आर्थिक सुधारों के विरोध में भारत बंद
२० सितम्बर २०१२देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के साथ ही लेफ्ट पार्टियों ने भी इस बंद का आह्वान किया है. महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी का त्यौहार चल रहा है, ऐसे में वहां शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने बंद के लिए जोर नहीं लगाया. नतीजा वहां बंद बेअसर है. विपक्षी पार्टियां बढ़ी कीमतों के साथ ही दूसरे फैसलों को भी वापस लेने की मांग कर रही हैं.
सरकार के फैसले पर विरोध जताने के लिए बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, असम, गोवा, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कई शहरों में दुकानें बंद हैं. सड़क और रेल परिवहन पर भी बंद का भारी असर हुआ है. खासतौर से बिहार में इसका ज्यादा असर दिखा, जहां सड़कें और रेल की पटरियां जाम कर दी गईं. पश्चिम बंगाल में बंद का व्यापक असर हुआ है और वहां व्यावसायिक गतिविधियां पूरी तरह से बंद रही हैं. बिहार और उत्तर प्रदेश की राजधानियों में विरोध जताने के लिए लोगों ने रैलियां भी निकाली. जगह जगह कई विपक्षी नेताओं को पुलिस ने हिरासत में भी लिया है. दिल्ली में विरोध प्रदर्शन कर रहे समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह, वामपंथी नेता सीताराम येचुरी, ए बी वर्धन, प्रकाश करात और टीडीपी नेता चंद्र बाबू नायडु को भी पुलिस ने हिरासत में लिया. पटना में बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद, सीपी ठाकुर, राधामोहन सिंह समेत 200 से ज्यादा बीजेपी नेताओं को पुलिस ने हिरासत में लिया है.
बीजेपी के शासन वाले कर्नाटक राज्य में भी बंद का असर बहुत ज्यादा दिखा. यहां दुकानों और दफ्तरों के साथ ही स्कूल, कॉलेज बंद हैं और सार्वजनिक परिवहन पूरी तरह से रुक गया है. आईटी कंपनियों के गढ़ बंगलोर में ज्यादातर कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को घर में रह कर ही काम करने के लिए कह दिया. दिल्ली में बंद का मिला जुला असर दिखा. कुछ इलाकों में दुकानें बंद हैं और कुछ इलाकों में बसों का चलना बंद है.
इसी महीने की 14 तारीख को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने मल्टीब्रांड सुपरमार्केट में विदेशी कंपनियों को 51 फीसदी तक हिस्सेदारी देने की अनुमति देने का एलान किया. इसके एक दिन पहले डीजल के दाम में भारी बढ़ोत्तरी और सब्सिडी पर मिलने वाले रसोई गैस के सिलिंडरों में कटौती की घोषणा हुई. सत्ताधारी गठबंधन में शामिल तृणमूल कांग्रेस ने इन फैसलों पर विरोध जताने के लिए सरकार से समर्थन वापसी का एलान किया है.
सरकार की दलील है कि अर्थव्यवस्था की सुस्त हुई रफ्तार में दम भरने के लिए कड़े फैसले जरूरी हैं. सरकार का मानना है कि कुछ दिनों की मुश्किल के बाद दोबारा जब आर्थिक तेजी आएगी तो लोगों की शिकायतें दूर हो जाएंगी. हालांकि इन फैसलों का राजनीतिक स्तर पर इस तरह से विरोध होगा शायद इसकी कल्पना उन्हें नहीं रही होगी. तृणमूल कांग्रेस के समर्थन वापस लेने की स्थिति में सरकार को दूसरे दलों का मुंह देखना होगा. राजनीति के कुछ जानकार समय से पहले चुनाव की संभावना से भी इनकार नहीं कर रहे हैं.
एनआर/एमजे (पीटीआई, डीपीए)