ओबामा हू मुलाकातः मुद्रा नीति मुख्य एजेंडा
१८ जनवरी २०११मंगलवार से चीनी राष्ट्रपति हू अमेरिका के सरकारी दौरे पर हैं. उनकी इस यात्रा को 30 साल पहले देंग शियाओपिंग के दौरे के बाद अमेरिकी चीनी संबंधों में सबसे अहम घटना माना जा रहा है. हालांकि अमेरिका और चीन के रिश्ते काफी समय से तनावपूर्ण चल रहे हैं.
तनाव की वजह
हू और ओबामा की मुलाकात में खास तौर से आर्थिक मुद्दों पर चर्चा होगी. दोनों देश एक दूसरे पर विश्व अर्थव्यवस्था में बाधा खड़ी करने का आरोप लगाते हैं. अमेरिका का कहना है कि चीन व्यापारिक लाभ के लिए अपनी मुद्रा का मूल्य जानबूझ कर कम रखता है जो ठीक नहीं है. साथ ही ओबामा ने चीन को चेताया है कि वह आर्थिक वृद्धि के लिए सिर्फ निर्यात पर निर्भर न रहे. वहीं चीन के अधिकारी आरोप लगाते हैं कि अमेरिका अपने निर्यात को बढ़ाने के लिए डॉलर को कमजोर करने की नीति अपना रहा है और मुद्रा मूल्य में अंतर को कम करने के लिए युआन की कीमत में इजाफा करने के लिए दबाव डाल रहा है.
वहीं कुछ अमेरिकी राजनेताओं मांग कर रहे हैं कि अगर चीन अपनी मुद्रा का मूल्य नहीं बढ़ाता है तो उसके खिलाफ कदम उठाने के लिए कानून बनाया जाए. सोमवार को कुछ अमेरिकी सीनेटरों ने कहा कि वक्त आ गया है जब कांग्रेस को चीन की मुद्रा नीति के खिलाफ कोई कदम उठाना चाहिए.
पिछले हफ्ते अमेरिकी वित्त मंत्री टिमोथी गाइथनर ने इस मुद्दे पर नई तरकीब सुझाई. उन्होंने कहा कि यह चीन के हित में होगा कि वह युआन की कीमत बढ़ाए. इससे चीन अपने यहां मुद्रास्फीति को काबू कर सकता है. वहीं हू यह आश्वासन पाने की कोशिश करेंगे कि अमेरिका का बाजार चीनी उत्पादों के लिए खुलेगा.
राजनयिक मुद्दे
अमेरिका चीन पर इस बात के दवाब डाल रहा है कि वह उत्तर कोरिया के खिलाफ कदम उठाए. खास कर अमेरिका चाहता है कि उत्तर कोरिया अपना विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम त्यागे और दक्षिण कोरिया के द्वीप को निशाना बनाने और दक्षिण कोरियाई पोत को डुबोने जैसे कदम भी न उठाए. पिछले साल मार्च में पोत डुबोने की घटना में 46 दक्षिण कोरियाई नौसैनिक मारे गए.
चीन भी कोरियाई प्रायद्वीप में स्थिरता को लेकर चिंतित है. वह चाहता है कि उत्तर कोरिया को लेकर अमेरिका भी अपने रुख में कुछ नरमी लाए. चीनी मामलों के विशेषज्ञ बोनी ग्लासर का कहना है, "इस वक्त लगता है कि चीन उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम को लेकर छह पक्षीय वार्ता को बहाल करने की कोशिश कर रहा है."
परमाणु कार्यक्रम के मुद्दे पर ईरान के खिलाफ कदम उठाने के लिए भी अमेरिका चीन का साथ चाहता है. लेकिन चीन इस मामले में अमेरिका जैसी सख्ती के खिलाफ रहा है. चीन ईरान को अपना सहयोगी समझता है और उसके बचाने के लिए राजनयिक माध्यमों का इस्तेमाल करता रहा है.
देश की छवि
चीनी अधिकारियों की यह भी चिंता है कि अमेरिका एशिया के दूसरे उभरते हुए देशों के साथ रिश्ते कायम कर रहा है. खास कर भारत के साथ अमेरिकी रिश्तों को कई जानकार चीन को नियंत्रित करने की कोशिश के तौर पर देखते हैं. अमेरिका में चीन को जिस तरह एक आक्रामक देश के तौर पर देखा जाता है, चीनी अधिकारी उससे भी खुश नहीं हैं.
दूसरी तरफ एशिया में अमेरिका के अहम साझीदार चीन की आक्रामक नीतियों को लेकर परेशान हैं. चीन और जापान के बीच पूर्वी चीन सागर में कई द्वीपों को लेकर विवाद है. इसके अलावा चीन बड़े पैमाने पर अपनी सेना का आधुनिकीकरण कर रहा है जो जापान और दक्षिण कोरिया के लिए चिंता का सबब बन रहा है. हू के अमेरिका दौरे में किसी बड़ी कामयाबी की तो उम्मीद नहीं है, लेकिन इससे दोनों देशों के बीच तनाव को घटाने में मदद मिलेगी
विश्व बैंक को मात
इस बीच चीन ने विकासशील देशों को लोन देने के मामले में विश्व बैंक को पीछे छोड़ दिया है, जो उसकी विशाल आर्थिक ताकत का साफ संकेत है. चीन के सरकारी विकास बैंक और चीन आयात निर्यात बैंक ने 2009 और 2010 में विकासशील देशों की सरकारों को 110 अरब डॉलर देने पर सहमत जताई. वहीं 2008 से 2010 के बीच विश्व बैंक की विभिन्न शाखाओं ने इन सरकारों को 100.3 डॉलर दिए. चीनी ऋण में ज्यादातर लेन देन युआन में होगा क्योंकि चीन चाहता है कि उसकी मुद्रा का दुनिया में प्रसार हो. चीन विकास बैंक और चीन आयात निर्यात बैंक विश्व बैंक से ज्यादा आकर्षक दरों पर ऋण देते हैं.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः महेश झा