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एक स्टार और एक बकरे के बीच कोलोन

१७ अगस्त २०१०

कोलोन शहर कार्निवल के लिए जितना मशहूर है, अपनी फ़ुटबॉल टीम के लिए नहीं. ऐसा बाहर के लोगों का कहना है. लेकिन कोलोनवासियों के लिए उनका क्लब एफ़सी कोलोन और कार्निवल दोनों अहम हैं. शायद दोनों में वे फ़र्क भी नहीं कर पाते.

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कोलोन का बेताज बादशाहतस्वीर: picture-alliance/dpa

क्या वजह है कि राष्ट्रीय टीम में तो लुकास पोडोल्स्की इतना अच्छा खेलता है, लेकिन जब अपने क्लब कोलोन के लिए खेलता है, तो बात नहीं बनती? पिछले सत्र के बाद कोलोन के फ़ैन्स अक्सर पूछ रहे थे. दरअसल पोडोल्स्की के पीछे खेल तैयार करने वाले मध्य मैदान के खिलाड़ी होने चाहिए, कोलोन में जो उन्हें नहीं मिलते हैं. लेकिन इटली के सैंपडोरिया के खिलाफ़ मैच में उन्हें आखिरी 18 मिनट के लिए मैदान में उतारा गया, गोल तो नहीं किया, लेकिन उनके खेल में शान दिख रही थी. उन्होंने पत्रकारों को बताया कि विश्वकप के बाद मिली छुट्टी में वह काफ़ी कसरत करते रहे. कोच स्वोनिमीर सोल्डो को यह जानकर ख़ुशी होगी.

कोलोन के बीयरखानों में अगर बात करने को कोई दूसरा मसला न मिले, तो या तो कार्निवल की तैयारी पर बहस होती है, या फिर एफ़सी कोलोन के खेल पर. लोग कार्निवल के दिनों के लिए तरसते हैं या फिर कोलोन के दागे गोल के लिए. इसलिए बातचीत लौटकर पहुंचती है पोडोल्स्की तक. कम से कम एक स्टार तो है.

वैसे एक स्टार एफ़सी कोलोन के पास हमेशा होता है. अपने स्टेडियम में खेल हो, तो वह 90 मिनट तक क्लब के पैविलियन में हाज़िर रहता है. हेनेस, एक बकरा, जो क्लब का शुभंकर है. कभी सर्कस की मालिक कारोला विलियम्स ने कार्निवल की मस्ती में एफ़सी कोलोन को एक बकरा तोहफ़े में दिया. क्लब के शुरुआती दिनों के मशहूर खिलाड़ी के नाम पर उसे हेनेस कहा गया. उसे शुभंकर यानी मैस्कट बनाया गया, क्लब के झंडे में उसकी तस्वीर बनाई गई. जब उसकी मौत हुई, तो नया बकरा लाया गया, उसका नाम भी हेनेस रखा गया, हेनेस द्वितीय. उसके बाद से तीसरा, चौथा, पांचवां हेनेस आता गया, और 2008 से हेनेस आठवें का राज चल रहा है. कोलोन फ़िल्म और टेलीविज़न का नगर है, यहां ऐक्टर-ऐक्ट्रेस तो बहुतेरे हैं, लेकिन सेलिब्रिटिज़ सिर्फ़ चार, कार्निवल का प्रिंस, उनकी सहचरी कुमारी कन्या (एक मर्द को यह रोल दिया जाता है), कार्निवल का किसान, और एफ़सी कोलोन का हेनेस.

दो स्थानीय क्लबों को मिलाकर 1948 में एफ़सी कोलोन की स्थापना की गई थी. तीन बार वह राष्ट्रीय चैंपियन रहा है, 1962 में, और बुंडेसलीगा बनने के बाद पहले ही साल, यानी 1964 में, और फिर 1978 में. पिछले 10 साल में से चार साल उसे दूसरी लीग में बिताने पड़े हैं. पिछले सत्र से वह फिर बुंडेसलीगा में है, तालिका में 12वें और 13वें स्थान पर. बहुत ज़्यादा सामने आने की गुंजाइश कम है, लेकिन पिछले दो सालों के सिलसिले को देखते हुए कहा जा सकता है कि नीचे उतरने का खतरा शायद नहीं है. शायद.

लेखः उज्ज्वल भट्टाचार्य

संपादनः ए जमाल