कलेजा चीर गया आरफा का जाना
१६ जनवरी २०१२रिश्तेदार जार जार रो रहे थे. उसे जरा भी जानने वालों की आंखें नम हो चुकी थीं. हंसती खिलखिलाती आरफा यूं तो रुखसत होने नहीं आई थी. अभी तो उसकी सारी जिंदगी पड़ी थी, अभी तो वह बस 16 साल की थी.
आरफा सिर्फ पाकिस्तान या एशिया की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की शान थी. वह माइक्रोसॉफ्ट की सबसे कम उम्र की पेशेवर थी. इस छोटी सी जिंदगानी में भी उसने सात साल बाकायदा माइक्रोसॉफ्ट के लिए काम किया. अपनी मुलाकात में बिल गेट्स को शानदार तरीके से प्रभावित कर चुकी थी और कंप्यूटर की मुश्किल से मुश्किल बारीकी उसके बाएं हाथ का खेल था.
मिर्गी का दौरा कभी जानलेवा तो नहीं होता. लेकिन आरफा के साथ कुदरत को यही मंजूर था. 22 दिसंबर को जो दौरा पड़ा, आरफा करीम रंधावा उससे बाहर नहीं आ पाई. वह कोमा में चली गई, जिसके बाद उसे लाहौर के मिलिट्री अस्पताल में भर्ती किया गया. 14 जनवरी को उसने दम तोड़ दिया. बाप अमजद करीम रंधावा भले ही पाकिस्तान के फौजी अफसर हों लेकिन बेटी को गंवाने पर उनका भी कलेजा मुंह को आ गया. आंसू रोके न रुक रहे थे. बस इतना कह पाए, "वह तो खुदा ने हमें तोहफा दिया था. वह खुदा का तोहफा था, उसने वापस ले लिया."
आरफा उनके लिए नाज की वजह तो बन ही गई है, "मैं इस बात पर फख्र करता हूं कि मैं दुनिया का इकलौता इंसान हूं, जिसकी बेटी सिर्फ नौ साल की उम्र में माइक्रोसॉफ्ट की पेशेवर सर्टिफिकेट पाने वाली लड़की थी." उन्हें अफसोस है कि उम्र से कहीं आगे चलने वाली आरफा को अब और फलते फूलते वह नहीं देख पाएंगे. रिटायर्ड कर्नल करीम रंधावा मानते हैं कि आरफा तो आसमान की बुलंदियों तक पहुंच सकती थी.
पाकिस्तान के राष्ट्रीय झंडे में लिपटे आरफा के शव को लाहौर से फैसलाबाद लाया गया. जबरदस्त ठंड के बाद भी मैयत में लोगों का हुजूम लग गया. जनाजा जब उठा, तो चार नहीं, हजारों लोग कांधा देने के लिए मचल उठे. मिट्टी मंजिल तक लोगों का सैलाब यूं ही जमा रहा. आईटी के छात्र, नेता, अफसर, फौजी पता नहीं कौन कौन मैयत में आया. सरकार में डगमगाते भरोसे के बीच आरफा जैसी वजहें हैं, जो पाकिस्तान के लोगों को एकजुट कर रही हैं.
आम तौर पर मुस्लिम समुदाय में महिलाएं आखिरी रस्म में शामिल नहीं होतीं. लेकिन आरफा के मामले में सैकड़ों छात्राएं जमा हो गईं. फैसलाबाद के नूर दीन इलाके के एक बाशिंदे का कहना है कि आरफा ने ज्यादा वक्त यहां नहीं गुजारा, फिर भी लोग अफसोस से सराबोर हैं. एक शख्स ने कहा, "मेरी बेटी हमेशा उससे मिलना चाहती थी. अफसोस, अब ऐसा नहीं हो सकेगा."
वैसे आरफा जैसे लोग कभी नहीं जाते. वे कहीं न कहीं रहते हैं. कराची के सूचना मंत्री रजा हारून ने शहर के आईटी मीडिया सिटी का नाम आरफा के नाम पर रखा जाएगा. आरफा तुम्हें कोई कैसे भूल सकता है.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए जमाल
संपादनः महेश झा