ईयू के टेढ़े मेढ़े कानून
यूरोपीय संघ में एक से एक कानून हैं. फिर चाहे केले का आकार हो या शहद की तरलता, सब किताबों में लिखा हुआ है. जरा भी इधर उधर होने का मतलब है गड़बड़. देखें तस्वीरों में यूरोपीय संघ के अजीबोगरीब कानून.
मुड़े केले का कानून
केला कानून के मुताबिक, यूरोपीय संघ में आयात किए जाने वाले केले या उगाए जाने वाले केले कम से कम 14 सेंटीमीटर लंबे और 2.7 सेंटीमीटर मोटे होने चाहिए. फल कटा पिटा नहीं होना चाहिए और पूरा पका भी नहीं.
बिजली वाला शहद?
शायद कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि शहद सुचालक होता है, यानी इससे करंट पार हो सकता है. लेकिन ईयू ने सोचा कहीं ब्रेकफास्ट के दौरान किसी को करंट न लग जाए. इसलिए तय कर दिया गया कि शहद की सुचालकता 0.8 माइक्रोसीमन्स प्रति सेंटीमीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
हरी लाइट
ऊर्जा बचाने के लिए यूरोपीय संघ में पारंपरिक गोल बल्बों पर प्रतिबंध लगा दिया गया. लेकिन एलईडी लाइट जैसे दूसरे बल्बों को भी यूं ही कहीं नहीं फेंका जा सकता, क्योंकि उनमें जहरीला पारा होता है. मुश्किल भले ही हो पर कम से कम ये नए बल्ब पुराने वालों की तरह रोशनी तो देते हैं.
रोपवे कानून
जर्मनी का उत्तरी हिस्सा समंदर और रेत के लिए मशहूर है. ना तो यहां कोई पहाड़ हैं और इसीलिए ना ही कोई केबल कार. यहां सबसे ज्यादा ऊंचाई भी सिर्फ 168 मीटर ही है. पर फिर भी यहां यूरोपीय संघ का रोपवे कानून लागू होता है. कारण? शायद कभी कोई यहां रोपवे बनाना चाहे, तो उसे बनाने के नियम तो होना ही चाहिए ना.
कचरा कहां जाए
प्लास्टिक पीले डब्बे में, पेपर नीले में, रिसाइकल नहीं किए जा सकने वाला कचरा भूरे डब्बे में. कम से कम जर्मनी में तो यही कानून है. लेकिन यूरोपीय संघ के दूसरे देशों में ये डब्बे दूसरे रंग के हैं, नीले की बजाए हरा, पीले की बजाए लाल. कहीं तो सारा कचरा एक साथ जाता है. इसके लिए भी कानून बनाना गलत नहीं होगा.
सबके लिए एक पिन
यूरोपीय संघ के अलग अलग देशों में अलग अलग प्लग अडाप्टर चाहिए. क्योंकि ब्रिटेन, माल्टा, आयरलैंड और साइप्रस जैसे कई ईयू देश हैं जहां यूरोप्लग जाता ही नहीं. यहां मानक की जरूरत है ताकि एक ही प्लग सब जगह चल सके. अब ईयू हर कंपनी के मोबाइल फोन चार्जर एक जैसे बनाने पर कानून बनाने जा रहा है.
अलग अलग आम्पेलमेंशन
रोम, पैरिस, लंदन, वॉरसा, जागरेब, स्टॉकहोम या बर्लिन सभी जगह ट्रैफिक लाइट पर दिखाई जाने वाली आकृति बिलकुल अलग अलग हैं. जर्मनी के एकीकरण के बाद 1990 में पूर्वी हिस्से का ये आम्पेलमेंशन लुप्त होने की कगार पर था. इसके लिए ईयू में कोई नियम नहीं है.
इतिहास के साथ
हर देश के पोस्ट बॉक्स भी अलग अलग हैं. यूरोपीय संघ में इनके लिए कोई नियम नहीं है. इसलिए हर देश का सांस्कृतिक इतिहास पोस्ट बॉक्स में दिखाई देता है.