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किस सिरे पहुंचेंगे पाशा जैसे ये मुक़दमे?

३१ दिसम्बर २०१०

अमेरिकी अदालत में मुंबई हमले के मुकदमे में पाकिस्तान अपनी खुफिया एजेंसी आईएसआई के चीफ को बचाएगा. मुंबई हमले में अमेरिकी नागरिकों की भी मौत हुई थी, लिहाजा आईएसआई चीफ अमेरिका में आरोपी हैं.

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तस्वीर: picture alliance / dpa

पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय का यह बयान क़तई आश्चर्यजनक नहीं है कि वह मुम्बई के 26/11 आतंकवादी हमलों के सिलसिले में पाकिस्तानी सैनिक खुफिया सेवा आईएसआई के विरुद्ध अमेरिका में दायर किए गए दो मुक़दमों के ख़िलाफ़ लड़ेगा और लगाए गए आरोपों के जवाब में आईएसआई प्रमुख जनरल अहमद शुजा पाशा का पूरी तरह और बाक़ायदा बचाव करेगा.

जाहिर है कि पाकिस्तान इन आरोपों को सिरे से रफा दफा कर देना चाहता है कि मुंबई में 166 लोगों की हत्या के लिए ज़िम्मेदार हमले में आईएसआई शामिल थी.

पाकिस्तान चाहता है कि ये मुक़दमे ख़ारिज कर दिए जाएं. प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा गिलानी पहले ही कह चुके हैं कि पाशा को न्यूयॉर्क में दायर किए गए दीवानी मुक़दमों में पेश होने पर मजबूर नहीं किया जा सकता.

मुक़दमा दायर करने वाले अमेरिकियों के एक वकील जॉन क्राइंडलर ने कहा है कि इन मुक़दमों के नतीजे में वैसा ही सौदा किया जा सकता है, जैसा स्कॉटलैंड में लॉकर्बी के ऊपर पैन एम की उड़ान नंबर 103 का विस्फोट किए जाने के सिलसिले में लीबिया के साथ किया गया था. 2008 में घोषित, डेढ़ अरब डॉलर के उस समझौते को उस आतंकवादी हमले में मारे गए 180 अमेरिकियों के परिवारों की एक जीत के रूप में देखा गया था. उसी के परिणाम में अमेरिका और लीबिया के बीच फिर से कूटनीतिक संबंधों के दौर की शुरुआत भी हुई.

Anschläge und Schießereien in Indien Bombay
मुंबई पर हुए हमलेतस्वीर: AP

क्राइंडलर ने कहा है, "उम्मीद उपयुक्त मुआवज़ा हासिल करने की है, लेकिन हम इसे अमेरिका और पाकिस्तान के लिए मिलकर आतंकवाद की निंदा करने के एक अवसर के रूप में भी देखते हैं."

क्राइंडलर के अनुसार, ये मुक़दमे केवल एक तमाशे के रूप में दायर नहीं किए गए हैं, उनकी सफलता की बहुत अच्छी संभावनाएं हैं.

लेकिन विशेषज्ञों की मानें, तो अमेरिकी अदालत यह फ़ैसला भी दे सकती है कि अहमद शुजा पाशा को एक प्रभुसत्तासंपन्न देश के उच्च स्तरीय अधिकारी होने के नाते निरापदता हासिल है. और अगर ऐसा न भी हो, तो भी अनेक अंतरराष्ट्रीय प्रतिवादी किसी अदालत के ऐसे तलबनामों का जवाब तक देने की ज़हमत नहीं उठाते और इस तरह उन्हें किसी अमेरिकी अदालत का मुंह भी नहीं देखना पड़ेगा.

जज वादियों के बयान सुनकर हर्जाने का फ़ैसला भी दे सकते हैं, पर हर्जाने की वसूली बहुत दूर की बात है. कुछ मामलों में तो यहां तक हुआ है कि अमेरिकी सरकार ने ऐसे मुक़दमों का कूटनीतिक आधार पर विरोध किया है और मुक़दमे सिरे से ख़ारिज कर दिए गए.

विलानोवा विश्वविद्यालय के स्कूल ऑव लॉ के प्रोफ़ैसर जॉन मर्फ़ी का कहना है, "इस तरह के मुक़दमे बहुत अधिक सफल नहीं होते. और वादियों के पक्ष में किए गए फ़ैसले भी अधिकांश में प्रतीकात्मक रहे हैं."

इसी तरह, पाकिस्तान के एक प्रमुख वकील अतहर मिनल्लाह का कहना है कि जहां तक मौजूदा मुक़दमों वाली अदालत के न्यायक्षेत्र की बात है, ये मामला अधिक दूर पहुंचता दिखाई नहीं देता.

बेजा मौतों के मामलों वाले ये मुक़दमे पिछले महीने ब्रुकलिन की एक संघीय अदालत में मुंबई के आतंकवादी हमलों के शिकार हुए लोगों के संबंधियों ने दायर किए थे. उन हमलों में 166 बेगुनाह लोग मारे गए थे. उस आतंकवादी कार्रवाई के लिए पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैयबा को दोषी बताया गया है. मुक़दमे के प्रतिवादियों में इस संगठन का नाम भी शामिल है.

आरोपों में कहा गया है कि आएएसआई ने हमलों की योजना बनाने, उन्हें नियंत्रण में रखने और तालमेल के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण ठोस सहायता मुहैया की. वादियों में रब्बी गैवरियल हॉल्ट्ज़बर्ग के पिता शामिल हैं. हॉल्ट्ज़बर्ग और उनकी गर्भवती पत्नी मुंबई के यहूदी केंद्र पर किए गए हमले के दौरान मारे गए थे. वादियों में शिकागो निवासी संदीप जसवानी की पत्नी भी शामिल हैं. संदीप की, जो व्यवसाय के सिलसिले में मुंबई में थे, ताज होटल में हत्या कर दी गई थी.

ये मुक़दमे 18वीं शताब्दी के एक अमेरिकी क़ानून के तहत दायर किए गए हैं, जिसके अनुसार अमेरिकियों को ऐसी कार्रवाइयों के ख़िलाफ़ अमेरिकी अदालतों में मुक़दमे चलाने का अधिकार प्राप्त है, जिनसे अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन होता हो.

न्यूयॉर्क में, 11 सितंबर, 2001 के आतंकवादी हमलों के शिकार हुए लोगों के प्रतिनिधियों और परिवारों ने विदेशी सरकारों, हितार्थ संगठनों, वित्तीय संस्थाओं और व्यक्तियों के ख़िलाफ़ मुक़दमे दायर कर रखे हैं, जिनके बारे में समझा जाता है कि उन्होंने अल क़ायदा को सहायता उपलब्ध की है. वादियों ने कहा है कि प्रतिवादियों ने हितार्थ संगठनों को पैसा दिया, ताकि उसे अल क़ायदा को पहुंचाया जा सके.

ये मामले अभी भी विचाराधीन हैं, लेकिन उन्हें तब एक झटका लगा, जब सुप्रीम कोर्ट ने सऊदी अरब और उसके चार शह्ज़ादों के ख़िलाफ़ किए गए दावों पर कार्रवाई की अनुमति देने से इनकार कर दिया. अदालत ने एक संघीय अदालत का यह फ़ैसला बरकरार रखा कि ये प्रतिवादी प्रभुसत्तात्मक निरापदता के तहत संरक्षित हैं.

क्या आईएसआई और अहमद शुजा पाशा के ख़िलाफ़ दायर किए गए मुक़दमों के सिलसिले में भी ऐसा हो सकता है? ज़ाहिर है, यह जानने के लिए अभी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी.

रिपोर्ट: गुलशन मधुर, वॉशिंगटन

संपादन: ओ सिंह

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