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आतंक के खिलाफ लड़ाई

४ अगस्त २०११

इस्लामी आतंकवाद से निपटने के लिए यूरोपीय संघ ने सुरक्षा सहयोग बढ़ा दिया है लेकिन साथ ही अपने नागरिकों पर निगरानी भी बढ़ा दी है. इस सहयोग का समन्वय एक आतंकवाद निरोधी अधिकारी करता है.

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तस्वीर: DW / fotolia

आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में यूरोपीय सहयोग अमेरिका में 11 सितंबर, 2001 के हमलों के बाद भी हकीकत से अधिक मांग भर थी. मार्च, 2004 में मैड्रिड के लोकल ट्रेनों में हुए हमले में 200 लोगों के मारे जाने के बाद यूरोपीय संघ ने नीदरलैंड्स के गाइस डे फ्रीश को पहला आतंकवाद निरोधी कमिश्नर नियुक्त किया. उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को एक बार कुछ इस तरह बताया, "सूचनाओं का आदान प्रदान बेहद महत्वपूर्ण है. यूरोपोल के जरिए हम पुलिस को सूचनाओं की आपस में अदला बदली की अनुमति देते हैं. हमारे सरकारी वकील यूरोजस्ट (यूरोपीय कानूनी सहयोग) के माध्यम से सूचनाओं की अदला बदली कर सकते हैं. हम आतंकवादियों को वित्तीय सहायता देने के खिलाफ कानून तैयार करते हैं. और इसके लिए भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिल कर काम करने की जरूरत है."

ओसामा कांड से ज्यादा नहीं बदला

आपसी सहयोग और कड़ी निगरानी के बावजूद एक और बड़े आतंकवादी हमले को नहीं टाला जा सका, जब जुलाई 2005 में लंदन में आतंकवादी हमले हुए. इनमें 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. अलबत्ता, उसके बाद से यूरोप में शांति जरूर है. पुलिस और खुफिया विभाग का मानना है कि बहुत सारे हमलों को रोका जा सका है.

EU-Koordinator für Terrorismusbekämpfung Gilles de Kerchove
आतंक के खिलाफ युद्ध में यूरोपीय संघ के समन्वयक जिल डे केरकोफेतस्वीर: picture-alliance / dpa

डे फ्रीश के उत्तराधिकारी बेल्जियम के जिल डे केरकोफे ने हमेशा ही सुरक्षा के भ्रामक अहसास के खिलाफ चेतावनी दी है, अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद भी. उनका कहना है, "पिछले सालों से अल कायदा के खास लोगों का प्रभाव बहुत कम हो गया है. अब यह और कमजोर हो गया है. लेकिन संगठन की कमान भले ही ओसामा बिन लादेन के हाथों में न हो, वह एक प्रतीक भी था. और यह प्रतीक रातोंरात मिट नहीं सकता."

आतंकवाद निरोध का मतलब नागरिकों की पूरी निगरानी है क्या?

शुरू से ही यूरोपीय संघ के आतंकवाद निरोधक कदमों की आलोचना भी होती आई है. अब ये सार्वजनिक जगहों पर लगे बहुत कैमरे हों या हवाई अड्डों पर कड़ी सुरक्षा जांच, लेकिन बैंक खातों और संचार सूचनाओं की निगरानी और उन्हें सेव करने के बारे में बहुत से लोगों का कहना है कि ये बहुत व्यापक हैं और इससे लोगों के स्वतंत्रता के अधिकार सीमित होते हैं.

यान फिलिप अलब्रेष्ट यूरोपीय संसद में ग्रीन पार्टी के सांसद हैं. वह पूरे मामले की व्यापक तौर पर दोबारा विचार की मांग करते हैं. उनका कहना है, "हमें यूरोपीय संघ के आतंकवाद निरोधक कदमों की जांच करनी चाहिए कि वे कितने प्रभावी हैं. यदि कोई कदम हड़बड़ी या जल्दबाजी में उठाए गए हैं तो उन्हें संशोधित किया जाए या वापस लिया जाए, मिसाल के तौर पर टेलीकॉम विभाग के पास छह महीने तक के आंकड़े रखने का फैसला."

Polizei nutzt in Regensburg Videokameras zur Überwachung Symbolbild Überwachungsstaat Staatliche Überwachung
लोगों पर नजरतस्वीर: dpa - Fotoreport

ज्यादा सूचना और साथ ही सूचना की ज्यादा रक्षा

बहस सबसे ज्यादा लोगों की सुरक्षा और सूचना की रक्षा के बीच हो रही है. हालांकि डे केरकोफे इन दोनों मुद्दों को एक दूसरे के विपरीत नहीं मानते हैं, "चूंकि खतरे की प्रकृति बदल गई है, इसलिए हमें ज्यादा सूचनाएं जमा करनी होंगी." समस्या यह है कि बढ़ते पैमाने पर पुलिस या खुफिया विभागों को संदिग्धों के बारे में जानकारी नहीं होती. इसलिए संदिग्ध यात्राओं, संदिग्ध व्यवहार, संदिग्ध खर्चे और संदिग्ध टेलीफोन बातचीतों की जांच जरूरी है. डे केरकोफे कहते हैं, "लेकिन साथ ही हमें सूचना की सुरक्षा को बेहतर बनाना होगा. हमें दोनों तरफ ज्यादा काम करना होगा."

डे केरकोफे का आधिकारिक पद को-ऑर्डिनेटर कहलाता है. इसका मतलब है कि पहले ही की तरह मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा नीति का है, जिसका समन्वय किया जाना चाहिए. लिस्बन संधि की वजह से आने वाले समय में कुछ चीजें यूरोपीय आयोग के अधिकार क्षेत्र में आ जाएंगी, लेकिन उनका मानना है कि भविष्य में भी बहुत कुछ का समन्वय करने की जरूरत होगी. "जब मुझे नियुक्त किया गया, तो किसी ने सीमित समय की बात नहीं की. देखें क्या होता है." जिल डे केरकोफे कतई नहीं मानते कि शीघ्र ही उनकी नौकरी खत्म हो जाएगी.

रिपोर्टः क्रिस्टोफ हासेलबाख/ए जमाल

संपादनः महेश झा