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कंप्यूटर गेम्स और महिलाओं का नाता

२६ अगस्त २०१२

जर्मनी की एक तिहाई आबादी वीडियो गेम खेलती है और इसमें से आधी महिलाएं हैं. और उनके खेलने का तरीका बिलकुल अलग होता है, लिहाजा कंप्यूटर गेमों को विकसित करने के लिए महिलाओं की दरकार बढ़ गई है.

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तस्वीर: DW

कैरोलीन गेपर्ट जब बर्लिन के शोनेसबर्ग में अपने दफ्तर का दरवाजा खोल रही हैं, तो उनके चेहरे पर हल्की से मुस्कान है. वह अपनी छह साथियों के साथ मिल कर आभासी दुनिया में नए आयाम तैयार करना चाहती हैं. एक ऐसी दुनिया, जो रंगबिरंगी भी है लेकिन साथ ही बेहद जटिल और रहस्यों से भरी है.

जर्मनों में वीडियो गेम खेलने का शौक बना हुआ है लेकिन धीरे धीरे हिंसक खेलों की तरफ से उनका रुझान खत्म हो रहा है. इसकी एक वजह महिलाओं का आगे आना भी है. वीडियो गेम अब सिर्फ बच्चों और पुरुषों के लिए नहीं, बल्कि महिलाओं के लिए भी है. वे हिंसक खेलों की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देती हैं.

महिलाएं आम तौर पर ऐसा गेम खेलना पसंद करती हैं, जो उन्हें सुकून दे और खूनखराबा की जगह सामुदायिक भावनाओं को बढ़ाने में मदद करे. वे सोशल नेटवर्किंग साइट से जुड़े ऐसे गेम में हिस्सा लेना चाहती हैं, जिसमें उनके साथ दूसरे लोग भी शरीक हो सकें.

Jo-Mei Berliner Entwickler von Computerspielen
कैरोलीन गेपर्टतस्वीर: DW

गेपर्ट का कहना है, "इन खेलों में शूटिंग और हिंसा नहीं होती. औरतों के लिए माहौल बहुत जरूरी होता है और वे आराम से रहना चाहती हैं." गेपर्ट का कहना है कि रंग और आवाज की बेहद अहमियत होती है. वह काफी कम उम्र से ही वीडियो गेम खेल रही हैं. उनका कहना है कि कई बार उन्होंने हिंसक खेल भी खेले, जिसमें विरोधियों को मारना पड़ता है.

लेकिन वक्त बदलने के साथ औरतों के लिए गेम तैयार करने वालों की जरूरत भी बढ़ गई है. अभी तक ज्यादातर गेम मर्द ही डिजाइन किया करते हैं. हाल के दिनों में औरतों की संख्या बढ़ी है, फिर भी जर्मन व्यापार संगठनों के आंकड़ों के मुताबिक 20 प्रतिशत को पार नहीं कर पाई है. इसके लिए महिलाओं को ट्रेनिंग देने की जरूरत है. 40 सरकारी और निजी संस्थाएं इसकी डिग्री देती हैं.

बर्लिन का गेम्स अकादमी 1 सबसे पुराने संस्थाओं में एक है और गेपर्ट ने 10 साल पहले यहीं से करियर की शुरुआत की. 18 साल की उम्र में कॉमिक किरदार बनाने वाली गेपर्ट उन दो महिलाओं में शामिल थीं, जिन्होंने गेम्स डिजाइनर की डिग्री हासिल की. उनका कहना है, "उस वक्त वहां ज्यादा औरतें नहीं थीं. हम किसी दूसरे ग्रह से आए प्राणी की तरह लगते थे."

लेकिन वक्त बदला है. अब गेपर्ट ने अपनी पार्टनर बोरिस मुनसर के साथ छोटी सी कंपनी खोल ली है, नाम है जो माई. उन्होंने मिल कर पहला गेम डेवलप किया है, जिसका नाम कोयोटल रखा है. गेपर्ट का कहना है कि उन्हें समझ नहीं आता कि इस बिजनेस में इतनी कम औरतें क्यों हैं, "मेरी टीम एक नई दुनिया बना सकती हैं और लोगों को इसमें मजा आएगा. यह दुनिया का सबसे अच्छा काम है."

रिपोर्टः थेरेसा ट्रॉपर/एजेए

संपादनः एन रंजन