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गोरा दिखने का दीवाना भारतीय समाज

२५ जून २०१२

शादी का सीजन हो तो भारत के अधिकतर ब्यूटी पार्लर्स में दुल्हन की एक ही जिद होती है कि बस किसी तरह वो गोरी दिख जाए. दिल्ली से लेकर चेन्नई तक की एक ही कहानी. इसमें उनकी कोई गलती भी नहीं है.

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तस्वीर: www.fairandlovely.in

दिल्ली के व्यस्त ब्यूटी पार्लर में सोनिया के पास जितनी भी लड़कियां ब्राइडल मेकअप के लिए आती हैं उसमें से एक भी नहीं कहती कि जो उनका रंग है उसे वैसा ही रहने दो. सभी कम से कम दो शेड्स गोरी दिखना चाहती हैं. सोनिया कहती हैं, "मैं उन्हें दोष नहीं देती. हमारे आस पास देखिए जो भी फिल्म स्टार हैं, मॉडल्स हैं, हमारी खूबसूरती के आदर्श, सभी गोरे हैं. हम ऐसे ही परिवेश में बड़े हुए हैं जहां गोरापन सुंदरता का परिचायक है."

सोनिया को अपने परिवार की याद है जब उनकी एक रिश्तेदार लड़की के सांवला होने पर दुख जता रही थी. उन्होंने कहा था कि 'लड़की और काली, इससे बुरी किस्मत कोई हो ही नहीं सकती.' और यह कहानी आम है. हर घर में एक न एक महिला ऐसी होती है जिसकी नजर घर की लड़कियों की सुंदरता पर टिकी होती है, उनके मोटापे, कपड़े, खराब चोटी पर ताने कसे जाते हैं और अगर लड़की सांवली हुई तो इन तानों में और तीखापन आ जाता है.

Screenshot www.fairandhandsome.net Fairness Creams
तस्वीर: www.fairandhandsome.net

एक तरह से कहा जा सकता है कि भारत में जहां लोगों की नजर गोरी चमड़ी पर पड़ती है, वहीं वह गोंद की तरह चिपक जाती है. लड़का सांवला हो तो चलता है लेकिन लड़की गोरी ही होनी चाहिए.

टीवी पर क्रीम्स की एडवरटाइजमेंट बार बार याद दिलाती हैं कि फलां क्रीम का इस्तेमाल करने से आप गोरी हो जाएंगी और इससे आपका जीवन, करियर और संभावनाएं एकदम खिल उठेंगी.

फेयर एंड लवली का विज्ञापन जिसमें हफ्तों में ही गोरेपन का वादा सड़कों के किनारे बड़ी बड़ी होर्डिंग्स से लेकर अखबार तक में चस्पा होता है. हिन्दुस्तान यूनिलिवर लिमिटेड का यह उत्पाद 1978 से मार्केट में है और घर घर में इसकी खपत है.

इसके अलावा पॉन्ड्स, लैक्मे और अन्य कंपनियों के भी उत्पाद हैं. इतना ही नहीं अब भारत की कंपनी इमामी लिमिटेड ने फेयर एंड हैंडसम उत्पाद पुरुषों के लिए 2005 में शुरू किया. लॉरिएल सहित अंतरराष्ट्रीय कंपनियां ओरिफ्लेम और एवॉन गोरा करने वाले उत्पादों के साथ भारतीय बाजार में आ चुकी हैं. अनुमान है कि 2011 में इन्होंने 45 करोड़ डॉलर का व्यापार किया. इनका बाजार हर साल 15 से 20 फीसदी बढ़ रहा है.

कितने ही मध्यमवर्गीय लोग फेयर एंड लवली का इस्तेमाल कर रहे हैं. गोरे होने की चाह समाज में कुछ इस तरह से गुंथी हुई है कि उससे निकलना बहुत मुश्किल है. विज्ञापन मानक परिषद के महा सचिव एलेन कोलाको कहती हैं, "विज्ञापन समाज का आईना होते हैं. लेकिन गोरा होने पर अच्छी नौकरियां और पति मिलने का वादा बकवास है. कई विज्ञापन शिकायत के बाद हटाए गए हैं."

एक बहुत ही बुरा विज्ञापन जिसके बारे में कोलैको बताते हैं, इसमें एक महिला दिखाई गई है जो अपने साथी का ध्यान नहीं खींच पाती.इसके बाद वह एक क्रीम इस्तेमाल करती है जिससे उसके जननांग गोरे हो जाते हैं और इसी के साथ साथी का ध्यान भी उसकी ओर आकर्षित हो जाता है. इस विज्ञापन को बाद में हटा लिया गया. "लेकिन यह विज्ञापन इस बात का संकेत है कि समाज में गोरे नहीं होने से जुड़ी कुंठाएं कितने गहरे घर किए हुए हैं."

Indien Frauen Handwerk Kunst
रंग पर टिका समाजतस्वीर: DW

दिल्ली यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्री जानकी अब्राहम कहती हैं, "हमारे देश में कई चीजें हुईं जिनके कारण गोरी त्वचा को हाई क्लास का दर्जा मिलता गया.पारंपरिक जातिवाद में गोरा रंग ब्राह्मणों का माना जाता रहा है और अभी भी इसे समाज में ऊंचा दर्जा है. और पूर्वाग्रह ब्रिटिश राज के कारण आया जब गोरा रंग सत्ता और ताकत से जुड़ गया."

हिंदुस्तान युनिलिवर कंपनी के प्रवक्ता कहते हैं कि सुंदरता की परिभाषा हर समाज में अलग अलग होती है. एशिया में लोग गोरी चमड़ी चाहते हैं और यूरोप या अमेरिका में लोग ब्राउन होने सन स्टूडियो में जाते हैं.

लेकिन अब्राहम कहती हैं कि गोरा होने की चाह टैन होने से अलग है. "यह बहुत ही घातक, खतरनाक है. और इस विचारधारा में गहरे तक नस्लवाद की भावना है. त्वचा के रंग का भारत में बहुत गंभीर असर होता है. हो सकता है आपको घर में कम खाना मिले, अलग तरह के कपड़े और खिलौने भी."

दिल्ली में त्वचा रोग विशेषज्ञ रश्मि सरकार कहती हैं, "सामान्य तौर पर गोरा दिखाने वाले उत्पाद नुकसानदायक नहीं होते लेकिन जो शरीर में मेलानिन के पिगमेंट कम करते हैं वह नुकसान पहुंचा सकते हैं. इन्हें खरीदना बिलकुल आसान है. न तो आपको किसी डॉक्टर की पर्ची की जरूरत होती है और न ही किसी और चीज की, लेकिन आप अगर लंबे समय तक इन्हें इस्तेमाल करते रहें तो मुश्किल हो सकती है."

प्रिया शर्मा नई दिल्ली में प्रकाशन उद्योग में काम करती हैं. इस तरह के उत्पाद इस्तेमाल करने से उनके चेहरे पर सफेद धब्बे हो गए. उनकी डॉक्टर का कहना है कि इन्हें निकलने में कई महीने लगेंगे. सरकार कहती हैं कि "लोगों में इन उत्पादों के साइड इफेक्ट्स के बारे में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है. और खूबसूरती का त्वचा के रंग से कोई लेना देना नहीं है."

लोगों में जागरूकता कब पैदा होगी और अपने सांवले बेटे के लिए वह गोरी पत्नी ढूंढना कब खत्म करेंगे, पता नहीं. लेकिन तब तक गोरा बनाने वाली क्रीमों का बाजार फलता फूलता रहेगा.

रिपोर्टः आभा मोंढे (डीपीए)

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन