गोरे रंग के लिए
१९ अक्टूबर २००९जब सिमी सिंह छोटी थीं तो अकसर उनकी मां उन्हें बाहर जाने से मना करती थीं. इसकी वजह अपनी बेटी को किसी मुश्किल या परेशानी से बचाना नहीं था, बल्कि वह तो उनकी त्वचा को धूप में काला होने से बचा रही थीं. वह नहीं चाहती थीं कि उनकी बेटी लड़कों की तरह सारा दिन धूप में खेलकर सांवली हो जाए. यह कहना है ख़ुद सिमी सिंह का, जो अकसर बचपन में अपनी मां की बात अनसुनी कर देती थीं.
आज इस 25 साल की सॉफ़्टवेयर कंसलटैंट को अफ़सोस है कि उसका रंग सावला है. लेकिन उसे विश्वास है कि उसके पास इसका समाधान है. फ़ेयरनेस क्रीम, जो उन्होंने हाल ही में इस्तेमाल करनी शुरू की है. वह कहती हैं, "मेरी अब शादी होने वाली है और मैं सुन्दर दिखना चाहती हूं. हमारे यहां तो गोरेपन को ही सुंदरता माना जाता है. मैं अभी अपने रंग से संतुष्ट नहीं हूं. जब से मैंने फ़ेयरनेस क्रीम लगानी शुरू की है, लोग मेरी तरफ़ देखने लगे हैं. कुछ तो मेरी ख़ूबसूरती की तारीफ़ भी करने लगे हैं. और इससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ता है."
यह तो रही सिमी सिंह की कहानी. लेकिन सिमी सिंह अकेली नहीं हैं. भारत में बहुत से ऐसे लोग हैं जो दिल में गोरा होने की तमन्ना रखते हैं. और इसके लिए अपने अपने तरीक़े से जतन भी करते हैं. लडकियां ही नहीं, अब तो लड़के भी इस दौड़ में शामिल हो चुके हैं. शादी के विज्ञापनों में भी "फ़ेयर एंड ब्यूटीफुल" यानी "साफ़ और सुन्दर" एक कसौटी बन चुकी है. इसीलिए टेलीविज़न, पत्रिकाओं और सड़क किनारे लगे बड़े बड़े होर्डिंग्स पर आपको गोरा बनाने का दावा करने वाले विज्ञापनों की तादाद बढ़ती ही जा रही है. इन सभी विज्ञापनों में अकसर एक अप्सरा सी सुन्दर और गोरी लड़की को दिखाया जाता है जो कहती है कि उसकी सुन्दरता का राज़ कोई ख़ास फ़ेयरनेस क्रीम है.
जहां पहले सिर्फ़ "फ़ेयर एन लवली" हुआ करती थी, तो वहीं अब लड़कों के लिए "फ़ेयर एन हैन्सम" भी बाज़ार में आ गई है. इतना ही नहीं, अब तो गोरे होने के लिए क्रीम के अलावा साबुन, लोशन, क्रीम और पाउडर जैसी चीज़ें बड़े शहरों में ही नहीं बल्कि छोटी छोटी जगहों पर भी मिलने लगी हैं. मीरा कनिश्क एक मार्केट रिसर्चर हैं और कहती हैं कि गोरे होने की इस होड़ के ऐतिहासिक कारण हैं. उनके मुताबिक़,
"भारत में गोरे रंग का महत्व अंग्रेज़ों के समय से है. गोरे रंग वाले को तभी से श्रेष्ठ माना जाता है. एशियाई देशों के लोगों के गहरे रंग को मेहनत और पसीने से जोड़ा जाने लगा जो वे खेतों में बहाते हैं जबकि गोरे रंग को प्रधानता का पैमाना माना जाने लगा. ये सब चीज़ें सामाजिक स्तर पर शुरू हुईं. धीरे-धीरे लोग गोरेपन को उच्च जीवन शैली और सुदंरता का प्रतीक मानने लगे. "
फ़ेयरनेस क्रीम के इस्तेमाल का कारण चाहे जो हो, लेकिन इसके कुछ साइट इफ़ेक्ट भी होते हैं जो आपकी त्वचा को नुक़सान पहुंचा सकते हैं. स्वीनी विर्दी एक गृहणी हैं और वह फ़ेयरनेस क्रीम के साइड इफ़ेक्ट भुगत चुकी हैं. वह बताती हैं," टेलिविज़न पर फ़ेयरनेस क्रीम के बढ़ते विज्ञापन देखकर मैंने भी इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया. लेकिन दस दिन के अंदर जहां मेरी त्वचा को साफ़ दिखना चाहिए था, वहां उसकी जगह अजीब से निशान पड़ चुके थे. मैं बिल्कुल नहीं चाहती कि मेरी तरह कोई ऐसी बेवकूफ़ी करे. और न ही मैं किसी को "फ़ेयरनेस क्रीम" इस्तेमाल करने की सलाह दूंगी."
भारत जैसे देश में, जहां करोड़ों लोग ज़्यादा से ज़्यादा गोरा दिखना चाहते हैं, वहां स्वीनी की सलाह मानने वाले लोग कम ही दिखते हैं. अब फ़ेयरनेस क्रीम की बढ़ती लोकप्रियता गोरे होने का जुनून है, या फिर एक सामाजिक समस्या का नतीजा है, यह तय करना ज़रा मुश्किल काम है.
रिपोर्टः जैसु भुल्लर
संपादनः ए कुमार