इसरो ने जीएसएलवी की नाकामी की जांच शुरू की
२६ दिसम्बर २०१०भारत के अंतरिक्ष और उड्डयन क्षेत्र से जुड़े शीर्ष वैज्ञानिक जीएसएलवी के डाटा की जांच करने में जुट गए हैं. इसरो के प्रवक्ता ए सतीश ने कहा कि, ''टीमें डाटा देख रहे रही हैं ताकि असफलता के कारणों का पता चले. आने वाले एक दो दिन में फेलियर एनालिसिस कमेटी भी बनाई जाएगी.''
इस बीच इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन ने प्रारंभिक तौर पर कुछ आशंकाएं जताई हैं. उनके मुताबिक ऐसे संकेत मिले हैं कि चार कनेक्टर टूट गए. इसकी वजह से रॉकेट पर कंट्रोल करने की कोशिशें नाकाम हो गईं. इस बात का शक भी जताया जा रहा है कि फ्यूल वॉल्व की लीकेज भी रॉकेट में विस्फोट के लिए जिम्मेदार हो सकती है. जीएसएलवी-एफ 06 को पहले 20 दिसंबर को छोड़ा जाना था. लेकिन लीकेज की शिकायत के चलते प्रक्षेपण को पांच दिन टाला गया.
25 दिसंबर को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से जीएसएलवी-एफ 06 को प्रक्षेपित किया गया. जमीन से उठने के एक मिनट बाद ही आकाश में 8 किलोमीटर ऊपर रॉकेट फट पड़ा. इस तरह इसरो का मिशन पूरी तरह नाकाम हो गया. रूसी इंजन वाले इस रॉकेट में GSAT-5P टेलीकम्युनिकेशन सेटेलाइट्स थीं.
यह पांचवां मौका है जब जीएसएलवी का प्रक्षेपण नाकाम रहा है. स्वतंत्र पर्यवेक्षकों के मुताबिक जीएसएलवी के सात में अब दो ही प्रक्षेपण पूरी तरह सफल हुए हैं. इन नाकामियों से भारत और भारतीय वैज्ञानिकों को खासा झटका लगा है. भारत 2020 तक चंद्रमा पर अपने वैज्ञानिकों को उतारना चाहता है. साथ ही अपने रॉकेट कार्यक्रम के सहारे भारत कई देशों की सैटेलाइट्स छोड़ता है. लेकिन ऐसी घटनाओं से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की साख को नुकसान पहुंचने की आशंका जताई जा रही है.
लेकिन इसरो के वैज्ञानिक इस तर्क से इससे सहमत नहीं है. उनका कहना है कि भारत के पास कई पुराने और 100 फीसदी भरोसेमंद रॉकेट हैं. यही वजह है कि अब नई श्रेणी के रॉकेटों पर प्रयोग किया जा रहा है और प्रयोगों के दौरान ऐसी नाकामियों के लिए तैयार रहना चाहिए. इसरो जीएसएलवी से भी आगे के अंतरिक्ष वाहन जीएसएलवी एमके तीन पर काम कर रहा है. इसका इस्तेमाल 2012 से किया जाने लगेगा. इसे पूरी तरह इसरो ने तैयार किया है. यह इनसैट चार श्रेणी के भारी उपग्रह ले जा सकता है. इनसैट चार श्रेणी के उपग्रहों का वजन 45 से 50 टन तक होता है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह
संपादन: एस गौड़