इंटरनेट में बढ़ते जर्मन जिहादी
५ नवम्बर २०१२आतंकवाद पर शोध करने वालों का कहना है कि इससे किशोरों को कुछ ही महीनों में चरमपंथी बनाया जा सकता है. जर्मनी के अंतरराष्ट्रीय और सुरक्षा नीति संस्थान एसडब्ल्यूपी के एक शोध में इस बात की जांच की गई है कि जर्मनी में कितने जिहादी रहते हैं और अपने विचारों के प्रचार के लिए वे किन साधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं. मार्च 2011 में 21 साल के आरिद ऊका ने फ्रैंकफर्ट हवाई अड्डे पर दो अमेरिकी सैनिकों को गोली मार दी और कई अन्य को घायल कर दिया. उसने अफगानिस्तान में तैनात सैनिकों के नफरत के कारण अपराध किया.
इससे पहले ऊका ने यूट्यूब पर एक वीडियो देखा था, जिसमें कथित रूप से अमेरिकी सैनिकों को मुस्लिम महिलाओं का बलात्कार करते दिखाया गया था. वह ऑनलाइन इस्लामी फोरम पर जाता था और नियमित रूप से चरमपंथी मौलवियों के वीडियो देखता था. हालांकि उसका जिहादियों के साथ सीधा संपर्क कभी नहीं हुआ. जर्मनी की घरेलू खुफिया सेवा के उपाध्यक्ष अलेक्जांडर आइसफोगेल कहते हैं कि आरिद ऊका इंटरनेट के जरिए चरमपंथी होने का खास मामला है. सुरक्षा एजेंसियां एक तरह का जिहाद 2.0 का सामना कर रहे हैं.
इंटरनेट अब एक सामाजिक गुट को दूसरे के खिलाफ भड़काने का मंच दे रहा है जो पहले सिर्फ मस्जिदों में मौलवियों या स्कूलों के लिए संभव था.
फैक्स से फेसबुक
यह जर्मनी में एक नए प्रकार का विकास है. बर्लिन संस्थान एसडब्ल्यूपी ने पिछले 15 साल में जिहाद के प्रचार का निकट से अध्ययन किया है. शोधकर्ताओं का कहना है कि 2000 में इंटरनेट बहुत मामूली भूमिका निभा रहा था. अल कायदा अपने बयान फैक्स या रकॉर्डेड वीडियो के जरिए भेजता था. फिर उसे टीवी चैनल अल जजीरा को भेजा जाता था. लेकिन अमेरिका पर 9/11 के हमले के तुरंत बाद जिहाद की वकालत करने वाले अरबी इंटरनेट फोरम का महत्व बढ़ने लगा.
एसडब्ल्यूपी के रिसर्चर गीडो श्टाइनबर्ग का कहना है कि 2003 से 2008 के बीच प्रकाशित सामग्रियों पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया गया है. इसी का परिणाम 2004 में अमेरिकी उद्यमी निकोलस बर्ग की हत्या थी. शोधकर्ताओं के अनुसार उस समय आतंकवादी गुट अपना वीडियो खुद बनाते थे.लेकिन उसके बाद से उग्रपंथियों से सहानुभूति रखने वाले या उनका समर्थन करने वाले लोग और सक्रिय होने लगे हैं. फेसबुक और ट्विटर की लोकप्रियता के साथ जिहादी सोशल नेटवर्क पर भी सक्रिय हो गए हैं. अब सारी दुनिया से प्रचार हो रहा है.
कैसे बनते हैं आतंकवादी
जर्मन भाषी दुनिया में जिहादी प्रचार 2005 में शुरू हुआ. शुरुआती दौर में इस्लामी प्रचारक पेशेवर ढंग से काम नहीं करते थे. आम लोगों तक पहुंचने के लिए वे विश्वास करने लायक प्रचार वीडियो बनाते थे और अरब लेखों का जर्मन में अनुवाद करते थे. गीडो श्टाइनबर्ग कहते हैं कि सुरक्षा अधिकारियों के लिए यह समझना आसान हुआ करता था कि इन सबसे पीछे कौन है.
जर्मनी में पिछले दस सालों में कट्टरपंथी आंदोलन के प्रभावशाली लोगों को जेल में डाल दिया गया है. लेकिन हटाए गए लोगों की तुरंत भरपाई कर दी जाती है. श्टाइनबर्ग द अब्राहम अलायंस का उदाहरण देते हैं, जिस पर 2012 में प्रतिबंध लगा दिया गया. इसके नेता अब जर्मनी छोड़कर चले गए हैं और कहीं और से अपना प्रचार अभियान चला रहे हैं. "यह चिंता की बात है क्योंकि इस सामग्री का लगातार प्रचार हो रहा है." श्टाइनबर्ग को डर है कि जिहादी सिर्फ पश्चिम विरोधी प्रचार ही नहीं कर रहे हैं, आतंकवादी संरचना भी बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
जर्मनी की खासियत
हाल के वर्षों में आतंकी गुटों का विकास जर्मनी में दूसरे देशों की तुलना में कुछ अलग रहा है. जर्मनी में रहने वाले बहुत से कट्टरपंथियों के लिए अरब भाषा वाली प्रचार सामग्री को समझने की मुश्किलें थीं. गीडो श्टाइनबर्ग कहते हैं, "जर्मनी में जिहादी आंदोलन तुर्क और कुर्द पृष्ठभूमि के रंगरूटों से प्रभावित था और अधिकांश मामलों में वे उज्बेकिस्तान के संगठनों में शामिल हो गए." उज्बेक और तुर्क भाषाओं का मूल एक ही है.
भाषा की बाधा समाप्त कर इस्लामी जिहाद यूनियन या उज्बेकिस्तान के इस्लामी आंदोलन जैसे संगठनों को धर्मयुद्ध के लिए नौजवानों को आकर्षित करने में सफलता मिली है, ताकि उन्हें लड़ने की ट्रेनिंग दी जा सके. आरिद ऊका का मामला इस बात की चेतावनी है कि आतंकवादी गुट अपने समर्थकों को उनसे मिले बिना भी प्रभावित कर सकते हैं. ऊका जर्मन भाषा वाली प्रचार सामग्री से प्रभावित था. श्टाइनबर्ग कहते हैं कि वीडियो चरमपंथ का औजार बन गया है और उसकी कुशलता साबित हुई है.
एक और शोधकर्ता निको प्रूचा को इस बात पर ताज्जुब है कि जिहादी आधुनिकता के खिलाफ संघर्ष में आधुनिक संचार माध्यमों का इस्तेमाल कर रहे हैं. हालांकि एसडब्ल्यूपी के अध्ययन के अनुसार जर्मनी में सिर्फ कुछ सौ जिहादी और कुछ हजार समर्थक हैं. श्टाइनबर्ग का कहना है कि इस गुट के प्रभावशाली लोगों को बदलने की कोशिश की जानी चाहिए. वे हथियारबंद लड़ाई का समर्थन करने वाले संदेशों को रोकने में मदद कर सकते हैं.
रिपोर्ट: क्लाउस यानसेन/एमजे
संपादन: आभा मोंढे