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गांजे से मानसिक बीमारियों का ख़तरा

८ जनवरी २०१०

भारत में कई हिस्सों में लोग गांजे या भांग का इस्तेमाल करते हैं और कहते हैं कि इससे कुछ नुक़सान नहीं होता, लेकिन हाल के शोध बताते हैं कि गांजा मानसिक बीमारियों की वजह बन सकता है.

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तस्वीर: AP

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़ दुनिया भर में क़रीब डेढ़ करोड़ लोग रोज़ाना गांजे का किसी न किसी रूप में इस्तेमाल करते हैं, जो किसी भी और ड्रग्स से काफ़ी ज़्यादा है. इसका सबसे ज़्यादा ख़तरा युवाओं में ख़ासकर किशोरों को होता है.

नए शोध बताते हैं कि किशोरों के गांजा इस्तेमाल करने से उनमें डिप्रेशन, शिज़ोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारियों का ख़तरा बढ़ जाता है. शोध में सामने आया है कि गांजे का सेवन करने से दिमाग़ के दो महत्वपूर्ण न्यूरोट्रांसमीटरों पर असर पड़ता है. ये हैं सेरोटोनिन और नोराड्रेनलीन. ये दोनों दिमाग़ में भावनाओं को, ख़ासकर डर की भावना को नियंत्रित करते हैं.

Marihuana Pflanze
तस्वीर: Fotofinder

कनाडा के किशोर बहुत ज़्यादा गांजे का सेवन करते हैं. इससे उनमें डिप्रेशन की शिकायत बढ़ती है और साथ ही उनमें डर से जुड़ी भावनाएं बहुत ज़्यादा बढ़ जाती हैं. दूसरी चिंता वाली बड़ी बात है गांजे और शराब का एक साथ सेवन. यूरोपीय संघ के ड्रग्स विशेषज्ञ इसमें नए ट्रेंड की भी चेतावनी देते हैं. हर साल युवक गांजे का धुआं, बीयर या फिर एक्सेटिसी गोलियों के साथ पीते हैं जो बहुत ही ख़तरनाक साबित हो सकता है.

यूरोपीय संघ में मामले पर नज़र रखने वाले अधिकारी वोल्फ़गांग ग्योट्ज़ कहते हैं, "एक मुख्य समस्या है ड्रग्स और अल्कोहोल का मिश्रण. ख़ासकर युवाओं में पी कर धुत्त होना और उसके साथ ड्रग्स लेना एक साथ चलता है. ड्रग्स लेने वाले अकसर शराब के भी आदी होते हैं."

अगर बढ़ती उम्र में गांजे का सेवन किया जाता है तो मस्तिष्क में सेरोटोनिन की मात्रा कम होने लगती है. इससे भावनात्मक असंतुलन पैदा होता है और नोरेड्रेनलीन की मात्रा दिमाग़ में बढ़ने लगती है जिससे तनाव बढ़ने का जोखिम बढ़ता जाता है या व्यक्ति तनाव की स्थिति का मुक़ाबला ठीक से नहीं कर पाता.

Haschisch Anbau im Gewächshaus Niederlande
तस्वीर: dpa

इसके अलावा गांजे से बना स्कंक बहुत ज़्यादा ख़तरनाक है और इससे शिज़ोफ्रेनिया होने का ख़तरा भी बढ़ जाता है. लंदन के किंग्स कॉलेज में मानसिक रोग संस्थान के शोध में सामने आया है कि स्कंक लेने वालों के मस्तिष्क में टेट्रा हाइड्रो कैनेबिनॉल नाम का रासायनिक पदार्थ बहुत बढ़ जाता है और इससे मानसिक बीमारियां होने का ख़तरा भी.

ग्योट्ज़ बताते हैं, "कई नए तरह के उत्पाद बाज़ार में हैं जो बहुत ही आक्रामक तरीक़े से बेचे जाते हैं और अकसर इंटरनेट के ज़रिए. जांच या प्रतिबंधों को अनदेखा करके यह व्यापारी बहुत तेज़ी से काम करते हैं."

इसी तरह गांजे के कई अन्य उत्पाद हैं जो स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं. अब तक के शोधो से यह भी सामने आया है कि गांजे के पौधे का इलाज में भी इस्तमाल होता है. कैंसर, एड्स और नॉशिया जैसी बीमारियों में इसका इस्तेमाल होता है, लेकिन ज़्यादा मात्रा में लेने पर इसके प्रभाव बहुत हानिकारक होते हैं क्योंकि टेट्राहाइड्रोकैनेबिनॉल या टीएचएस की ज़रा भी ज़्यादा मात्रा और इसका बार बार सेवन मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरे प्रभाव डालता है.

कैनेबिस, मैरियुआना या गांजा के नाम से जाना जाने वाला यह पौधा मूल रूप से मध्य और दक्षिण एशिया में पाया जाता है और नशे के अलावा गांजे के अन्य इस्तेमाल अलग अलग समाजों में हज़ारों साल से चले आ रहे हैं.

रिपोर्टः आभा मोंढे

संपादनः ए कुमार