करुण चंडोकः फ़ॉर्मूला वन में भारत की नई उम्मीद
१२ मार्च २०१०कीप द फेथ, यक़ीन बनाए रखो.... शायद अमेरिकी बैंड बॉन जोवी का यही गाना करुण चंडोक की ज़िंदगी का मॉटो हो. जॉन बॉन जोवी ही करुण के पसंदीदा गायक हैं. छब्बीस साल के चंडोक उनके गाने सुनते, फ़िल्में देखते बड़े हुए हैं और तैराकी और साइक्लिंग के शौकीन हैं.
भारत में जब हर तरफ़ क्रिकेट की बात हो रही थी, चेन्नै के चंडोक अपने आदर्श माइकल शूमाकर की रेस देखा करते थे. चंडोक तब सिर्फ़ सात साल के थे, जब शूमाकर ने उनीस सौ इक्यानबे में अपनी रेस जीती. शूमाकर जीतते रहे, चंडोक की दीवानगी बढ़ती रही. और इस साल ऐसा मौक़ा भी आ गया, जब चंडोक और शूमाकर दोनों साथ साथ रेसिंग ट्रैक पर उतरे.
सोलह साल की उम्र में चंडोक भारत के नेशनल चैंपियन बन गए. ऐसे देश में जहां एक भी प्रोफ़ेशनल रेस ट्रैक नहीं है, चंडोक को आगे का करियर बढ़ता नहीं दिखा और उन्होंने जीपी टू में हिस्सा लेने के लिए यूरोप का रुख़ किया. पर इसी बीच वह अपने वज़न पर क़ाबू नहीं रख पाए और एक वक्त ऐसा आया, जब वह लगभग सौ किलो के हो गए. भारी भरकम शरीर भला रेस में कैसे साथ देता. चंडोक ने फिर मेहनत की और लगातार डाइटिंग से अपना वज़न तीस किलो तक घटा लिया.
यूरोप में ही चंडोक की दोस्ती ब्राज़ील के ब्रुनो सेना से हुई, जो ब्राज़ील के महान ड्राइवर आयर्टन सेना के भतीजे हैं. उनीस सौ चौरानबे में आयर्टन सेना की मौत फ़ॉर्मूला वन ग्रां प्री की रेस के दौरान हो गई थी. बहरहाल, चंडोक और सेना मिल कर इस बार स्पैनिश टीम हिस्पानिया रेसिंग की स्टीयरिंग संभाल रहे हैं.
लेकिन चंडोक के सामने चुनौतियां बड़ी हैं. भारत के पहले फ़ॉर्मूला वन ड्राइवर नारायण कार्तिकेयन की ही तरह चंडोक भी बेहतरीन ड्राइवर माने जाते हैं लेकिन फ़ॉर्मूला वन की कठिन परीक्षा में बहुत कुछ साबित करना पड़ता है और बड़े स्पांसरों और टीमों को भी साधना पड़ता है. करुण एक रेसर परिवार से आते हैं, जिनके पिता और दादा भी रेस ड्राइवर रह चुके हैं. उनके परिवार का फ़ॉर्मूला वन के मालिक बर्नी एकेल्सटोन से अच्छे रिश्ते हैं और इन वजहों से चंडोक पर कई आरोप भी लगते हैं.
लेकिन शायद यह कनेक्शन चंडोक को दूसरा कार्तिकेयन बनने से बचा ले. बेहतरीन प्रतिभा के धनी नारायण कार्तिकेयन ने 2005 में जॉर्डन टीम के साथ फ़ॉर्मूला वन में क़दम रखा लेकिन एक साल बाद किसी टीम ने उन्हें नहीं लिया. यहां तक कि भारतीय उद्योगपति विजय माल्या ने भी विदेशी ड्राइवरों पर ही भरोसा किया. कार्तिकेयन के करियर का अंत हो गया लेकिन अब चंडोक से उम्मीदें जाग रही हैं. ख़ास तौर पर तब, जब भारत में अगले साल से फ़ॉर्मूला वन की रेस शुरू हो सकती है.