गद्दाफी को हटाने को तत्पर लीबिया की विद्रोही सरकार
२५ अगस्त २०११अमेरिका और यूरोप के नेता और लीबिया में लड़ रहे विद्रोही रोज एक ही बात बोल रहे हैं कि गद्दाफी के दिन अब गिनती के बचे हैं. लीबिया में जिस स्तर पर लड़ाई हो रही है, उससे लगने लगा है कि शायद जल्दी ही 42 साल पुराना गद्दाफी शासन खत्म हो जाए. अगर ऐसा होता है तो यह वहां की नेशनल ट्रांजीशनल काउंसिल की बड़ी जीत होगी. उसके बाद सत्ता नेशनल ट्रांजीशनल काउंसिल के हाथों में होगी, जिसे अभी से दर्जनों देशों की मान्यता हासिल हो चुकी है. यानी भविष्य के लीबिया के बारे में जानने के लिए इस काउंसिल के बारे में जानना जरूरी है.
कैसे बनी परिषद?
ट्यूनिशिया की क्रांति सफल होने के बाद जिन देशों में लोग अपनी अपनी सरकारों के खिलाफ सड़कों पर उतरे, उनमें लीबिया प्रमुख था. 42 साल पुराने मुअम्मर गद्दाफी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए इस साल के फरवरी महीने से ही लीबिया के सभी शहरों में लोग प्रदर्शन कर रहे थे. लेकिन तब न वे संगठित थे न कोई केंद्रीय निर्देशन उन्हें हासिल था. इस आंदोलन को एक दिशा और संगठन देने के मकसद से देशभर के विद्रोहियों के नेता 17 फरवरी को बेनगाजी शहर में जमा हुए. इन सबके बीच एक गठबंधन बना जिसे फरवरी 17 का गठबंधन कहा गया. इस गठबंधन से एक परिषद का गठन हुआ. इस परिषद में देशभर के उन शहरों के प्रतिनिधि शामिल थे जिन्हें लोगों ने गद्दाफी शासन के कब्जे से छीन लिया था.
27 फरवरी को इस परिषद ने खुद को क्रांति का राजनीतिक चेहरा बताया. 5 मार्च को परिषद ने ऐलान किया कि वही लीबिया के लोगों की जायज प्रतिनिधि है.
इस परिषद में 40 सदस्य हैं. हर सदस्य किसी न किसी भोगौलिक इलाके या समाज के किसी हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है. मसलन, इसमें नौजवानों, महिलाओं और राजनीतिक कैदियों के प्रतिनिधि शामिल हैं. हालांकि परिषद के सदस्यों के नाम जाहिर नहीं किए गए हैं क्योंकि इससे उनकी जिंदगी को खतरा हो सकता है.
लेकिन इसमें एक पहलू है पूर्व और पश्चिम का प्रतिनिधित्व. विद्रोहियों का ज्यादा प्रभाव पूर्व में है और पश्चिमी इलाकों पर गद्दाफी का प्रभाव माना जाता है. इस बारे में जर्मनी की माइंत्स यूनिवर्सिटी के ज्यॉग्रफी विभाग में प्रो. गुइंटर मायर कहते हैं, “नेशनल ट्रांजीशनल काउंसिल में अलग अलग क्षेत्रों, कबीलों और शहरों के 31 प्रतिनिधि हैं. लेकिन इनमें से ज्यादातर प्रतिनिधि देश के पूर्वी हिस्सों से हैं. पश्चिम में ऐसे कई बड़े गुट हैं जिन्हें लम्बे समय तक गद्दाफी के समर्थन में रहने से फायदा मिला है. लेकिन अब उनकी सोच बदलने में कामयाबी मिल रही है. अब वे लोग भी गद्दाफी के विरोध में निकल रहे हैं और विद्रोहियों के साथ मिलकर पुराने शासन को खत्म करने के लिए काम कर रहे हैं.”
क्या कर रही है परिषद
परिषद का कहना है कि लीबिया में क्रांति के लिए लड़ रहे लोगों का राजनीतिक नेतृत्व वह खुद कर रही है. वह देश को आजाद कराने की कोशिशों में पूरे देश में जारी लड़ाई का निर्देशन का काम देख रही है. साथ ही जीते जा चुके शहरों और कस्बों में जिंदगी को सामान्य पटरी पर लाने के काम में नगर परिषदों की मदद भी कर रही है.
परिषद ने भविष्य में गद्दाफी के बाद के लीबिया की रूपरेखा तैयार करने का काम भी शुरू कर दिया है. देश में नया संविधान बनाने के लिए एक ड्राफ्टिंग कमेटी बनाने का शुरुआती काम शुरू हो चुका है. और खासतौर पर विदेशी नीति के लिए निर्देश भी परिषद ही तैयार कर रही है. उसने देश के राजनीतिक, कानूनी, सुरक्षा और रक्षा मामलों की देखरेख के लिए अलग अलग समितियां बनाई हैं.
इसके अलावा एक कार्यकारी समिति या कैबिनेट बनाई गई. हालांकि सैन्य कमांडर अब्देल फतह यूनुस की मौत के मामले में कैबिनेट में खामियां पाए जाने के बाद उसे भंग कर दिया गया. लेकिन इस फैसले का परिषद पर कोई असर नहीं हुआ. परिषद प्रमुख जलील जानते हैं कि यह कोई चुनी हुई संस्था नहीं है, इसलिए इसके अधिकार सीमित हैं. देश में जंग खत्म हो जाने के बाद सत्ता के हस्तांतरण के दौरान पहले आठ महीने ही यह परिषद काम काज करती रहेगी. 20 महीने के दौरान चुनाव की तैयारी कर ली जाएगी.
क्या परिषद वैधानिक है
यह सवाल अहम है कि इन 40 लोगों को देश का नेतृत्व करने का अधिकार किसने दे दिया है. विरोधी पूछ सकते हैं कि ये लोग कौन होते हैं लीबियाई लोगों की ओर से फैसले करने वाले. मायर बताते हैं कि लीबिया एक ऐसा देश है जहां बहुत ज्यादा विविधता पाई जाती है, इसलिए प्रतिनिधित्व का फैसला आसान नहीं है. वह कहते हैं, “लीबिया एक ऐसा देश है जहां लोग जुड़े हुए नहीं हैं. यहां 130 से 140 अलग अलग कबीलों की बात हो रही है. इनकी तुलना हम सबसे अधिक जाने जाने वाले बेदुइन समुदाय से भी नहीं कर सकते जो अपनी अलग पहचान और एक कबीले के मुखिया के साथ हथियारबंद हो कर आगे बढ़ते हैं. पिछली एक-दो पीढ़ियों से अधिकतर बेदुइन शहर में आ कर रहने लगे हैं. इस कारण लोगों की कबीले की ओर वफादारी में कमी आई है." ”
इस बारे में परिषद के अधिकारियों का कहना है कि क्रांति शुरू होने के बाद विद्रोहियों के गढ़ बेनगाजी में जब 17 फरवरी को विद्रोहियों के प्रतिनिधि मिले थे, तब बेनगाजी के कोर्टहाउस के सामने हजारों लोग जमा हुए जिन्होंने परिषद के सदस्यों का समर्थन किया. उसके बाद परिषद के सदस्य पूर्वी हिस्से के शहरों और गांवों में घूमे और वहां से परिषद के लिए समर्थन जुटाया. इसके बाद ही 5 मार्च को परिषद ने खुद को देश का वैध प्रतिनिधि घोषित किया. इसके बावजूद परिषद के सामने कई युवा विद्रोहियों की चुनौती खड़ी है.
कौन है परिषद का इंचार्ज
इस वक्त लीबिया की नेशनल ट्रांजीशनल काउंसिल के अध्यक्ष मुस्तफा अब्देल जलील हैं. 60 से कुछ कम उम्र के जलील को सहमति बनाने वाला इंसान माना जाता है. वह मोअम्मर गद्दाफी की सरकार में कानून मंत्री थे. लेकिन विरोध प्रदर्शनों का हिंसक दमन देखकर वह गद्दाफी का साथ छोड़ गए.
नरम व्यवहार वाले जलील अक्सर लीबिया की पारंपरिक लाल तागिया टोपी पहने नजर आते हैं. शुरुआत में वह कई बार त्रिपोली से समझौता करने के मूड में नजर आए. लेकिन उनके इस विचार को विद्रोहियों का समर्थन नहीं मिला.
परिषद में महमूद जिब्रिल एक अहम शख्स हैं. उन्हें नेशनल ट्रांजीशनल काउंसिल का प्रधानमंत्री कहा जाता है. वह गद्दाफी के आर्थिक सलाहकार थे. लेकिन गद्दाफी ने उनकी देश के उदारीकरण की सलाह नहीं मानी तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया. उन्होंने अपना ज्यादातर वक्त विदेशों में ही बिताया है. उनके विदेशों में काफी संपर्क हैं इसलिए वह विद्रोहियों के राजदूत की तरह भी काम कर रहे हैं. हालांकि कई लोग उनकी बेइंतहा यात्राओं से परेशान भी रहते हैं.
परिषद के सैन्य कमांडर को लेकर भी उलझन की स्थिति रही है. गद्दाफी के मंत्रीमंडल में गृह विभाग देखने वाले अब्देल फतर यूनुस विद्रोहियों के सैन्य कमांडर थे. लेकिन जुलाई में उनके मारे जाने के बाद से कई लोगों ने एक साथ इस पद की जिम्मेदारी संभाल ली. यूनुस के डिप्टी सुलेमान महमूद को उनकी जिम्मेदारी संभालने को कहा गया. लेकिन रक्षा मंत्रालय का कामकाज गलाल देगली देख रहे हैं. और परिषद में सैन्य मामलों के अध्यक्ष गद्दाफी के पूर्व सहयोगी उमर हरीरी हैं.
अमेरिका में रहने वाले शिक्षाविद अल तहरूनी के जिम्मे आर्थिक, वित्तीय और तेल से जुड़े मामले हैं जबकि मानवाधिकार वकील अब्देल हफीज घोगा परिषद के उपाध्यक्ष और प्रवक्ता हैं.
कहां तक पहुंची परिषद
एनटीसी की राजनीतिक समिति के अध्यक्ष फतीह बाजा ने पिछले हफ्ते पत्रकारों से कहा, “हम काम काज संभालने के लिए तैयार हैं. हम क्रांति शुरू होने के पहले महीने से ही इसकी तैयारी कर रहे हैं.”
एनटीसी को सबसे बड़ी सफलता विदेशों में मान्यता प्राप्त करने के मामले में मिली है. अब तक 30 से ज्यादा देशों ने उसे लीबिया का आधिकारिक प्रतिनिधि मान लिया है. अमेरिका और यूरोपीय संघ के प्रमुख देशों की मान्यता हासिल करने के बाद अब लीबिया की यह विद्रोही परिषद इराक, मोरक्को, बहरीन, ग्रीस और नाइजीरिया के साथ आधिकारिक संबंध करने के करीब है.
इस वक्त जिन बड़े देशों ने एनटीसी को मान्यता नहीं दी है, उनमें रूस प्रमुख है. रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा है कि एनटीसी को लीबिया का एकमात्र प्रतिनिधि नहीं माना जा सकता लेकिन उसे बातचीत करने वाले दल के रूप में जगह दी जा सकती है. चीन ने भी मान्यता देने की बात तो नहीं कही है लेकिन उसने अपने यहां विद्रोही नेताओं का स्वागत किया और उनसे बातचीत भी की. अरब लीग और फलीस्तीन एनटीसी को मान्यता दे चुके हैं. तुर्की ने तो जून महीने में ही एनटीसी को मान्यता दे दी थी लेकिन उसका कहना है कि परिषद को ही लीबियाई लोगों का एकमात्र प्रतिनिधि नहीं माना जा सकता.
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः महेश झा