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असमंजस के बीच नई सरकार

१ जून २०१३

पाकिस्तान में शनिवार को नई सरकार शपथ ले रही है लेकिन अनिश्चितता एक बार फिर हावी हो गई है. एक तो प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति धुर विरोधी होंगे, ऊपर से तालिबान ने बातचीत के रास्ते बंद कर दिए हैं.

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तस्वीर: AFP/Getty Images

सत्ता के नए बदलाव में सबसे ज्यादा मुश्किल मौजूदा राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को होने वाली है, जिनके प्रबल राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी नवाज शरीफ प्रधानमंत्री बनने वाले हैं. दूसरी तरफ शरीफ की दिक्कत यह है कि पाकिस्तानी तालिबान के दूसरे नंबर के कमांडर के मारे जाने के बाद उन्होंने बातचीत का रास्ता बंद कर दिया है.

पाकिस्तान में एक चुनावी कॉलेज राष्ट्रपति का चुनाव करता है, जिसमें राष्ट्रीय एसेंबली, सीनेट और प्रांतीय एसेंबलियों के सदस्य हिस्सा लेते हैं. अगला चुनाव 11 मई को होना है और समझा जाता है कि नवाज शरीफ जरदारी को इस पद पर बने भी रहने दे सकते हैं, बशर्ते उनकी पार्टी एसेंबली में सरकार का सहयोग करे.

विश्लेषक इम्तियाज गुल का कहना है कि नई सरकार जरदारी के साथ फौरन कोई राजनीतिक विवाद नहीं मोल लेना चाहेगी, "पुराने तजुर्बे को ध्यान में रखते हुए पीएमएलएन जरदारी को उनका कार्यकाल पूरा करने दे सकती है. हालांकि जरदारी के दिन अब गिने चुने ही बचे हैं क्योंकि चुनाव में उनकी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है."

इस बीच अमेरिकी ड्रोन हमले में वली उर रहमान के मारे जाने के बाद पाकिस्तानी तालिबान ने सरकार से बातचीत का प्रस्ताव रद्द कर दिया. रहमान तालिबान का दूसरे नंबर का कमांडर था. तालिबान के प्रवक्ता अहसानुल्लाह अहसान ने कहा कि गुट के अंदर इस बात पर चर्चा चल रही है कि क्या रहमान के डिप्टी खान सैयद को उनकी जगह दी जाए.

पाकिस्तान के खुफिया सूत्रों का कहना है कि 40 साल के आस पास का सैयद अफगानिस्तान में हमलों की रणनीति बनाने के लिए जाना जाता है. अहसान ने कहा कि उनके संगठन ने नवाज शरीफ के साथ बातचीत के न्योते को ठुकरा दिया है क्योंकि उनका मानना है कि सरकार की रजामंदी से ही अमेरिका ड्रोन हमले कर पा रहा है, "हमने अमन के लिए प्रस्ताव रखा था. हमने अच्छी नीयत से सरकार से यह बात कही थी. लेकिन हम मानते हैं कि ये ड्रोन हमले सरकार से पूछ कर ही किए जा रहे हैं और इसलिए हम एलान करते हैं कि हम बातचीत की पेशकश रद्द करते हैं."

पाकिस्तानी तालिबान का गठन 2007 में सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए किया गया था. उसका मानना है कि सरकार अमेरिका से मिली हुई है. इस पर पाकिस्तान के अंदर भी कई हमले करने के आरोप लग चुके हैं. पिछले दिनों इसने संकेत दिया था कि अगर बातचीत का रास्ता निकले तो यह उस पर विचार कर सकता है.

अगले प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भी बातचीत का इशारा दिया था. उन्होंने कहा था कि इस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए. हालांकि बातचीत के दरवाजे बिलकुल बंद नहीं हुए हैं. इस्लामाबाद में पाक इंस्टीट्यूट फॉर पीस स्टडीज के अमीर राना का कहना है, "इस एलान के साथ तालिबान अपने गुस्से का इजहार कर रहा है क्योंकि ड्रोन हमले में उसकी एक बड़ी शख्सियत मारी गई."

हालांकि तालिबान ने पहले भी बातचीत की पेशकश की है लेकिन उसका इस्तेमाल बाद में उन्होंने थोड़े समय युद्धविराम जैसी स्थिति बनाने के लिए की और इस दौरान उन्होंने संगठन को मजबूत करने का काम किया.

एजेए/एमजी (एएफपी, एपी)

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