एशिया में मलेरिया की एक तिहाई दवाइयां नकली
२२ मई २०१२अमेरिका के राष्ट्रीय स्वास्थ्य केंद्र में फोगैर्टी इंटरनेशनल सेंटर के जोएल ब्रेमेन ने चेतावनी दी है, "यह नतीजे चौकाने वाले हैं और हम मांग करते हैं कि मलेरिया के लिए बनने वाली नकली और कम गुणवत्ता वाली दवाओं के उत्पादन की लगातार जांच की जाए." ताजा सर्वे को देखते हुए शोधकर्ताओं ने पाया कि दक्षिण पूर्वी एशिया के सात देशों में एक हजार सैंतीस सैंपल में से 36 फीसदी दवाइयां खराब थी. जबकि 30 फीसदी सैंपल्स में दवाइयों में जरूरी पदार्थ ही नहीं थे.
उधर 21 अफ्रीकी देशों में ढाई हजार नमूनों की जांच की गई. छह वर्गों वाली दवाइयों में से 20 फीसदी दवाएं नकली थीं और 35 फीसदी दवाइयों की गुणवत्ता कम थी. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक मलेरिया की खराब क्वालिटी वाली दवाएं बीमारी को खत्म करने में बड़ा रोड़ा हैं. 2010 में दुनिया भर में मलेरिया ने छह लाख पचपन हजार लोगों की जान ली थी.
मलेरिया की नकली या कम क्वालिटी वाली दवाइयों में अधिकतर आर्टेमिसिन की नकल हैं. मलेरिया के लिए बनने वाली दवाइयों में आर्टेमिसिन एक बड़ा नाम है.
मुश्किलें सिर्फ इतनी ही नहीं. कई देशों में लोग बिना डॉक्टर की पर्ची के यह दवाइयां खरीद सकते हैं. इसलिए इन दवाइयों की गुणवत्ता जांचने और नकल करने वालों को पकड़ना और मुश्किल हो जाता है. ब्रेमेन कहते हैं, "मलेरिया की दवाइयों की खराब क्वालिटी इस बीमारी को जड़ से उखाड़ने की कोशिशों और नियंत्रण के लिए की जाने वाली तेज कोशिशों में रोड़े खड़ा करेगा."
पिछले ही महीने सिएटल स्थित हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवेल्युएशन इंस्टीट्यूट ने जानकारी दी थी कि 2006 के दौरान कंबोडिया में पाया गया आर्टेमिसिन प्रतिरोधी मलेरिया थाइलैंड- म्यांमार की सीमा तक पहुंच गया है.
एएम/एमजे (एएफपी, रॉयटर्स)