इंसानों से मिल जुल कर काम करेगा रोबोट
२८ अक्टूबर २०११हाथी की सूंड़ की बात करते हैं. कैसा लचीला होता है. देख कर कभी कभी हंसी आ जाती है लेकिन अगर गौर से देखा जाए तो यह सूंड़ कितने काम की होती है. लकड़ी के मोटे गट्ठर उठाने हों या बड़ा पूरा तरबूज. हाथी बड़े आराम से ये काम कर सकता है. सोचिए अगर हाथी की सूंड़ की तरह कोई रोबोट बन जाए तो कितना आसान होगा.
जर्मनी की मशीनरी टूल्स बनाने वाली मशहूर कंपनी फेस्टो ने हाथी को ध्यान में रख कर रोबोट तैयार किया है, जो अभी परीक्षण के स्तर पर है और कंपनी का कहना है कि इसके शानदार नतीजे आ रहे हैं. कंपनी के प्रोसेस ऑटोमेशन मैनेजमेंट प्रमुख डॉक्टर एकहार्ड रूस का कहना है, "हमारा लक्ष्य ऐसे उपकरण तैयार करना है, जो किसी भी जगह पर इंसानों के साथ मिल कर काम कर सकें. आम तौर पर रोबोट बेहद भारी भरकम और खतरनाक सा दिखने वाला होता है. लेकिन हम इस अवधारणा को बदलना चाहते हैं." कंपनी बायोनिक्स को आधार बना कर काम करने में विश्वास करती है.
क्या है बायोनिक्स
बायोलॉजी और तकनीक के मेल को बायोनिक्स कहते हैं. 1950 के दशक में यह शब्द गढ़ा गया. नए उपकरणों को डिजाइन करते वक्त बायोलॉजिकल तरीकों को ध्यान में रखा जाता है और उनके तंत्र को कुछ इस तरह सेट किया जाता है कि वे प्रकृति पर थोपी हुई मशीन न होकर उनका हिस्सा बनने की कोशिश करें. हाथी की सूंड़ भी बायोनिक्स की ही सोच है.
लेकिन ऐसे प्रोडक्ट तैयार करना मामूली बात नहीं होती. भारी रिसर्च और इंजीनियरिंग की जरूरत होती है और ऐसे किसी प्रोडक्ट को तैयार करने में कई बार तीन साल तक लग जाते हैं. ऐसे में मुनाफा कैसे आएगा. रूस बताते हैं कि ग्राहकों के साथ लगातार रिश्ते बेहतर बनाने की जरूरत होती है. कई बार तो उनकी ग्राहक कंपनियां ही उन्हें नए प्रोडक्ट के बारे में कहती हैं, "एक तरफ आपको ध्यान रखना होता है कि बाजार की क्या जरूरत है और दूसरी तरफ आपको लीक से हट के सोचने की जरूरत होती है. दोनों का सही मिश्रण होना चाहिए. समस्या यह है कि मिश्रण कैसा हो 90:10 या 10:90."
इलाज में बायोनिक्स
मेडिकल साइंस में हाल के दिनों में बायोनिक्स उत्पादों का चलन तेजी से बढ़ा है. किसी जमाने में लकड़ी की नकली टांग लग जाना ही बड़ी बात मानी जाती थी लेकिन हाल के दिनों में ऐसी कृत्रिम टांगों का भी विकास होने लगा है, जिन्हें प्राकृतिक टांगों की तरह ही डिजाइन किया गया है. यूरोप में हाल ही में ऐसा ऑपरेशन हुआ है, जिसमें दुर्घटना में हाथ गंवा चुके एक शख्स के शरीर में तमाम धमनी तंत्रिकाओं के साथ कृत्रिम हाथ लगाए गए हैं. वह इस हाथ का इस्तेमाल आम लोगों की तरह कर पा रहा है.
भारत में भी बायोनिक्स उपकरणों की मांग तेजी से बढ़ी है. फेस्टो का खुद भी भारत में बड़ा कारोबार है. वहां कई यूनिवर्सिटियों में बायोनिक्स की पढ़ाई हो रही है. फेस्टो का कहना है कि उनके प्रोडक्ट में इस बात का ध्यान रखा जा रहा है कि ग्रीन तकनीक का इस्तेमाल हो. कंपनी के इन्नोवेशन मैनेजर नीको पात्सेव्स्की का कहना है, "शुरू में हो सकता है कि काफी पैसे लगें लेकिन आखिर में बचत ही होती है. और चूंकि ग्रीन तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है, इस वजह से आपकी छवि भी बेहतर बनती है."
कंपनी को इस बात की खुशी है कि उसे भविष्य की तकनीक का महत्वपूर्ण जर्मन पुरस्कार मिल चुका है. अब उसका सारा ध्यान एक स्मार्टबर्ड की तैयारी में है. बिलकुल असली पंछी की तरह दिखने वाला यह उपकरण परिंदे की तरह पंख भी फड़फड़ा सकता है. शुरुआती मॉडल बन कर तैयार है और अब इसे बेहतर करने की तैयारी चल रही है.
रिपोर्टः अनवर अशरफ, श्टुटगार्ट
संपादनः महेश झा