एक दिन जो जर्मनी को बदल देगा
२१ दिसम्बर २०१६बर्लिन के हमले ने जर्मनी को झकझोर दिया है. वे स्तब्ध हैं. 12 लोग मारे गए हैं, करीब 50 घायल हैं, कुछ तो गंभीर रूप से. इस हमले का, आतंक का निशाना पूरा देश था. वह उस मुक्त समाज पर लक्ष्त था जिसमें जर्मन रहते हैं. और वह शांति के एक खास प्रतीक, क्रिसमस बाजार पर लक्षित था, जहां क्रिसमस से पहले लाखों लोग जाते हैं. सिर्फ जर्मन ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के लोग, जो जाड़ों में कुछ घंटे क्रिसमस पूर्व के माहौल का मजा लेना चाहते हैं और रोजमर्रा के तनाव भुला देना चाहते हैं.
सबके खिलाफ लक्षित आतंक
यह हमला, ये खूनी आतंकवाद हम सबके खिलाफ लक्षित है, जो आजादी से बिनी किसी मुश्किल के जीना चाहते हैं. ये आजादी की हमारी इच्छा के खिलाफ बर्बर कार्रवाई है. इसलिए बर्लिन का आतंकवादी हमला जर्मनी को बदल रहा है. हम सिर्फ अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के निशाने पर ही नहीं हैं, जैसा कि काफी समय से कहा जा रहा है, बल्कि हम उसके शिकार हैं. जैसे कि ब्रिटिश, फ्रेंच, स्पेनी, इस्राएली, अमेरिकी और दूसरे.
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमला मानसिक रूप से बीमार किसी इंसान द्वारा किया गया है, खूनी इरादे वाले किसी अकेले भेड़िए द्वारा या कट्टरपंथी पृष्ठभूमि वाले किसी दल द्वारा. वह मुक्त समाज के मर्म पर हमला है. वह खुले समाज पर चोट है. क्रिसमस बाजार पर हमले के साथ वह ईसाई प्रतीक पर चोट है, जो जर्मन और यूरोपीय परंपरा तथा पहचान की अभिव्यक्ति है.
चांसलर ने सही ही कहा है: यह जर्मनों के लिए एक कठिन दिन है. और लोग इसे महसूस कर रहे हैं (पिछले सालों में जर्मनी में बहुत सारे छोटे या मझोले हमले हुए हैं, बहुत से हमलों को रोका भी गया है.): ये हमला एक चेतावनी है. जर्मन समाज की मानसिकता बदल जाएगी. शांत, चिंतामुक्त और बिंदास रहना कम होता जाएगा. अक्सर कही जाने वाली जिंदगी की आजादी जिसे हम आतंकवाद के सामने नहीं खोना चाहते, उस आजादी की जगह गहरे पैठी असुरक्षा ले लेगी. जर्मनी असुरक्षित महसूस करेगा. और वह असुरक्षित होगा भी.
क्या राजनीतिक भूचाल आएगा?
उसके साथ ऐसे हमलों के बाद आने वाले राजनीतिक भूचाल आने की भी आशंका है, यदि अपराधी शरणार्थी होगा. एक इंसान जो इस देश में सुरक्षा पाने के लिए आया था. एक इंसान जो शरण चाहता था. एक इंसान जिसे इस देश ने वापस नहीं भेज दिया. यदि सचमुच अपराधी कोई शरणार्थी है जो पिछले साल जर्मनी द्वारा सीमा खोले जाने के बाद यहां आया, तो चांसलर अंगेला मैर्केल की शरणार्थी नीति संकट में पड़ जाएगी. तब मुश्किल में पड़े लोगों के लिए सामाजिक दोस्ताना व्यवहार तंग हो जाएगा. तब यह जर्मनी में भी दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी सोच की बड़ी जीत होगी. तब खुला समाज अपने को बंद कर लेगा. तब घरेलू माहौल पथरा जाएगा. तब आजादी को अंदर से खतरा होगा.
निश्चित तौर पर आज जैसे दिन शांति और समझदारी बनाए रखने की जरूरत है. लेकिन फिक्रमंद रहना मुश्किल से मुश्किल होता जा रहा है.19 दिसंबर की शाम ऐसी शाम है जो जर्मनी को बदल देगी. कितना बदलेगी, ये समय बताएगा.
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