कुदरती एयरकंडीश्नर है मोम
१९ दिसम्बर २००९इमारतों और मकानों के निर्माण में जो बात अब ध्यान दी जाने लगी है कि गर्मियों के मौसम में अंदर का तापमान कैसे ख़ुशनुमा रखा जाए. ग्लोबल वॉर्मिंग की चिंताओं के बीच एसी जैसी सुविधाओं की ज़रूरत बढ़ गई है. गर्मियों में मौसम में ऊंचे तापमान रिकॉर्ड किए जा रहे हैं और एसी की खपत बढ़ गई है लेकिन इस वजह से ख़तरा बढ़ गया है, कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का.
पर्यावरण से जुड़ी इसी चिंता को दूर करने की दिशा में ये प्रयोग शुरू किया गया था. फ्राउएनहोफ़र इन्स्टीट्यूट फॉर सोलर एनर्जी सिस्ट्मस आईएसई में. ये विचार आया प्रोफेसर फोल्कर विटवर के दिमाग में, जिनका मानना है कि कुदरत की शक्ति में ही बेहतर एयर कंडिशनिंग का विचार निहित है. ख़ासकर सूरज की तपिश में. फिर एक रिसर्च की शुरुआत हुई. दस साल से ज़्यादा वक़्त के बाद सवाल का एक जवाब तो मिल ही गया कि आखिर रात के प्राकृतिक समय की ठंड को कैसे कैद किया जाए और बाद में इसका इस्तेमाल इमारत को गर्म रखने के लिए किया जाए.
अपने सहयोगी पीटर शौशिग के साथ प्रोफेसर विटवर ने लेटेंट हीट सेवर्स पर काम शुरू किया. इनका इस्तेमाल मोम ख़ासकर पैरेफिन के साथ किया जाता है. कमरे की असहनीय गर्मी को काबू में करने के लिए ये पदार्थ दीवारों में गर्मी को कैद कर लेते हैं और उसे इधर उधर फैलने से रोकते हैं.
असल में ये काम भौतिकी के उस नियम के तहत होता है जैसा एक ग्लास में बर्फ़ के एक टुकड़े के पिघलते समय देखा जाता है. आइस क्यूब को जब गर्म किया जाता है तो वो पिघलने लगती है. लेकिन उसके आसपास का पानी तभी गर्म होता है जब बर्फ का आखिरी कण पिघल जाता है. यानी जब बर्फ़ पूरी तरह पिघल जाती है तभी पानी गर्म होता है.
वैक्स के इन कैप्सूलों को रात में ठंडा और सख़्त होना होता है ताकि अगले दिन वे फिर से काम कर सके. इसका मतलब ये हुआ कि ट्रॉपिकल इलाकों में ये बहुत कारगर नहीं हैं, जहां तापमान बहुत स्थिर रहता है. लेकिन वैज्ञानिक एक ऐसे सिस्टम पर काम कर रहे हैं जहां कैप्सूलों को दीवार पर पानी के छिड़काव से ठंडा रखा जा सकता है.
विटवर के मुताबिक कैप्सूलों का इस्तेमाल कूलिंग के दूसरे उद्देश्यों के लिए किया जाता है. उनका कहना है कि कई चादरों और डाइविंग पोशाकों में इसका इस्तेमाल होता है. आने वाले समय में इलेक्ट्रिक कारों में भी कूलिंग बैटरियों में इन कैपसूलों का इस्तेमाल किया जा सकता है.
रिपोर्ट: रिचर्ड फुक्स/एस जोशी
संपादन: महेश झा