'अमेरिकी दखल एशिया की शांति के लिए खतरा'
६ जून २०१२डॉयचे वेलेः अमेरिका के रक्षा मंत्री लियोन पैनेटा इस समय भारत की यात्रा पर हैं. उनकी यात्रा का क्या मतलब है दोनों देशों के लिए?
उदय भास्करः भारत और अमेरिका के बीच सामारिक भागीदारी का एक समझौता हुआ है. 2008 में भारत और अमेरिका के बीच परमाणु मसले पर मतभेद हुआ था उसको अमेरिका ने दूर करने की कोशिश की है. अमेरिका भारत की अलग स्थिति को स्वीकार किया है तो इसके बाद दोनों देशों के बीच जो खींचतान और तनाव था उसके बारे में अमेरिका ने पहल की है. ओबामा प्रशासन में ये पहली बार है कि उनका कोई रक्षा मंत्री भारत की यात्रा कर रहे हैं. भारत और अमेरिका के बीच कई सारे ऐसे मुद्दे हैं जिन पर बातचीत की सख्त जरूरत है. इसमें 2014 के बाद अफगानिस्तान का क्या भविष्य होगा ये भी शामिल है. एशिया में भारत और चीन के बीच जो तनाव है वो किस प्रकार से हल किया जा सकता है. और अभी जो इस शताब्दी में जो सामरिक ढांचा बन रहा है उस पर भी ध्यान देना होगा. भारत और अमेरिका के बीच कई सारे बिंदुओ पर असहमति है खासकर ईरान और पाकिस्तान को लेकर. लेकिन बातचीत बहुत जरूरी है. दोनों देशों के बीच बड़े स्तर पर संबंध जरूरी है. इसलिए मैं कहूंगा कि पैनेटा की यात्रा बहुत महत्व की है.
डॉयचे वेलेः हाल फिलहाल भारत और अमेरिका के नेता एक दूसरे देश की यात्रा कर रहे हैं. दूसरे स्तर के कूटनीतिक प्रयास भी हो रहे हैं. भारत के विदेश मंत्री भी अमेरिका जाने वाले हैं. गर्मजोशी को कैसे देखते हैं?
उदय भास्करः देखिए, आजकल देशों के बीच उच्च स्तरीय बातचीत या रणनीतिक साझेदारी के सिलसिले में एक दूसरे के यहां आना जाना ये एक तरह की परंपरा बन गई है. अमेरिका और उनके सहयोगी देशों के बीच इस तरह की मुलाकातें होती रही हैं. भारत के लिए ये पहली बार है कि अमेरिका के रक्षा मंत्री यहां आ रहे है. इससे पहले हिलेरी क्लिंटन आई थीं लेकिन वो विदेश मंत्री हैं अमेरिका की. भारत ने पारंपरिक रूप से अमेरिका के साथ अपने संबंधो को उतना महत्व नहीं दिया है. ये नया पन्ना है जो भारत और अमेरिका के बीच लिखा जा रहा है. अभी भी भारत के अंदर अमेरिका को लेकर सहमति नहीं बनी है कि सामरिक क्षेत्र में वो अमेरिका के साथ कितनी मजबूती से आना चाहते हैं. भारत के लिए चीन काफी बड़ी चिंता है. जिसमें वो अमेरिका का समर्थन लेना चाहता है. सैनिक तकनीक और दूसरे सहयोग वो चाहता है. हालांकि अमेरिका ने अपनी तरफ से इशारा कर दिया है कि वो भारत के साथ अपने संबंध मजबूत करना चाहता है.
डॉयचे वेलेः भारत के लिए तो समझ में आता है कि चीन से उसे खतरा है, पाकिस्तान से उसे दिक्कत है.लेकिन अमेरिका को भारत से क्या फायदा है?
उदय भास्करः अमेरिका के लिए दो खास पहलू हैं जिससे वो भारत से अपने रिश्ते मजबूत करना चाहता है. अगर आज के विश्व का आर्थिक ढांचा देखें तो अमेरिका के लिए बड़े बाजार की जरूरत है. इस समय चीन और अमेरिका के बीच बड़े पैमाने पर व्यापार का रिश्ता है. परंतु भारत जिसके बारे में कई अटकलें की गई हैं कि वो अगले दस से पंद्रह सालों में विश्व की नंबर तीन की अर्थव्यवस्था होगा वो अमेरिका के लिए बहुत बड़ी संभावना है. अमेरिका इस बात को जानता भी है. यहां की आबादी 100 करोड़ से ज्यादा है. और यहां पर 20 से 30 करोड़ के बीच मध्य वर्ग है जिसकी क्रय क्षमता लगातार बढ़ रही है और ये अमेरिका के लिए बहुत बडा मौका है.इसके साथ साथ ये भी ध्यान रखना होगा कि एशिया में अमेरिका अपने हितों के लिए जो सामरिक संतुलन चाहता है उसके लिए उसे भारत का साथ जरुरी है. एशिया के जो ताकतवर देश हैं जैसे जापान और भारत अमेरिका अपने हितों के लिए उनसे अपने संबंध ठीक करना चाहता है. इस बारे में अमेरिका 2005 से ही कोशिश कर रहा है. उस वक्त अमेरिका के रक्षा मंत्री डोनाल्ड रम्सफेल्ड थे. और भारत के रक्षा मंत्री प्रणव मुखर्जी थे. तब इनके बीच जो समझौता हुआ था उसी फ्रेमवर्क में ये दोनों देश अपने संबंध को आगे बढ़ाना चाहते हैं. तो इसके दो पहलू हैं एक आर्थिक दूसरा सामरिक. भारत का लोकतांत्रिक देश होना भी उसके लिए फायदेमंद है लेकिन फिर भी अमेरिका के लिए ये ज्यादा महत्व की बात नहीं है. अमेरिका पाकिस्तान और सउदी अरब जैसे देशों से भी अपने ताल्लुकात बेहतर रखा हैं जो लोकतांत्रिक देश नहीं थे.
डॉयचे वेलेः बेशक अमेरिका और चीन के बीच बहुत अच्छे व्यापारिक संबंध हैं लेकिन जब अमेरिका ने ऐलान किया कि वो अपनी समुद्री ताकत का आधा हिस्सा एशिया प्रशांत क्षेत्र में तैनात करेगा तो चीन ने इसका विरोध किया. इधर अमेरिका भारत की नजदीकियां बढ़ रही हैं. आपको क्या लगता है कि अमेरिका के दखल के बाद इस क्षेत्र की स्थिरता प्रभावित होगी. असंतुलन आ सकता है?
उदय भास्करः देखिए, जब भी अमेरिका ने इस क्षेत्र में दखल दिया है दक्षिण एशिया की स्थिरता काफी प्रभावित हुई है. करीब पचास साल पहले अमेरिका ने पाकिस्तान को समर्थन देकर इसकी पहल की थी. किसी बाहरी ताकत का ये पहला दखल था. इससे इस क्षेत्र की आंतरिक रूपरेखा और स्थिरता काफी प्रभावित हुई थी.
इसके बाद जब शीतयुद्ध के समय सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर आक्रमण किया था तब अमेरिका ने 1979 में पहल की और तब से अमेरिका इस क्षेत्र में बना हुआ है. अमेरिका ने मुजाहिदीन को समर्थन दिया था और उसका जहर अभी भी झेल रहे हैं. एक प्रकार से 9/11 उसी का नतीजा है. अमेरिका ने अफगानिस्तान और इराक के खिलाफ जो युद्ध किया है उसकी जड़ें उसी जगह पर हैं. कहने का मतलब ये कि जब भी शक्तिशाली देश जैसे अमेरिका ये भूतपूर्व सोवियत संघ जैसे देश को इन इलाकों में आते हैं तो यहां की स्थिरता प्रभावित होती है. परंतु हकीकत ये है कि तेल की वजह से हाइड्रोकार्बन, एनर्जी और बाकी जो सामरिक पहलू हैं उसकी वजह से शक्तिशाली देश चाहे वो अमेरिका हो या चीन इस क्षेत्र में प्रवेश करना चाहते हैं या कर चुके हैं. उनके असर को इस तरह ढालना होगा कि वह उथल पुथल पैदा करने की बजाए सकारात्मक साबित हों.
डॉयचे वेलेः रूस भारत का पुराना सहयोगी रहा है. दोनों की दोस्ती को काफी महत्व दिया जाता है. लेकिन आजकल भारत अमेरिका के ज्यादा नजदीक हो रहा है. क्या इसका असर भारत और रूस के संबंध पर पड़ेगा?
उदय भास्करः देखिए, इसमें कोई शक ही नहीं है. अगर आप पिछले 50 साल का इतिहास देखें तो ये साफ हो जाता है कि उस वक्त सोवियत यूनियन और अभी जो रूस है वो समारिक दृष्टिकोण से भारत के खास पार्टनर हैं. लेकिन ये बात भी सही है कि अगर दिल्ली के साथ मॉस्को ने अपने रिश्तों को बढ़ाया है तो ये मास्को के हित में था उस जमाने में भी. उस समय में भी. अभी देखना होगा कि पुतिन जो रूस के नए राष्ट्रपति बने हैं वो एशिया में रूस की नीतियों कैसे अपनाते हैं.और उसमें भारत की क्या भूमिका होगी. क्योंकि मैं समझता हूं कि रूस सोवियत संघ वाली भूमिका को हासिल करना चाहेगा. पुतिन उसी पटरी पर जाएंगे. जाहिर है अमेरिका के साथ उनका तनाव बढ़ सकता है.
इंटरव्यूः विश्वदीपक
संपादनः आभा मोंढे