अरब क्रांति देशों से अब अल कायदा का खतरा
२६ जून २०१२खुफिया एजेंसी के प्रमुख जॉनथन एवंस ने कहा कि ट्यूनीशिया, लीबिया, यमन और मिस्र में जन क्रांति ने लोकतांत्रिक शासन की उम्मीदें जगा दी थीं लेकिन एवंस का मानना है कि अल कायदा एक बार फिर अरब जगत में अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है. 1990 की दशक में अल कायदा के नेताओं ने अरब देशों से निकलकर अफगानिस्तान में अपना गढ़ बनाया. "आज अरब जगत के कुछ हिस्से अब दोबारा अल कायदा के लिए अच्छा माहौल बन गया है. ब्रिटेन से जिहादी बनना चाह रहे कुछ लोग भी अरब देशों का रुख कर रहे हैं और वहां ट्रेनिंग और हिंसा के लिए मौके तलाश रहे हैं, जिस तरह सोमालिया और यमन में हो रहा है. कुछ लोग ब्रिटेन वापस लौटेंगे और यहां खतरा पैदा करेंगे." एवंस ने कहा कि यह एक नयी घटना है और हालात खराब हो सकते हैं.
पिछले साल ट्यूनीशिया और मिस्र में क्रांति और लीबिया पर पश्चिमी देशों के हमलों के बाद पश्चिमी नेताओं को लग रहा था कि इससे उत्तर अफ्रीका और मध्यपूर्व में आजादी और समृद्धि का माहौल बनाया जा सकेगा. लेकिन ट्यूनीशिया और मिस्र के चुनावों में इस्लामियों का बोलबाला रहा है. लीबिया अब भी आंतरिक हिंसा से जूझ रहा है और यमन में अल कायदा आतंकवादी फैल रहे हैं.
एवंस के एलान के बाद लंदन ओलंपिक पर भी खतरा देखा जा रहा है लेकिन एवंस कहते हैं कि खेलों के लिए सुरक्षा कड़ी कर दी गई है. "यह खेल हमारे दुश्मनों के लिए एक आकर्षक निशाना हो सकते हैं और एक महीने के लिए वह पूरे विश्व का केंद्र बने रहेंगे. इसमें कोई शक नहीं है कि कुछ आतंकवादी नेटवर्क ने हमला करने का षडयंत्र भी रचा है." 2005 के बाद ब्रिटेन पर अल कायदा की हमला करने की कोशिशें कामयाब नहीं हुई हैं लेकिन एवंस के मुताबिक खतरा अब भी है. उनका कहना है कि अल कायदा पर दबाव रखना होगा. एवंस ने निजी कंपनियों को भी चेतावनी दी है और कहा है कि कई गुट कंप्यूटर सिस्टमों में हैक करना चाह रहे हैं. हाल ही में लंदन की एक कंपनी को 80 करोड़ पाउंड का नुकसान हुआ और हैकिंग के पीछे रूस या चीन की कंपनियों पर शक है. एवंस का कहना है कि ब्रिटेन पर हमलों का खतरा तो है ही लेकिन उनके देश ने कई बार साबित कर दिया है कि ब्रिटेन पर हमला करना इतना आसान भी नहीं है.
एमजी/एएम(एएफपी, रॉयटर्स)