कहीं आप भी रूसी प्रोपेगंडा का शिकार तो नहीं हुए?
२३ नवम्बर २०१७फेसबुक एक सॉफ्टवेयर टूल जारी करेगी. इसकी मदद से यूजर्स देख सकेंगे कि कहीं वे उन फेसबुक पेजों को पसंद तो नहीं करते जिनके पीछे रूस है. इंस्टाग्राम अकांउट्स के बारे में भी ऐसी जानकारी पता चलेगी. इंटरनेट रिसर्च एजेंसी जनवरी 2015 से अगस्त 2016 के बीच के नतीजे दिखाएगी.
एजेंसी का दावा है कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान रूस ने इंटरनेट के जरिये बड़े पैमाने पर प्रोपेगंडा फैलाया. ब्लॉग पोस्ट में एक बड़े ऑनलाइन सोशल नेटवर्क ने कहा, "यह जरूरी है कि लोग समझें कि कैसे विदेशी तत्वों ने फेसबुक का इस्तेमाल कर विभाजन और अविश्वास का माहौल बनाने की कोशिश की."
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अमेरिकी संसद के दबाव के बाद फेसबुक और दूसरी इंटरनेट कंपनियां यह टूल लाने को राजी हुईं. गूगल और फेसबुक समेत कई बड़ी टेक कंपनियों ने विश्व के प्रमुख मीडिया संस्थानों से भी हाथ मिलाया है. ये सब मिलकर इंटरनेट पर फैलाये जा रहे झूठ को रोकने की कोशिश करेंगे. गूगल ने तो रशिया टुडे और स्पुतनिक जैसी वेबसाइटों के कंटेंट को सर्च इंजन में पीछे धकेलने का एलान किया है.
माइक्रोसॉफ्ट और ट्विटर भी करीब 75 मीडिया संस्थानों के साथ मिलकर शुरू किये गये "ट्रस्ट प्रोजेक्ट" का हिस्सा बने हैं. ट्रस्ट प्रोजेक्ट आचार और पारदर्शिता के आधार पर न्यूज कंटेट की वर्गीकरण करेगा.
फेसबुक के जनरल काउंसल कॉलिन स्ट्रेच के मुताबिक रूसी अकांउट्स से आई इंस्टाग्राम पोस्टों को बीते साल दो करोड़ अमेरिकियों ने देखा. डाटा के मुताबिक राष्ट्रपति चुनाव के दौरान 12 करोड़ अमेरिकियों तक प्रोपेगंडा फेसबुक पोस्ट पहुंच सकती थीं. इस बात को स्वीकार करते हुए फेसबुक के संस्थापक मार्क जकरबर्ग कह चुके हैं कि रूसियों ने फेसबुक का इस्तेमाल समाज के बीच अविश्वास पैदा करने के लिए किया.
अमेरिकी इंटरनेट कंपनियों की इस सख्ती के जवाब में रूस ने भी विदेशी पत्रकारों पर नकेल कसनी शुरू कर दी है. रूसी संसद ने हाल ही में एक विधेयक पास किया है जिसके मुताबिक रूस में काम करने वाले विदेशी पत्रकारों को "विदेशी एजेंट" कहा जाएगा.
(सोशल मीडिया पर जीते जी मरे ये सेलिब्रिटी...)
ओएसजे/आईबी (एएफपी)