कम्युनिस्ट उत्तर कोरिया में गहरा जातिभेद
८ जून २०१२एक नई रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर कोरिया में साम्यवादी व्यवस्था के बावजूद समाज राजनीतिक वर्गों में बंटा हुआ है जो मानवाधिकार हनन का सबसे बड़ा कारण है. वॉशिंगटन की एक संस्था, 'कमेटी ऑफ ह्यूमन राइट्स इन नॉर्थ कोरिया' नाम के संगठन ने मार्क्ड फॉर लाइफ रिपोर्ट में ये दावा किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर कोरिया की एक तिहाई जनता, यानी दो करोड़ 30 लाख लोग दासता में जी रहे हैं.
यहां समाज में वर्गभेद करने वाली सोंगबुन व्यवस्था तो कई दशकों से चली आ रही है. यहां समाज में लोगों का विभाजन वफादार और अविश्वसनीय या हिंसक के रुप में होता है. और ये तय होता है जाति और जन्म से. वैसे तो 1990 में पड़े अकाल के दौरान उत्तर कोरिया के अधिकतर हिस्सों में यह व्यवस्था खत्म हो गई थी लेकिन रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अभी भी यह प्रथा मौजूद है..
आबादी का 28 फीसदी हिस्से को वफादार माना गया है जबकि 45 फीसदी हिस्से को ढुलमुल और 27 फीसदी को हिंसक. देश की 3 मुख्य जातियां 51 श्रेणियों में विभाजित हैं. इन्ही विभाजन के आधार पर वहां की सरकार लोगों से नौकरी, घर और खाद्य पदार्थों के वितरण में भेदभाव करती है. सियोल में रहने वाले ली सुंग मिन से बातचीत के आधार पर एपी समाचार एजेंसी ने लिखा कि ली के साथ इसलिए भेदभाव किया जाता था कि उनके दादाजी ने युद्ध के दौरान जापान का साथ दिया. ली के मुताबिक, "उत्तर कोरिया में कोई भी सोंगबुन से बाहर नहीं है." इस व्यवस्था में ऊपर जाना आसान नहीं है. इसके लिए किम परिवार की सत्ता और सत्ताधारी वर्कर्स पार्टी की आजीवन सेवा करनी पड़ती है.
ये रिपोर्ट उन 75 लोगों से साक्षात्कार के बाद तैयार की गई है जो देश छोड़कर भाग चुके हैं. उत्तरी कोरिया के समाज में उन लोगों को वफादार माना जाता है जिन्होने 1910-45 में जापान के खिलाफ और 1950-53 में दक्षिण कोरिया के खिलाफ युद्द में भाग लिया था. इन लोगों को प्योंगयांग में रहने और अच्छी पढ़ाई के साथ-साथ अच्छे रोजगार का मौका मिलता है. हालांकि उत्तर कोरिया की सरकार किसी भी तरह के भेदभाव से इनकार करती रही है.
जिन लोगों को हिंसक या दुश्मन जैसा माना जाता है वे वो लोग हैं जिनके पूर्वजों ने युद्ध में जापान का साथ दिया था या जिनके परिवार के लोग दक्षिण कोरिया भाग गए हैं. धार्मिक नेताओं और जमींदारों को भी शत्रु माना जाता है. और उन्हें कठिन मेहनती काम करने के लिए दिए जाते हैं..
पुलिस के पास हर उस आदमी का रिकॉर्ड रहता है जिसकी उम्र 17 साल से ज्यादा है. कुछ विषेषज्ञ मानते हैं कि 1990 के दौर में जब अकाल पड़ा और राशन वितरण की पूरी व्यवस्था चरमरा गई थी तब सोंगबुंग प्रथा भी कमजोर हो गई थी. लेकिन समाप्त नहीं हुई थी. किसी न किसी रूप में सोंगबुंग अभी भी मौजूद है.
वीडी/एएम (एएफपी,एपी)