ओबामाः गांधी गांधी रटते रटते गांधी भया न कोए
२३ सितम्बर २०११"मैं जानता हूं कि महात्मा गांधी और मार्टिन लूथर किंग के जीवन में कोई कमजोरी, कोई निष्क्रियता और कोई कपटता नहीं थी."
नोबेल शांति पुरस्कार लेते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का यह बयान बताता है कि उनकी शख्सियत पर महात्मा गांधी का किस कदर असर है. तभी तो मौका मिलने पर वह अपने अमेरिकी हीरो अब्राहम लिंकन और मार्टिन लूथर किंग को छोड़ गांधीजी के साथ डिनर पर जाना चाहते हैं. मौजूदा दौर में गांधी को जिस तरह ओबामा ने उकेरा है, वैसा किसी और विश्व नेता ने नहीं.
महात्मा गांधी कभी अमेरिका नहीं गए. बुलाया भी गया तो मना कर दिया. इसके लिए उनके पास ठोस वजह थी. अमेरिका में लगभग चौथाई सदी तक गांधीयन स्टडीज पढ़ाने वाले प्रोफेसर माइकल नागलर बताते हैं, “1930 के दशक में जब अमेरिका का एक अश्वेत प्रतिनिधिमंडल गांधीजी से भारत में मिला और अमेरिका चलने को कहा, तो उनका साफ जवाब था कि अगर वे ऐसा करते हैं, तो भारत में उनका मिशन फेल हो जाएगा और अमेरिका में भी उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा. लेकिन अगर वह भारत में काम जारी रखते हैं तो हो सकता है कि अमेरिका के अश्वेत आंदोलन को कुछ मदद मिल जाए.”
भारत की आजादी के बाद गांधी की परंपरा सबसे पहले अमेरिका में ही बढ़ी, जब गांधी के भक्त मार्टिन लूथर किंग ने अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए अश्वेत अमेरिकियों को उनका हक दिलाया. राष्ट्रपति ओबामा उन्हीं किंग से प्रभावित हैं और गांधी को अपना आदर्श मानते हैं.
ओबामा का गांधी प्रेम भारत दौरे पर भी दिखा. दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में अमेरिकी शास्त्र के प्रोफेसर चिंतामणि महापात्रा कहते हैं, “जब ओबामा भारत आए, उन्होंने मुंबई के गांधी म्यूजियम में 45 मिनट बिताए. किसी अमेरिकी राष्ट्रपति का 45 मिनट वहां रहना मायने रखता है. उन्होंने दिल्ली के राजघाट पर भी 20 मिनट का समय बिताया और कहा कि अगर गांधी नहीं होते तो शायद वह आज यहां खड़े न होते.”
भारत दौरे पर ओबामा ने भी गांधी भक्ति की तसदीक की, “मेरे और मिशेल (ओबामा की पत्नी) के लिए इस दौरे के खास मायने हैं. मेरे पूरे जीवन में, यहां तक कि शहरी गरीबों के लिए काम करते हुए भी मैंने हमेशा गांधीजी के जीवन से प्रेरणा ली है. उनके सादे लेकिन गूढ़ सबक से दुनिया को बदला जा सकता है.”
यह बात अलग है कि ओबामा मौजूदा विश्व में दो सबसे बड़े युद्धों के सेनापति हैं और उनकी अगुवाई में जो जंग चल रही है, वह मौजूदा विश्व की सबसे बड़ी हिंसा है, गांधी के रास्ते के बिलकुल विपरीत.
इराक, अफगानिस्तान में युद्ध और लीबिया की लड़ाई देख कर लगता है कि अब अहिंसा और गांधी के रास्ते पर चलने वाला कोई नहीं. लेकिन प्रोफेसर नागलर का कहना है कि अमेरिका सहित दुनिया भर में अहिंसा के लिए काम किया जा रहा है. अमेरिका में अहिंसा को बढ़ावा देने के लिए मेटा संस्था चला रहे प्रोफेसर नागलर का कहना है, “दुनिया भर में जो अहिंसक आंदोलन चल रहे हैं, उनके बारे में पता ही नहीं चल पाता है. मीडिया की मुख्यधारा इसकी रिपोर्टिंग नहीं करती और जब अरब क्रांति जैसा कुछ बड़ा हो जाता है, तो खबरें बनती हैं. हालांकि वह भी पूरी तरह अहिंसक आंदोलन नहीं है. मिस्र और सीरिया में जो कुछ हुआ, वह लीबिया से या यमन और बहरीन से बिलकुल अलग है. लेकिन मीडिया इतना परिपक्व नहीं कि वह इनका सही आकलन कर पाए कि कौन हिंसक है और कौन अहिंसक. हमारी संस्था इसके लिए काम कर रही है.”
प्रोफेसर नागलर का कहना है कि न सिर्फ मार्टिन लूथर किंग बल्कि उनसे पहले भी कई अश्वेत अमेरिकी गांधीजी के प्रभाव में भारत गए, जिसका असर अमेरिका में नागरिक अधिकारों की लड़ाई पर साफ देखा जा सकता है. हालांकि प्रोफेसर नागलर मौजूदा विश्व राजनीति से दुखी हैं, “यह तो कोई सवाल ही नहीं है कि अगर हम गांधी के बताए रास्ते पर चलें तो हमारे सामने सुनहरा भविष्य होगा और ऐसा नहीं करने पर एक अंधकारमय भविष्य. हमारे सामने अब भी विकल्प हैं लेकिन दुर्भाग्य से हमारा औद्योगिक लोकतंत्र लोगों को गुमराह कर रहा है. जनता को यह पता ही नहीं है कि हिंसा और अहिंसा के बीच में उनके पास चुनने का विकल्प भी है.”
मौजूदा दौर में गांधी अमेरिका के लिए प्रासंगिक हैं या नहीं. लॉस एंजिलिस यूनिवर्सिटी में इतिहास पढ़ाने वाले प्रोफेसर विनय लाल इस सवाल को ही खारिज कर देते हैं. उनका कहना है कि अहिंसा की राह दिखाने वाले गांधी पहले व्यक्ति नहीं थे लेकिन इसे जन आंदोलन बनाने वाले वह पहले शख्स थे, “उन्होंने हिंसा का मनोविज्ञान समझ लिया था. इसलिए आपके प्रश्न का उत्तर यह है कि जब हम इतिहास में आगे बढ़ेंगे, तो कभी ऐसा समय नहीं आएगा, जब गांधी कम या ज्यादा प्रासंगिक होंगे. हमें यह समझना होगा कि रिकॉर्डेड मानव इतिहास में गांधी सबसे बड़े व्यक्तित्वों में शामिल रहेंगे. क्योंकि गांधी ने मानव अस्तित्व के सामने अहिंसा को एक नीति के तौर पर, एक अकीदत के तौर पर, एक व्यवहार के तौर पर और एक विश्वास के तौर पर सामने ला दिया.”
मौजूदा विश्व में जब हर तरफ हथियार खड़क रहे हैं, लगता नहीं कि अहिंसा से बात बन सकती है. लेकिन प्रोफेसर लाल का कहना है कि नीतियां अचानक नहीं बदल सकतीं, “गांधी के बारे में आपको एक बात समझनी होगी कि आप अहिंसा यूं ही शुरू नहीं कर सकते, आपको इसके लिए तैयार होना पड़ता है. आपको सोच बदलनी होती है, अपने जीने का तरीका बदलना होता है. इसके बाद अगर आप अहिंसक प्रतिरोध का जनांदोलन छेड़ना चाहते हैं, तो आपको उस आंदोलन की तैयारी करनी होती है और इसमें लंबा वक्त लगता है.”
अहिंसक आंदोलनों के बारे में अमेरिकी विद्वान थेयोडोर रोजाक का एक बयान बड़ा मशहूर है कि लोग अहिंसा को हफ्ते भर आजमाते हैं और जब यह काम नहीं करता, तो हिंसा पर लौट जाते हैं, जो शताब्दियों से काम नहीं करता आया है.
जहां तक राष्ट्रपति ओबामा का सवाल है, प्रोफेसर लाल का कहना है, “ओबामा को किसी भी तरह से महात्मा गांधी के रास्ते पर चलने वाला नहीं कहा जा सकता, किसी भी तरह से नहीं. मुझे लगता है कि मौजूदा दौर में नेता बनने के लिए आपको खास तरह का इंसान बनना पड़ता है. और जहां तक ओबामा का सवाल है, वह उन पेशेवर नेताओं से बहुत अलग नहीं हैं, जिन्हें हमने हाल के दशकों में देखा है.”
वैसे यह बात अलग है कि राष्ट्रपति बनने के आठ महीने के भीतर ही ओबामा को नोबेल का शांति पुरस्कार मिल गया, जबकि पांच बार नामांकन के बाद भी गांधीजी को इसके काबिल नहीं समझा गया और अब नोबेल कमेटी हर साल इसका प्रायश्चित करती है.
रिपोर्टः अनवर जे अशरफ
संपादनः ए कुमार