अल कायदा का बदलता चेहरा
३० अप्रैल २०१२मारे जाने से पहले अल कायदा का प्रमुख ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान के एबटाबाद से अपनी धमकियों से दुनिया को डराता रहता था. हालांकि आज सबको पता है कि उस समय भी उसका प्रभाव सीमित रह गया था. जर्मन आतंकवाद विशेषज्ञ रॉल्फ टॉपहोफेन कहते हैं, "अल कायदा ने हालांकि अपना चेहरा खो दिया है लेकिन ओसामा बिन लादेन का काफी समय से आतंकी कार्रवाइयों में कोई प्रभाव नहीं था."
करिश्माई नेता की क्षति
9/11 के बाद बिन लादेन ऐसा शिकार था जिसके छिपने की जगह नहीं मिली. वैश्विक इस्लामी आतंकवाद का चेहरा अल कायदा के ऑपरेशनों के लिए व्यर्थ हो गया था. कभी मदद करने वाला धनी सऊदी नागरिक अपनी मांद में जोखिम बन गया था, जिस पर काफी खर्च हो रहा था. उसकी मौत के फौरन बाद पाकिस्तान के तालिबान विशेषज्ञ अहमद रशीद ने लिखा कि तैनाती का इंतजार कर रहे सैकड़ों स्वयंभू जिहादी बिन लादेन की मौत का बदला लेने की कसमें खायेंगे. लेकिन उसकी मौत इस्लामी नजरिये से भी शहादत की कहानी बनने में नाकाम रही है, जिसकी चिंता रशीद और दूसरे सुरक्षा विशेषज्ञों ने की थी. आतंकवाद पर रिसर्च करने वाले गीडो श्टाइनबर्ग का कहना है कि एक वजह से बिन लादेन की मौत अल कायदा के लिए मायने रखती है, "अल कायदा का एक महत्वपूर्ण नेता मारा गया और अल कायदा अब तक ओसामा बिन लादेन जैसे करिश्मे वाला दूसरा शख्स लाने में विफल रहा है."
संगठन की चोटी पर पहचान कायम करने वाले नेता का अभाव दिखता है. आयमान अल जवाहिरी को अल कायदा ने नंबर एक बना दिया. मिस्र का यह डॉक्टर 1990 से ही बिन लादेन का सहयोगी है और उसकी मौत से पहले भी नेटवर्क का रणनीतिकार माना जाता था. लेकिन उसमें करिश्मे की कमी है. श्टाइनबर्ग कहते हैं, "ओसामा बिन लादेन ने अपने व्यक्तित्व की वजह से अरब देशों के अलावा पश्चिमी देशों और दक्षिण एशिया के बहुत से युवाओं को आकर्षित किया. अल जवाहिरी का सम्मान होता है, लेकिन लोग उससे ओसामा बिन लादेन की तरह प्यार नहीं करते."
इसके अलावा नेटवर्क में शक्ति संतुलन भी बदल गया. जवाहिरी को पहले से ताकतवर मिस्री गुट का प्रतिनिधि माना जाता है, जो मगरेब के अल कायदा को पसंद नहीं. इसके अलावा अबु जहजा अल लिबी के रूप में एक नंबर दो भी है. अल लिबी को लंबे समय तक संगठन का धार्मिक रहनुमा माना जाता रहा. 2002 में उसे अमेरिकियों ने अफगानिस्तान में बागराम की सैनिक जेल में कैद रखा, लेकिन वह तीन साल बाद दूसरे कैदियों के साथ भाग गया. लेकिन लीबिया में विद्रोहियों को हथियार देने संबंधी एक इंटरनेट संदेश के अलावा उसके बारे में पिछले सालों में कुछ भी नहीं सुना गया है.
नया और पुराना
आतंकवाद विशेषज्ञों का मानना है कि अपनी सुरक्षा की चिंता के कारण नया नेतृत्व अदृश्य रहना चाहता है. गीडो श्टाइनबर्ग संगठन के कुछ ऐसे नेताओं की ओर इशारा करते हैं जो ईरान में नजरबंद थे, लेकिन 2009 से उन्हें ज्यादा आजादी मिली है. "अगले महीनों और सालों का यह बड़ा सवाल है कि अल कायदा का ईरानी नेतृत्व कौन सी भूमिका निभाएगा." इस बीच जिहाद का नया केंद्र बन गया है. पाकिस्तान के मुश्किल से निगरानी वाले उत्तर और दक्षिण वजीरिस्तान के अलावा इराक में भी अल कायदा के कमांडो हैं. रॉल्फ टॉपहोफेन के अनुसार नया केंद्र है अरब प्रायद्वीप पर अल कायदा, खासकर यमन में. उन्होंने यमन में राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाया है और कभी कभी तो देश के दक्षिण में पूरे इलाके को अपने नियंत्रण में लेने में सफल रहे हैं.
ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद नाइजीरिया में बोको हराम जैसे इस्लामी आतंकी संमगठन या सोमालिया में अल शबाब सुर्खियों में हैं. नाइजीरिया में सक्रिय बोको हराम अत्यंत चरमपंथी इस्लामी समुदाय माना जाता है जिसका मुख्य लक्ष्य बहुजातीय नाइजीरिया में शरीयत लागू करना है. उसे सैकड़ों ईसाइयों की मौत का जिम्मेदार माना जाता है. अल शबाब का सोमालिया के एक हिस्से पर नियंत्रण है और पहले उसने दूसरे अफ्रीकी देशों में भी बड़े बम हमलों की जिम्मेदारी ली है. फरवरी में इस्लामी वेबसाइटों पर नजर रखने वाली कंपनी इंटेलसेंटर ने इस संगठन के अल कायदा नेटवर्क के साथ विलय की बात कही. श्टाइनबर्ग कहते हैं, "यमन और अल्जीरिया में अल कायदा की शाखाओं के साथ संपर्क के सबूत हैं लेकिन बोको हराम या अल शबाब जैसे संगठन अल कायदा के निर्देश पर काम नहीं करते." इन संगठनों का अपना राष्ट्रीय एजेंडा है.
यूरोप में एकल आतंकी
इस्लाम से प्रभावित आतंकवादियों का एक नया टाइप इन दिनों यूरोप में उभरा है. मार्च में फ्रांस के टुलूस में पुलिस कार्रवाई में मारे गए मोहम्मद मारेह ने खुद को मुजाहिदीन बताया था. उसने अल कायदा के करीब होने की बात कही थी. मेराह ने मौत से पहले सात लोगों की जान ली जिनमें यहूदी स्कूल के तीन बच्चे भी शामिल थे. फरवरी में कैद की सजा पाए आरिद यू भी अकेला आतंकी था, उसने फ्रैंकफर्ट एयरपोर्ट पर अमेरिकी सैनिकों पर गोली चलाई थी. इसमें दो अमेरिकी सैनिकों की मौत हुई. रोल्फ टोपहोवेन कहते हैं कि यूरोप में एक नई समस्या खड़ी हो रही है, लोग इंटरनेट से कट्टरपंथी बन रहे हैं. ये ऐसे जिहादी हैं जो बिना किसी कमांडो, आतंकी गुट और बिना किसी नेतृत्व के सीधे हमला करते हैं.
यूरोपीय संघ में में ऐसे संदिग्धों की संख्या करीब 400 है. यूरोपीय संघ में आतंकी मामलों पर नजर रखने वाले गिलेस डे क्रेचोव का मानना है कि ये लोग जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन और बेल्जियम में छिपे हैं.
रिपोर्टः डानियल शेश्केविट्ज/महेश झा
संपादनः ए जमाल