कैसे जमा लिंडाऊ का जमावड़ा
२८ जून २०११जर्मन शहर होने की वजह से लिंडाऊ में जर्मन नोबेल पुरस्कार विजेताओं का जमा होना आसान है और अब तो यहां हर साल करीब 600 रिसर्चर और विशिष्ट मेहमान जमा हो रहे हैं.
तकनीक और विज्ञान की नजर से जर्मनी हमेशा दुनिया के अव्वल देशों में रहा है. लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद इसकी वैज्ञानिक बिरादरी भी अलग थलग पड़ गई. वे विज्ञान की दुनिया से कटे कटे महसूस करने लगे. ऐसे में लिंडाऊ शहर के दो नोबेल विजेताओं फ्रांस कार्ल हाइन और गुस्ताव पराडे ने 1950 में अनोखी पहल की. वे काउंट लेनार्ट बर्नाडोटे के पास गए और उनके सामने अपना प्रस्ताव रखा. उन्होंने योजना बनाई कि विज्ञान के क्षेत्र में सर्वोच्च पुरस्कार जीतने वाले लोगों को अगर लिंडाऊ बुलाया जाए, तो अंतरराष्ट्रीय मेडिकल साइंस का ध्यान इधर आएगा और इसका फायदा जर्मनी के युवा मेडिकल छात्रों को मिलेगा.
काउंट बर्नाडोटे ने स्वीडिश शाही परिवार और नोबेल पुरस्कार देने वाली संस्था से अपने अच्छे संबंधों का फायदा उठाया और इसकी पहल हो गई. दरअसल काउंट बर्नाडोटे के दादा गुस्ताव पंचम ने अपने हाथों से पहला नोबेल पुरस्कार प्रदान किया था.
फ्रांस कार्ल हाइन और गुस्ताव पराडे ने काउंट को जो चिट्ठी लिखी, उसमें कहा गया, "तीन चार दिनों के कांग्रेस का उद्देश्य यूरोपीय वैज्ञानिकों की जानकारी को युवा रिसर्चरों के साथ बांटना है ताकि मानवता का फायदा हो सके और जिसकी मदद से सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्क एक छत के नीचे जमा हो सकें."
शुरुआती प्रस्ताव में ही तय हो गया कि अगर कांग्रेस सफल रहा तो एक साल फीजिक्स और दूसरे साल केमेस्ट्री और अगले साल बायोलॉजी के नोबेल पुरस्कार विजेताओं को यहां बुलाया जाएगा. 1951 में शुरू हुआ सालाना आयोजन इतना सफल हुआ कि 1963 में केमेस्ट्री के नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रेडरिक सॉडी ने लिंडाऊ में कहा, "यह आविष्कारों का बाजार है."
पहले आयोजन में सिर्फ सात नोबेल पुरस्कार विजेता पहुंचे. दो साल बाद से छात्रों को भी बुलाया जाने लगा. अब लगभग 600 छात्रों और रिसर्चरों को यहां आने का मौका मिलता है और जिससे भी बात करो, वह इसे जीवन का सबसे अच्छा क्षण बताता है. तभी तो 61वें आयोजन का उद्घाटन करते हुए काउंट बर्नाडोटे की बेटी और आयोजन की प्रेसिडेंट बेटिना बर्नाडोटे ने कहा, "हफ्ते भर के लिए लिंडाऊ दुनिया का सबसे अकलमंद शहर है."
रिपोर्टः अनवर जे अशरफ, लिंडाऊ (जर्मनी)
संपादन: ओ सिंह