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किताब प्रेमियों का तीर्थ फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेला

७ अक्टूबर २०११

साढ़े पांच हजार वर्ग मीटर के इलाके में फैले फ्रैंकफर्ट के अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले में हर अक्टूबर में किताबों की दुनिया सजाने वाले लोग जमा होते हैं. एक जगह जो प्रकाशकों और पुस्तक प्रेमियों के लिए खास है.

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तस्वीर: DW

रोचक बात है कि इस पुस्तक मेले में भारतीय पुस्तक मेलों की तरह किताबें बेची नहीं जातीं. 2011 में 111 देशों के 7,539 पुस्तक प्रकाशक यहां भागीदारी कर रहे हैं.

जर्मनी के 3,315 प्रकाशकों के बाद दूसरे नंबर पर ब्रिटेन है. वहां के कुल 733 प्रकाशक पुस्तक मेले में भागीदारी कर रहे हैं. इस साल भारत के कुल 47 प्रकाशक फ्रैंकफर्ट में आ रहे हैं. भारत की एक विशेष प्रदर्शनी भी होगी जिसमें रवीन्द्र नाथ टैगोर पर विशेष कार्यक्रम है.

Impressionen von der Frankfurter Buchmesse 2010
तस्वीर: DW / Petra Lambeck

आंकड़े

फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले में 10 बड़े बड़े हॉल्स हैं. प्रदर्शनी के लिए कुल पौने चार लाख वर्ग मीटर का इलाका है जिसमें करीब 96 हजार वर्ग मीटर की खुली जगह है. इसमें अलग अलग तरह के खाने पीने, संगीत और संस्कृतियों से जुड़े तंबू लगे होते हैं. इस पुस्तक मेले के कारण डेढ़ हजार से ज्यादा लोगों को नौकरी मिलती है. और सेल्स में करीब 45 करोड़ यूरो का व्यापार होता है. इसे फ्रैंकफर्ट शहर और हेसे राज्य मिल कर आयोजित करते हैं.

Lesezelt im Innenhof der Frankfurter Buchmesse Flash-Galerie
तस्वीर: DW/Petra Lambeck

इतिहास

फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले का इतिहास 15वीं सदी से शुरू होता है. उस समय योनास गुटेनबर्ग ने फ्रैंकफर्ट शहर के पास एक प्रकाशन की स्थापना की. 17वीं सदी तक फ्रैंकफर्ट की किताब प्रदर्शनी यूरोप की मुख्य पुस्तक प्रदर्शनी बनी रही. लेकिन 18वीं सदी में इसकी जगह लाइप्सिग ने ले ली.

1949 में फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेला फिर शुरू हुआ. उस समय 18 से 23 सितंबर के बीच 205 प्रकाशकों ने अपनी किताबें यहां दिखाईं. यह पुस्तक मेला दूसरे विश्व युद्ध के बाद का अहम पुस्तक मेला था. 60 साल की यात्रा के बाद फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेला आज दुनिया का सबसे बड़ा पुस्तक मेला है.

रिपोर्टः आभा मोंढे

संपादनः वी कुमार