ग्रीनपीस के 40 साल
१५ सितम्बर २०११आयरविंग स्टोव और उनकी पत्नी डोरोथी स्टोव परमाणु परीक्षण के बाद ऊदबिलाव की मौत की खबर से इतने गुस्से में थे कि उन्होंने अपने कनाडा के वैनकूवर स्थित घर से एक अभियान चलाया. पति-पत्नी ने मिलकर एक ग्रुप बनाया जिसका नाम "डोंट मेक ए वेव" रखा. स्टोव दंपति की बेटी बारबरा स्टोव याद करती हैं कि कैसे एक छोटी सी संस्था अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग्रीनपीस बनी. "डोंट मेक ए वेव" कमेटी के बैनर तले लोगों ने अलास्का के एमचिटका द्वीप तक नाव से यात्रा करने का फैसला किया.
इस आंदोलन का नेतृत्व फीलिस कॉरमेक, डोरोथी स्टोव, जिम बोहलेन, बॉब हंटर जैसे युवा कर रहे थे. इन लोगों ने जिस नाव से यात्रा करने की ठानी उसे ग्रीनपीस नाम दिया. साल 1971 में नाव जब जाने को तैयार हुई, तो अमेरिकी सैनिकों ने सभी को गिरफ्तार कर लिया. इस तरह नाव अलास्का तो नहीं पहुंच सकी, पर इसने जो माहौल तैयार किया, उससे अमेरिका को अलास्का में परीक्षण बंद करना पड़ा. गुरुवार को ग्रीन पीस संस्था के 40 साल हो रहे हैं. बाद में "डोंट मेक ए वेव" कमेटी ने अपना नाम बदलकर ग्रीनपीस रख लिया. कुछ साल के भीतर ग्रीनपीस तेजी से दुनिया भर में फैल गई.
दुनिया भर में ग्रीनपीस
ग्रीनपीस संगठन का अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय एम्स्टरडर्म में है. दर्जन भर देशों में ग्रीन पीस का दफ्तर है. लेकिन अधिकारी और संस्थापकों का कहना है कि वैनकूवर के मनोहर पहाड़, समुद्र और जंगल संगठन की शुरुआत के लिए महत्वपूर्ण थे. ग्रीनपीस कनाडा के प्रमुख ब्रूस कॉक्स कहते हैं," ग्रीनपीस समय का उत्पाद था, लेकिन स्थान भी महत्वपूर्ण था. वहां पर्यावरण को लेकर लोगों में जागरुकता थी." लेखक और ग्रीनपीस के संस्थापकों में से एक रेक्स वेयलर कहते हैं, "किसी और जगह ग्रीनपीस का कामयाब हो पाना मुश्किल था.मुझे याद है कि तब यहां जापानी और चीनी समुदाय थी. नौजवानों का आंदोलन चला था उस दौरान.बौद्ध समुदाय, हिंदू समुदाय और नौजवान हिप्पी थे. हम पर्यावरण से जुड़ा आंदोलन चलाना चाहते थे. उस समय सिविल राइट्स, महिला संगठन और शांति संगठन इस आंदोलन से जुड़े थे लेकिन कमी थी तो सिर्फ पर्यावरण से जुड़े लोगों की."
पर्यावरण का दूसरा नाम ग्रीनपीस
ग्रीनपीस संगठन का अशांत इतिहास रहा है. ग्रीनपीस की लोगों को उत्तेजित करने वाले कुछ कामों के लिए पिछले कुछ सालों में तीखी आलोचना भी हुई है. ग्रीनपीस की 40वीं वर्षगांठ पर दुनिया भर से कार्यकर्ता वैनकूवर में इकट्ठा हो रहे हैं. बारबरा स्टोव जिनके माता पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं बताती हैं, "वैनकूवर पर ग्रीनपीस ने अपनी छाप छोड़ी है." बारबरा के मुताबिक वैनकूवर आज दुनिया में सबसे ज्यादा पर्यावरण के अनुकूल शहरों में से एक है. इस जगह पर अब दुनिया भर से लोग आते हैं. स्टोव दंपति की पहल का नतीजा है कि आज यह संस्था अपने लगभग 20 लाख 80 हजार सदस्यों के साथ दुनिया 40 के मुल्कों में काम कर रही है. इस संस्था को अंतरराष्ट्रीय पहचान 1985 के दशक में मिली, जब फ्रांस की खुफिया एजेंसी ने इस संगठन के नाव रेनबो वारियर पर बम गिराकर नष्ट कर दिया था. असल में, ह्वेल का शिकार रोकने और जहरीले कचरे के फैलाव के विरोध में ग्रीनपीस ने कई देशों में आंदोलन चलाया था, जिसकी सफलता फ्रांस के लिए नुकसानदेह साबित हो रही थी. बहरहाल, सभी जैव-विविधताओं के पालन-पोषण के लिए पृथ्वी के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के अपने मिशन को लेकर ग्रीनपीस आज भी संघर्षरत है.
रिपोर्टः एएफपी / आमिर अंसारी
संपादनःएन रंजन