कम ख़पत ज़्यादा मुनाफ़ा: ग्रीन तकनीक
२५ मार्च २००९इस दौड़ में आईबीएम, माइक्रोसॉफ़्ट जैसी बड़ी कंपनियों से लेकर छोटी छोटी कंपनियां तक सब शामिल हैं. इसे नाम दिया गया है ग्रीन टेक्नोलजी यानी हरित तकनीक.
आईबीएम, कंप्यूटर की सबसे जानी मानी कपंनियों में से एक है. यह कंपनी दुनिया भर में अपने ऊर्जा बचाने वाले प्रोजेक्ट्स को लेकर आई है. कंप्यूटर उत्पादन के लिए मशहूर कंपनी आईबीएम ने ऊर्जा बचाने के लिये ग्राहकों को प्रोत्साहित करने वाला एक मॉडल तैयार किया है कंपनी के ग्रीन प्रोग्राम की मैनेजर मारियॉन ज़ाइन्डल बताती हैं,
“ हम अपने ऊर्जा बचाने वाले मॉडल के ज़रिये न सिर्फ निजी संस्थानों बल्कि शहरों , सार्वजनिक इमारतों के लिये नए प्रोजेक्ट्स बनाते हैं और देखते हैं कि किस तरह से ऊर्जा बचाई जा सकती है, कार्बन डाईऑक्साइड गैस का उत्सर्जन कम किया जा सकता है . साथ ही हम ये भी देखते हैं कि कहां सबसे ज़्यादा विकास संभव है .”
कंपनियों को न केवल ये बताया जाता है कि ऊर्जा की बचत कहां संभव है बल्कि ये भी कि किस तरह से वे आगे बढ़ें कि उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा हो. ये छोटे छोटे साठ बाई साठ के घरों की बात नहीं हो रही ये बात है मोहल्लों, कॉम्प्लैक्सों और शहरों की भी. ज़ाइन्डल ने जापान का उदाहरण दिया
“ सिर्फ़ एक उदाहरण मैं आपको दे सकती हूं. जापान में हमने पांच ग्रीन बिल्डिंग्स बनाई हैं . आईबीएम के आर्किटेक्चर के साथ और ये कंम्प्युटर से जुड़े दफ़्तर नहीं बल्कि बिलकुल सामान्य इमारते हैं .”
जापान उच्च तकनीक का इस्तेमाल करने वाला एक ऐसा देश है जहां हर क्षेत्र में नए विचारों को शामिल किया जाता है चाहे वह खेती हो, रोबोट हो या फिर ऊर्जा बचाने वाला कोई प्रोजेक्ट हिताची कंपनी के मासाकितो ने बताया कि उनका प्रोजेक्ट है अगले पांच साल में बड़ी इमारतों में ऊर्जा की खपत में आधे से ज़्यादा की कमी लाना और वो बीस फ़ीसदी की कमी लाने में सफल रहे हैं .
“ ऊर्जा बचाने वाले यूपीएस , एयर कंडीशन्स , ट्रांसफॉर्मर्स का निर्माण करते हैं जो ज़्यादा कार्यक्षम होते हैं .”
ऐसे ही जर्मनी के अर्थव्यवस्था और तकनीक मंत्रालय का ऊर्जा विभाग ई एनर्जी नई संभावनाओं पर विचार कर रहा है और हमने ई एनर्जी के बीएयूम शोध संस्थान के अध्यक्ष और सहयोगी लुडविग कार्ग से बातचीत की उनके नए प्रोजेक्ट इलेक्ट्रोमोबेलिटी के बारे में . इसके तहत उन्होंने बिजली से चलने वाली कार दिखाई . क्या एशिया जैसे बाज़ार जहां बिजली घरों में ही नहीं है वहां ऐसी कारों का क्या भविष्य है तो उनका कहना था कि जो ग़लती हमने की है वह एशिया न करे . क्योंकि एशिया का बाज़ार बढ़ रहा है ऐसे में अगर वे तेल पर निर्भर रहते हैं तो जलवायु और पर्यावरण को बचाने की उनकी सारी कोशिशें धूल में मिल जाएंगी. उनके मुताबिक इसका उपाय सौर ऊर्जा के विकल्प मे तलाशा जा सकता है.
बाज़ार में ग्रीन तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ़ पर्यावरण के लिये फ़ायदेमंद तकनीक विकसित करना नहीं है बल्कि कई बार ये कंपनी की इमेज के लिये भी ज़रूरी होता है . आईबीएम की मारियॉन ज़ाइन्ड्ल बताती हैं कि “ इमेज की बात करें तो बैंकों में ये सबसे बड़ा मुद्दा होता है कि लोगों में विश्वास पैदा हो. या फिर आप एक ऐसी कंपनी हैं जिन्हें स्पांसर्स की तलाश है . इस तरह की ग्रीन तकनीक का इस्तमाल करना साबित करता है कि आप नए विचार रखते हैं और अक्सर लोग ये भी सोचते हैं कि अगर आप ऊर्जा बचाने में नई तकनीक का उपयोग कर रहे हैं तो और क्षेत्रों में भी आप आगे होंगे . तो कई बार ये आपकी छवि से भी जुड़ा होता है .”
भारत जैसे विकासशील देशों में ये ग्रीन तकनीक कहां तक औऱ कितनी जल्दी इस्तेमाल की जा सकती है, इस पर पर्यावरण वादियों की नज़रें भी लगी हैं क्योंकि बात सिर्फ़ पहल की नहीं, पैसे की भी है. जर्मनी जैसे धनी देशों के लिये ये तकनीक अभी महंगी है तो भारत में इसे आनन फानन में ले आना इतना सहज तो नहीं लगता.
रिपोर्ट : आभा मोंढे
एडीटर : एस जोशी