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'कमजोर हो रहा है तालिबान'

१२ नवम्बर २०१२

अफगानिस्तान में तालिबान बहुत कमजोर हो गया है. अफगानिस्तान में अंतरराष्ट्रीय सेना के प्रवक्ता जर्मन सेना के जनरल गुंटर काट्स ने जर्मन चैनल एआरडी से बातचीत में यह बात कही.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

तालिबान कितना मजबूत है? अफगानिस्तान के भविष्य के लिए यह एक अहम सवाल है. अंतरराष्ट्रीय सेना आईसैफ के प्रवक्ता गुंटर काट्स साफ साफ कहते हैं कि तालिबान बहुत कमजोर हो गया है. काट्स जर्मन चैनल एआरडी के साथ काबुल से बात कर रहे थे. नाटो के मुताबिक अफगानिस्तान में सुरक्षा स्थिति पहले से बेहतर हो गई है. काट्स का कहना है कि पिछले तीन महीनों में बीते साल के मुकाबले 15 फीसदी कम हमले हुए हैं और अक्टूबर में पिछले साल के मुकाबले 20 प्रतिशत कम हमले हुए हैं.

Britische Soldaten in Afghanistan ISAF 2012
तस्वीर: picture-alliance/dpa

हालांकि आईसैफ केवल उन हमलों को अपनी गिनती में शामिल करता है जिनमें विदेशी सैनिकों को निशाना बनाया गया हो. हमलों में मारे गए आम लोगों को इसमें शामिल नहीं किया जाता है. काट्स का कहना है कि पिछले तीन महीनों में 1,100 आम लोग मारे गए हैं जो बहुत ज्यादा है. 2014 के बाद अफगान सैनिक किस हद तक अपने देश की सुरक्षा को संभालने के काबिल बनेंगे या नहीं, यह चिंता अंतरराष्ट्रीय समुदाय को परेशान कर रही है. "पहले तो हमें यह समझना होगा कि तालिबान तब भी रहेगा. और अफगान सेना को उनके खिलाफ लड़ते रहना होगा." हालांकि काट्स कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय सेना अफगानिस्तान की मदद करती रहेगी और अफगान सेना को अकेला महसूस करने का मौका नहीं मिलेगा.

Bundeswehrsoldaten Panzer
तस्वीर: dapd

लेकिन अगले दो सालों में बहुत सारी परेशानियों को खत्म करना है, ऐसे हादसों को होने से रोकना है जिसमें अफगान सैनिक अंतरराष्ट्रीय सैनिकों पर हमला करते हैं. काट्स के मुताबिक इस तरह के सैनिकों को तालिबान हमेशा अपना बताने की कोशिश करता है क्योंकि इससे वह यह संकेत देना चाहता है कि वह सेना में भी घुस चुका है. हालांकि काट्स अपनी तरफ से भी हमलों को रोकने की कोशिश कर रहे हैं, "मिसाल के तौर पर मैं गोलियों से भरी पिस्तौल के साथ मेज पर बैठा हूं और यहां सारे आईसैफ सैनिकों को यह आदेश हैं, कैंप में ही नहीं बल्कि पूरे देश में."

नाटो सैनिक और अफगान सैनिक इस बीच एक दूसरे की संस्कृतियों को समझने की कोशिश कर रहे हैं ताकि दोनों को पता चले कि किसे क्या बात पसंद नहीं है. सोचने वाली बात है कि अफगानिस्तान में 10 साल रहने के बाद अब जाकर नाटो इस तरह के कार्यक्रम आयोजित कर रहा है. लेकिन अब भी अफगानिस्तान में निकलने को दो साल बाकी हैं और आलोचक कहते हैं कि भले देर से हो रहा हो लेकिन कम से कम हो तो रहा है.

रिपोर्टः काई क्युस्टनर/एमजी

संपादनः एन रंजन

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