क्यों खींचते हैं अपनी तरफ रियलिटी शो
९ अप्रैल २०१०इंडियन आयडल को तो हम सभी जानते हैं. पिछले पांच सालों से यह शो भारत में सब की जिंदगी का हिस्सा बन गया है. इस शो की बदौलत अभिजीत सावंत, संदीप आचार्या और प्रशांत तमंग आम ज़िंदगी छोड़ सिलेब्रिटी बन गए. चैनलों की टीआरपी भी आसमान छूने लगी. कभी जनता ने इसे सुरीली आवाज़ वाले गायकों के लिए देखा तो कभी उनके फैशन के लिए और कभी तो जजों की लड़ाई के लिए भी.
यही हाल बाकी देशों का भी रहा. अमेरिका में अमेरिकन आयडल, ब्रिटेन में पॉप आयडल और जर्मनी में यह शो डॉएचलैंड ज़ूख्ट डेन सुपरस्टार यानी जर्मनी के सुपरस्टार की खोज के नाम से जाना जाता है. जितनी धूम इंडियन आयडल ने भारत में मचाई है, उतनी ही डॉएचलैंड ज़ूख्ट डेन सुपरस्टार ने जर्मनी में. वही फॉरमेट, वैसे ही नए गायक और गानों पर झूमती हुई वैसी ही दीवानी जनता. हर शनिवार और रविवार को जब टीवी पर यह शो आता है तो लगभग साठ लाख लोग इसे देखते है. इनमें एक बड़ी संख्या युवाओं की है.
हन्ना 13 और पेलिन 12 साल की हैं और किसी भी हफ्ते इस शो को देखना भूलती नहीं हैं. आखिर सोमवार को स्कूल पहुंच कर चर्चा भी तो करनी होती है. हन्ना कहती है, "सोमवार को पहले दो पीरियड ड्राइंग के होते हैं. तब हम सब मिलकर यही बातें करते हैं कि हमने वीकेंड पर टीवी पर क्या क्या देखा. और फिर हम डॉएचलैंड ज़ूख्ट डेन सुपरस्टार की बातें करते हैं, हमें कौन अच्छा लगा, कौन नहीं." इन लोगों की लिस्ट में ऐसे और भी कई शोज़ हैं. मिसाल के तौर पर जर्मनीज़ नेक्सट टॉप मॉडल. यह ख़ास तौर से इसलिए भी लोकप्रिय है क्योंकि इसमें हिस्सा लेने वाले लोगों की निजी ज़िंदगी में भी झांका जाता है. पेलिन कहती हैं, "मुझे यह पसंद है, क्योंकि आप यह देख सकते हैं कि वहां लड़कियां क्या कर रही हैं और कैसे. मुझे यह देखने में बहुत मज़ा आता है."
कैसा असर पड़ता है बच्चों और युवाओं पर ऐसे शोज़ का. इसी पर जर्मनी में मीडिया शिक्षिका माया गेयोत्स ने रिसर्च की है. उन्होंने पाया की 9 से 22 सालों के लोग अनजाने में ही इन शोज़ से बहुत कुछ सीख जाते हैं. वह कहती हैं, "बच्चे और युवा इन कास्टिंग शोज़ से बहुत कुछ सीखते हैं. मिसाल के तौर पर जर्मनीज़ नेक्सट टॉप मॉडल में प्रतियोगियों से कई तरह के टास्क कराए जाते हैं. मसलन बिना कपड़ों के अपना फोटोशूट कराना. जब बच्चे यह सब देखते हैं तो वो सोचते हैं कि क्या वे ऐसा कुछ करते. और फिर वे खुद से कहते हैं, नहीं, मैं तो ऐसा कभी नहीं करूंगी."
लेकिन साथ ही साथ इससे कई गलत असर भी पड़ते हैं. जैसे कि बच्चों को लगने लगता है कि जीवन में सफल होने और आगे बढ़ने के लिए खूबसूरत दिखना और अच्छे कपड़े पहनना बेहद ज़रूरी है. और एक स्टार या फिर एक मॉडल बनाना ही तरक्की कहलाता है. इसी बारे में माया कहती हैं, "राजनीति और समाज की बातें आज के युवा के लिए कोई मायने नहीं रखतीं. वो कूल नहीं हैं. उनके लिए तो यह ज़रूरी हो गया है कि उन्होंने ब्रैंडेड कपड़े पहने हैं या नहीं. आगे चल कर एक अच्छी नौकरी का दबाव भी उन पर बना रहता है, लेकिन वे उसके साथ वैसे डील नहीं कर पाते जैसे साठ के दशक में युवा किया करते थे. वे सड़कों पर उतर आते थे और सिस्टम के खिलाफ आवाज़ उठाते थे. लेकिन ये तो खुद ही सिस्टम के साथ बहते जा रहे हैं."
बहरहाल यह शो सबके पसंदीदा तो बने ही हुए हैं. और हन्ना जैसे बच्चे भले ही यह ना जानें कि आगे जा कर उन्हें क्या करना है, लेकिन वे इतना तो जानते ही हैं कि इन शोज़ में हिस्सा लेने का उनका कोई इरादा नहीं है. हन्ना कहती है, "नहीं, मैं तो शो में नहीं जाउंगी. ऐसा करना भविष्य के लिए भी ठीक नहीं है, क्योंकि फिर स्कूल नहीं जा पाउंगी. फिलहाल तो यह ज़रूरी कि मैं अच्छे नंबर ला सकूं. फिर तो बहुत से दरवाज़े खुल जाएंगे."
वे तो खुल ही जाएंगे, वैसे भी इन्होने रियलिटी शो से यह तो सीखा है कि ज़िंदगी में सफल होना बेहद ज़रूरी है.
रिपोर्टः ईशा भाटिया
संपादनः ए कुमार