीं सोचतीं कि दुनिया में कुछ ऐसे भी देश हैं जहां लोग भूख के कारण मर जाते हैं.
खाने पीने के सामान की बर्बादी का यह पहला मामला नहीं है. इस से पहले पिछले साल अंडों में डायॉक्सीन मिलने के मामले में भी जर्मनी में लाखों अंडों को फेंक दिया गया था. उस समय सरकार ने कहा था कि यह पता लगाना मुश्किल है कि किन अंडों में डायॉक्सीन है और किन में नहीं. इसलिए एहतियात के तौर पर सभी अंडे नष्ट कर दिए गए थे. बर्ड फ्लू के समय भी लाखों मुर्गियों को दफना दिया गया था.
यह बात सही है सरकार अपने देशवासियों की सेहत के बारे में सोचे, लेकिन सावधानी और लापरवाही के बीच फर्क करना भी सरकार की ही जिम्मेदारी है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ईशा भाटिया
संपादन: उभ