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एक माओवादी की डायरी

१२ फ़रवरी २०११

''माओवादी शिविरों मेंदिन भर की हाड़ तोड़ मेहनत करने वाली महिलाओं को रात में शीर्ष नेता यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करते हैं.'' ये बातें एक माओवादी डायरी से सामने आईं हैं.

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तस्वीर: DW

''माओवादी शिविरों में महिलाओं की जीवन सबसे कठिन है. उनका वहां जमकर शारीरिक शोषण किया जाता है. यह जीवन बेहद कठिन है. शिविरों में कुछ दिन गुजरते ही वे तमाम सपने और आदर्श ताश के पत्तों की तरह भरभरा कर ढह जाते हैं जिनके चलते महिलाएं इस संगठन में शामिल होती हैं.'' यह कोई कहानी नहीं बल्कि एक महिला माओवादी की डायरी के हिस्से हैं. राज्य में नक्सल आंदोलन के इतिहाल में पहली बार किसी माओवादी नेता की डायरी पुस्तक की शक्ल में सामने आई है. इसका प्रकाशन और विमोचन कोलकाता पुस्तक मेले के आखिरी दिन हुआ. यह डायरी लिखी है एक पूर्व माओवादी कमांडर शोभा मांडी ने. रोज रोज के शोषण से तंग आकर उसने बीते साल अगस्त में हथियारों समेत पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया था. फिलहाल वह पश्चिम मेदिनीपुर जिले में हथियार डालने वाले माओवादियों के पुनर्वास के लिए बने ट्रांजिट कैंप में रह रही है.

एक माओवादीर डायरी (एक माओवादी की डायरी)' शीर्षक बांग्ला में लिखी यह पुस्तक माओवादी शिविरों में खासकर आदिवासी महिलाओं की हकीकत का खुलासा करती है. शोभा ने बीते साल हथियार डालने के बाद सीपीआई (माओवादी) के राज्य सचिव कंचन समेत कई शीर्ष माओवादी नेताओं के खिलाफ बलात्कार की शिकायत दर्ज कराई थी. इस पुस्तक में शोभा की लिखी लघु कविताएं भी शामिल हैं. मेले में दूसरे नक्सल साहित्य के उलट इस पुस्तक का विमोचन बहुत गुपचुप तरीके से हुआ. इस पुस्तक में माओवादी शिविरों, जंगलमहल इलाके में नाकेबंदी और हथियार डालने के बाद शोभा मांडी की कुछ तस्वीरें भी हैं.

Buchmesse in Kolkata
पुस्तक मेले में एक माओवादी की डायरीतस्वीर: DW

लेकिन ट्रांजिट कैंप में रहते हुए शोभा ने प्रकाशकों से संपर्क कैसे किया? इस सवाल पर एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं, ''शोभा हमारी शरण में जरूर है. लेकिन वह आजाद है और किसी से भी संपर्क कर सकती है.'' पुस्तक में सीपीआई (माओवादी) संगठन और उसके ढांचे के बारे में काफी सूचनाएं हैं. शोभा ने लिखा है कि शीर्ष माओवादी नेता किशनजी संगठन में महिला काडरों के शोषण पर कोई ध्यान नहीं देते थे. उसने लिखा है, ''किशनजी ने एक खास राजनीतिक दल से जुड़े किसी भी व्यक्ति की हत्या करने का निर्देश दिया था. हमें कभी यह नहीं बताया गया कि आखिर बेकसूर लोगों की हत्या से क्या मिलेगा.''

बांकुड़ा जिले की कोएरपहाड़ी की जमादार मांडी की पुत्री शोभा वर्ष 2003 में संगठन में शामिल हुई थी. माओवादियों ने उसके परिवार को भरोसा दिलाया था कि संगठन में शामिल होने के बाद शोभा का जीवन बेहतर हो जाएगा. शोभा कहती है, ''हम गरीब थे. उनकी बातों में आकर मैं संगठन में शामिल हो गई. लेकिन वह जीवन का एक खौफनाक अनुभव रहा.'' हथियार डालते वक्त शोभा ने कहा था कि जंगल में उसका मानसिक और शारीरिक शोषण किया गया और उसे शीर्ष नेताओं के साथ सोने पर मजबूर किया गया. उसने किशनजी से भी इस बात की शिकायत की थी. लेकिन उन्होंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया.

लगभग सात साल तक इस खौफनाक दौर से गुजरने के बाद आखिर शोभा ने तय किया कि अब बहुत हो गया. उसने पुलिस के आला अधिकारियों से संपर्क किया और हथियार डाल दिए.

रिपोर्ट: प्रभाकर मणि तिवारी, कोलकाता

संपादन: ओ सिंह

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