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अमेरिकी चुनाव और फुटबॉल

७ अक्टूबर २०१२

अगर लगता हो कि अमेरिकी चुनाव सिर्फ अर्थव्यवस्था और विदेश नीति पर लड़ी जाती है, तो ठहरिए. चुनाव के वक्त वहां के फुटबॉल मैच भी मुद्दे बन सकते हैं और यह भी कि समुद्र में कहीं शार्कों का आतंक बढ़ा तो नहीं.

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तस्वीर: AP

रिसर्च में पता चला है कि अमेरिकी वोटर उतने स्मार्ट नहीं, जितने सोचे जाते हैं. वे चुनाव वाले दिन कैसा महसूस कर रहे हैं, यह उम्मीदवारों की किस्मत के लिए बहुत अहम होता है. कई बार वे ऐसी चीजों पर तुनक जाते हैं, जो किसी भी उम्मीदवार के हाथ में नहीं होती.

वोटरों को आम तौर पर आखिरी छह महीने की अर्थव्यवस्था के बारे में याद रहता है, चार साल की बातें वे भूल चुके होते हैं. उम्मीदवारों के राजनीतिक नजरिए की बात तो छोड़िए, उन्हें राजनीतिक मुद्दों का भी पता नहीं होता. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के राजनीति शास्त्री गैबरिएल लेन्ज का कहना है, "आप सोचते हैं कि हर किसी के दिमाग में एक आदर्श दुनिया बसती है, जहां वे सोचते हैं कि उम्मीदवार की नीति क्या है और इस आधार पर वे अपने उम्मीदवार को वोट देते हैं. लेकिन आपको पता होना चाहिए कि ऐसी कोई दुनिया नहीं होती है."

कैसे कैसे सर्वे

पीऊ रिसर्च ने हाल में जो सर्वे किए, उसमें चौंकाने वाले नतीजे आए. वोटरों को मिट रोमनी और ओबामा की नीतियों के बारे में ज्यादा पता नहीं था. पिछले साल जनवरी में यूगॉव ने जो सर्वे किया, उसमें एक तिहाई लोगों ने कहा कि ओबामा अमेरिका से बाहर पैदा हुए हैं और इस आधार पर उन्हें चुनाव लड़ने का अधिकार ही नहीं है. साजिशकर्ता और स्पिन डॉक्टर कभी कभी ऐसी बातें छोड़ देते हैं और लोग उसके आधार पर अपने विचार बनाना शुरू कर देते हैं. हालांकि ओबामा ने इससे काफी पहले ही अपना जन्म प्रमाणपत्र सार्वजनिक कर दिया था. जॉर्ज मैसन यूनिवर्सिटी के कानून के प्रोफेसर इल्या सोमिन का कहना है कि लोगों में जानकारी की कमी है, जिसकी वजह से अजीब स्थिति पैदा हो जाती है.

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तस्वीर: Getty Images

फुटबॉल का कीड़ा

रिसर्चरों के एक ग्रुप का मानना है कि मौजूदा सीनेटर और गवर्नरों को कम से कम 1.6 प्रतिशत वोट तब ज्यादा मिलता है, जब स्थानीय कॉलेज की टीम फुटबॉल (अमेरिकी फुटबॉल) मुकाबले में अच्छा प्रदर्शन करती है. अगर स्थानीय टीम के प्रशंसकों की संख्या ज्यादा है, तब तो स्थिति और भी नाटकीय हो जाती है. लोयोला मेरीमाउंट यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र प्रोफेसर एंड्रयू हीले का कहना है, "फुटबॉल का मामला बेहद संगीन होता है. यह जानना अच्छा लगता है कि वोटर कैसे सोचते हैं."

शार्क का मामला

प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में बार्टेल्स और क्रिस्टोफ आखेन ने एक रिसर्च किया, जिसके नतीजे 2004 में सामने आए. इसमें दावा किया गया कि 1916 में शार्कों का हमला बढ़ गया था और वोटरों ने इस वजह से उस वक्त के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन को सजा दी और उन्हें हरा दिया.

1912 में उन्हें जिन तटीय शहरों में वोट मिले थे, 1916 में उससे बहुत कम वोट मिले. इस दौरान शार्कों के हमले बढ़ गए थे और इन शहरों में सैलानियों की संख्या घटती जा रही थी. बार्टेल्स और क्रिस्टोफ ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, "शार्क के हमले प्राकृतिक आपदा हैं और इस पर किसी इंसान का कोई वश नहीं चलता. लेकिन वोटरों ने इस मामले में विल्सन को सजा दी."

इन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वोटरों को जितना अकलमंद समझा जाता है, वे नहीं होते. उन्होंने लिखा, "लोकतंत्र में फैसले ऐसे लोग करते हैं, जिन्में ज्यादा मानवीय भावनाएं होती हैं. लेखक सोचते हैं कि उनमें आत्मशासन का गुण होता है, जो गलत है."

एजेए/एमजी (रॉयटर्स)

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