गांव से राष्ट्रपति भवन तक का सफर
२२ जुलाई २०१२प्रणब मुखर्जी के लिए राष्ट्रपति का पद एक सफल करियर का चरम है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो. आरके जैन कहते हैं, "इस समय वे इस पद के लिए सबसे सक्षम शख्सियत हैं. उनकी छवि की वजह राजनीति में उनका संयम और समझौता करने का प्रयास है. यह उन्हें लोकप्रिय बनाता है." जिन राजनीतिक पदों पर 76 वर्षीय प्रणब मुखर्जी रहे हैं, उनकी सूची लंबी है. कानून और इतिहास की पढ़ाई करने वाले मुखर्जी देश के वित्त और विदेश मंत्री रहे चुके हैं. 2004 से 2006 तक वे भारत के रक्षा मंत्री भी थे. उन्होंने अमेरिका के साथ भारत के लिए महत्वपूर्ण परमाणु करार की तैयारी में अहम भूमिका निभाई.
उनका करियर जितना भी सफल लगे, उसमें दरारें भी हैं. लेकिन वे हमेशा गिरकर फिर से उठने वाले राजनीतिज्ञ रहे हैं. मुखर्जी 1969 में राज्य सभा के सदस्य के रूप में पहली बार राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हुए. बहुत सारी समस्याओं को निबटाने में उनकी भूमिका के कारण कांग्रेस पार्टी में उन्हें संकटमोचक समझा जाता है.अपनी पार्टी में वे हमेशा विवादों से परे नहीं रहे हैं. इसलिए वे मीडिया के लिए भी बहुत दिलचस्प हैं.
गुरु इंदिरा, गुरु प्रणब
मुखर्जी ने हाल ही में एक टीवी चैनल से कहा, "मैं आज जो भी हूं वह मैंने इंदिरा गांधी से सीखा है, मेरी गुरु." भारत की पूर्व प्रधानमंत्री ने युवा रणणीतिकार को केंद्र में बुलाया और उन्हें गढ़ा. वे उनकी काबलियत और निष्ठा की कायल थीं. 46 साल की उम्र में उन्होंने 1982 में मुखर्जी को देश का वित्त मंत्री बनाया. लेकिन 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के साथ समस्या हो गई. कहा जाता है कि राजीव गांधी ने उनसे पूछा कि अगले चुनावों तक देश की अंतिरम बागडोर किसे संभालनी चाहिए तो उन्होंने खुद की तरफ इशारा किया. लेकिन राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई और प्रणब मुखर्जी को दरकिनार कर दिया गया.
1986 में निराश होकर प्रणब मुखर्जी ने अपनी पार्टी समाजवादी राष्ट्रीय कांग्रेस बना ली, लेकिन उसे बहुत समर्थन नहीं मिला. अत्यंत धर्मपरायण मुखर्जी के लिए वे बुरे दिन थे, उनकी राज्यसभा की सदस्यता भी जाती रही. हालात 1989 में सुधरे जब प्रणब मुखर्जी वापस कांग्रेस में लौटे. राजीव गांधी की मौत के बाद वे राजीव गांधी की विधवा सोनिया गांधी के करीबी समर्थक बन गए. इस बीच कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी उन्हें अपना गुरु कहती हैं.
समारोही राष्ट्रपति
भारत में राष्ट्रपति का पद समारोही होता है. ताकत सरकार के प्रमुख के रूप में प्रधानमंत्री के हाथों होती है. लेकिन भारत में राष्ट्रपति औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री को नियुक्त करता है और पद और गोपनीयता की शपथ दिलाता है. प्रो. आरके जैन कहते हैं, "अटकलें लग रही हैं कि 2014 से पहले आम चुनाव हो सकते हैं." किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में राष्ट्रपति का पद महत्वपूर्ण हो सकता है.
मुखर्जी की पूर्वगामी राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को कमजोर राष्ट्रपति माना गया. उनके पहले राष्ट्रपति रहे एपीजे अब्दुल कलाम सीधे सादे आचरण, लोगों के साथ अपनी नजदीकी और युवाओं के लिए नई परियोजनाओं क कारण अत्यंत लोकप्रिय हैं. समय बताएगा कि प्रणब मुखर्जी अपने करियर के अंतिम चरण में भारतीय राजनीति पर क्या छाप छोड़ते हैं. उन्होंने 2014 में राजनीति से संन्यास लेने की बात कही थी, लेकिन अब उन्हें थोड़ा इंतजार करना होगा. पांच साल बाद ही वे पढ़ाई, बागवानी और संगीत के अपने शौक को ज्यादा समय दे पाएंगे.
रिपोर्ट: प्रिया एसेलबॉर्न/एमजे
संपादन: ओंकार सिंह जनौटी