क्या कोई कवि ले जाएगा साहित्य का नोबेल
६ अक्टूबर २०११समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने एक बुकी के हवाले से रिपोर्ट दी है कि सीरिया के 81 साल के कवि इस रेस में सबसे आगे चल रहे हैं. उन्हें दुनिया अडोनिस के नाम से भी जानती है. उन्हें इस साल जर्मनी का प्रतिष्ठित गोएथे साहित्य पुरस्कार मिल चुका है. स्वीडन के टोमास ट्रांसट्रोमर और जापान के हारूकी मुराकामी के नाम भी नोबेल के उम्मीदवारों में आगे चल रहे हैं.
इन तीनों के नाम चर्चा में हैं लेकिन अडोनिस के नाम पर ज्यादा जोर लग रहा है क्योंकि वह सीरिया के हैं और लोकतंत्र का समर्थन करते हैं. हाल ही में उन्हें जर्मनी में पुरस्कार दिया गया है और पश्चिमी जगत का मानना है कि इस वक्त सीरिया में राजनीतिक स्थिति ठीक नहीं है. हालांकि उनके आलोचकों का कहना है कि अडोनिस ने इस मुद्दे पर मुखर होकर अपनी बात नहीं रखी है.
अडोनिस की चर्चा
खालिद मतावा ने अली हमीद सईद उर्फ अडोनिस की कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया है. मतावा का कहना है, "जब मैं कवि के तौर पर अडोनिस के बारे में सोचता हूं तो लगता है कि जैसे पिकासो या मतीसे के बारे में सोच रहा हूं. उन्होंने नया रास्ता खोला है." नोबेल का साहित्य पुरस्कार आखिरी बार किसी कवि को 1996 में दिया गया है. उस वक्त पोलैंड की विस्लावा जिम्बोर्क्सका को नोबेल पुरस्कार दिया गया था.
भले ही इन कवियों के नाम पर चर्चा चल रही हो लेकिन आम तौर पर नोबेल पुरस्कारों के मामले में कभी भी कयास सही साबित नहीं हुए हैं. साहित्य का नोबेल पुरस्कार देने का तरीका बेहद गुप्त होता है और किसी को कानों कान इस बारे में खबर नहीं मिलती. पिछले 50 साल से नामांकनों को भी सार्वजनिक नहीं किया जाता है. इस वजह से पक्के तौर पर किसी के नामांकन का भी दावा नहीं किया जा सकता है.
कैसे मिलता है नोबेल
इस पुरस्कार के लिए कोई भी व्यक्ति खुद को स्वयं नामांकित नहीं कर सकता. हर वर्ष सितंबर महीने में शुरू होने वाली प्रक्रिया अगले साल दिसंबर तक चलती है. नोबेल समिति कुछ योग्य व्यक्तियों को आमंत्रण पत्र भेजती है, जिसके आधार पर उन्हें साहित्य जगत की हस्ती को नामांकित करने का अधिकार मिलता है. कुछ दूसरे योग्य व्यक्ति भी किसी का नामांकन कर सकते हैं, चाहे उन्हें नोबेल समिति से आमंत्रण मिला हो या नहीं. इस मामले में नोबेल समिति 600 से 700 व्यक्तियों और संगठनों को आमंत्रण पत्र भेजती है.
उनके पास लगभग पांच महीने का वक्त होता है. सारे नामांकन 31 जनवरी तक मिल जाने चाहिए. इसके बाद नोबेल समिति सभी नामांकित नामों को छांटती है और अकादमी की मंजूरी के लिए आगे बढ़ा देती है.
इसके बाद अप्रैल के महीने तक प्राथमिक स्तर पर एक सूची बनाई जाती है, जिसे सार्वजनिक नहीं किया जाता है. इसमें आम तौर पर 15 से 20 नाम होते हैं. अगले महीने यानी मई में पांच सबसे बड़े नामों को तय कर लिया जाता है. लेकिन ये नाम सिर्फ समिति के पास होते हैं. किसी और को इसके बारे में नहीं बताया जाता.
जून से लेकर अगस्त तक की गर्मियों में अकादमी के सदस्य इन पांच साहित्यकारों की रचनाओं पर गौर फरमाते हैं. उनके कार्य की समीक्षा होती है और इसी दौरान शुरुआती रिपोर्टें भी तैयार कर ली जाती हैं. सितंबर के महीने में इस बात पर चर्चा होती है कि किस साहित्यकार का काम कैसा है और कौन नोबेल पुरस्कार का बड़ा हकदार है.
अक्तूबर के शुरुआती हफ्ते में साहित्य के नोबेल पुरस्कार की घोषणा कर दी जाती है और दिसंबर महीने में इसे प्रदान कर दिया जाता है. नोबेल पुरस्कार की वेबसाइट का कहना है कि 50 साल से नामांकनों को सार्वजनिक नहीं किया जाता है और इस पर किसी तरह की जांच या राय पूछने पर भी पाबंदी है.
भारत का नाम
भारत को पहला नोबेल पुरस्कार साहित्य में ही मिला था, जब 1913 में रवींद्रनाथ टैगोर को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया. हालांकि इसके बाद भारत को कभी भी साहित्य का नोबेल नहीं मिला है. वीएस नायपॉल के तौर पर भारतीय मूल के एक लेखक को जरूर नोबेल मिला है. इस बार भारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिक सलमान रुश्दी के नाम की चर्चा है. लेकिन भारत से महान लेखिका महाश्वेता देवी के नाम पर भी चर्चा चल रही है. उनके अलावा राजस्थान के शेक्सपीयर के नाम से मशहूर विजयदान देथा और केरल के सच्चिदानंद का नाम भी चल रहा है. लेकिन जाहिर है कि नोबेल समिति को छोड़ कर किसी को भी इस बारे में पक्की जानकारी नहीं है कि आखिरी सूची में इनका नाम है भी या नहीं.
रिपोर्टः रॉयटर्स/अनवर जमाल अशरफ
संपादनः आभा मोंढे