कतराते इतराते क्रिकेट स्टार
२४ नवम्बर २०१०न्यूजीलैंड के खिलाफ वनडे सीरीज में सचिन, सहवाग, जहीर, भज्जी और अब कप्तान धोनी भी नहीं खेलेंगे. इस सीरीज के बाद दक्षिण अफ्रीका का मुश्किल सफर आ रहा है. फिर विश्वकप भी शुरू होने वाला है. खिलाड़ियों को तरोताजा रखना है. बात समझ में आने वाली है.
इसमें दो राय नहीं कि भारतीय क्रिकेट खिलाड़ियों को बहुत अधिक क्रिकेट खेलना पड़ रहा है. चोट की वजह से अगर बाहर न रहना पड़ा हो, तो पहली पांत के जमे जमाए खिलाड़ियों को इस साल बांग्लादेश, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट और वनडे सीरीज खेलने पड़े हैं, अब दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ खेलना पड़ेगा. इसके अलावा आईपीएल के मैच भी रहे हैं. ऐसी हालत में खिलाड़ियों को आराम देना जरूरी था, शायद रोटेशन एक रास्ता हो सकता था. लेकिन उसके बदले पहली पांत और दूसरी पांत के सिद्धांत पर चला गया है. और यह किसी हद तक बेंच स्ट्रेंथ को मजबूत करने में आड़े आता है. और यह एक ऐसे समय में हो रहा है, जबकि ख़ासकर बल्लेबाजी में कई युवा खिलाड़ी अच्छे प्रदर्शन के बावजूद इंतजार कर रहे हैं.
चयनकर्ताओं के लिए भी परेशानी है. पहली पांत के खिलाड़ियों के प्रदर्शन के स्तर को देखते हुए उन्हें टीम से बाहर रखना मुमकिन नहीं है. कुछ खिलाड़ी अब सिर्फ टेस्ट के लिए रह गए हैं, मसलन द्रविड़ या लक्ष्मण. सचिन भी अपना पूरा जोर टेस्ट मैचों पर दे रहे हैं. ट्वेंटी20 से वह दूर रहते हैं, वनडे चुन चुनकर खेलते हैं. जहीर और भज्जी को भी बीच-बीच में आराम करने की मोहलत दी जाती है. लेकिन कप्तान धोनी अब तक लगभग सभी मैचों में खेलते रहे हैं. पहली बार न्यूजीलैंड के साथ वनडे सीरीज में उन्हें आराम का मौका मिल रहा है.
और तुरंत आ जाता है सुरेश रैना का सवाल. वह सभी सीरीजों में, सभी मैचों में रहे हैं. वनडे में इतने अधिक जमे हुए खिलाड़ियों को बाहर रखा गया है कि रैना का मौका नहीं आया. टेस्ट में उनकी बल्लेबाजी की कमजोरियां खुलकर सामने आ गई हैं. दक्षिण अफ्रीका में उनके शरीर को निशाना बनाकर और अधिक तेज गेंदबाजी की जाएगी. कप्तान धोनी भी कहते हैं कि रैना के खेल में थकावट के निशान दिख रहे हैं. शायद उन्हें सेंचुरियन टेस्ट की टीम से बाहर रखा जाएगा.
खिलाड़ियों की भी वरीयताएं हैं. जैसा कि देखा जा रहा है, टेस्ट और ट्वेंटी20 में तो उनकी दिलचस्पी बनी हुई है, लेकिन वनडे में कुछ कम, अगर वह आईसीसी या वर्ल्डकप का टूर्नामेंट न हो. इसी गलियारे में नई प्रतिभाओं के लिए थोड़ी सी जगह बन रही है.
बात सही है कि खिलाड़ियों को आराम देने की कोशिश की जा रही है. लेकिन क्या किसी सोची समझी रणनीति के तहत ऐसा किया जा रहा है, ताकि वे भी फिर से तरोताजा हो सके, और आनेवाले कल के लिए नये सितारे भी उभर सकें?
लेख: उज्ज्वल भट्टाचार्य
संपादन: ए कुमार