चश्मा, जो अधकपारी दूर भगाये
२७ मार्च २००८जर्मनी में भी अधकपारी या आधासीसी एक आम बीमारी है. 12 से 16 प्रतिशत लोग इससे पीड़ित हैं. इस बीमारी में सिरदर्द का दौरा पड़ता है. आधे सिर में होने वाले इस दर्द का किसी-किसी को हर हफ़्ते, तो किसी-किसी को साल में केवल एक बार दौरा पड़ता है. सही कारण कोई नहीं जानता. इस बीच भौतिक वैज्ञानिक भी इस बीमारी में दिलचस्पी लेने लगे हैं और कंप्यूटर सिम्युलेशन, अर्थात कंप्यूटर अनुकरणों के द्वारा उसकी तह में जाने का प्रयास कर रहे हैं. कष्टदायी सिरदर्द वाली इस बीमारी का दौरा पड़ने से पहले कुछ लोगों में ऐसी हरकतें भी होती हैं, जिनसे दौरा शुरू होने का भूर्वाभास मिल सकता है. जर्मनी में बर्लिन स्थित सैद्धांतिक भौतिक विज्ञान संस्थान के मार्कुस डालेम इस पूर्भास को ऑरा (Aura) के नाम से पुकारते हैं:
ऑरा के समय हमारी ज्ञानेंद्रियों से जुड़ी लगभग हर प्रकार की स्नायविक उत्तेजनाएं और गड़बड़ियाँ देखने में आती हैं. उदाहरण के लिए, आँखों को लग सकता है कि चेहरे के सामने हवाइयाँ उड़ रही हैं. बोलने के लिए अचानक शब्द नहीं मिलते. कुछ भी हो सकता है. ढेर सारे लक्षण हैं. रोगी को आभास हो जाता है कि आधे घंटे में उसका सिरदर्द शुरू हो जायेगा.
तंत्रिका कोषिकाओं में उद्दीपन
कुछेक वर्षौं से यह भी साफ़ हो गया है कि इस ऑरा, इस पूर्वाभास का संबंध हमारे दिमाग़ से है. दिमाग के पृष्ठभाग की उन कोषिकाओं में सरगर्मी बढ़ जाने से है, जिसे अंग्रेज़ी में ऑक्सीपिटल (Occipital) और हिंदी में अनुकपाल कहते हैं. हमारा दृष्टिकेंद्र भी इसी भाग में पड़ता है. इस भाग की कोषिकाओं में व्याप्त हो रही उत्तेजना तीन मिलीमीटर प्रति मिनट की गति से फैलने लगती है:
रोगी सिद्धांततः वह सब कुछ महसूस करता है, जो उसके चेहरे के पीछे हो रहा है-- कुछ इस तरह, मानो हो रही घटना चेहरे से निकल कर बाहर की ओर जा रही है. यह वास्तव में मस्तिष्क के विज़ुअल कोर्टेक्स (Visual cortex) में पैदा हुई एक लहर है. होता यह है कि विज़ुअल कोर्टेक्स की कोषिकाओं में बढ़ गयी सरगर्मी से प्रभावित भाग ठीक से काम नहीं कर पाता और वह रोगी में यह भ्रम पैदा करता है कि वह कुछ देख रहा है, जो वास्तव में है ही नहीं.
विज़ुअल कोर्टेक्स को हिंदी में दृष्टि-बल्कुट कहेंगे. मस्तिष्क के इस महत्वपूर्ण भाग में पैदा हो गयी अनावश्यक सरगर्मी क़रीब आधा घंटा चलती है और कभी-कभी ख़तरनाक भी सिद्ध हो सकती है. मान लीजिये आप कार चला रहे हैं. उसी समय मस्तिष्क के दृष्टि-बल्कुट में ऑरा कहलाने वाली सरगर्मी पैदा हो जाती है. आपको ठीक उसी समय यह भ्रम हो सकता है कि सामने सड़क बिल्कुल ख़ाली है, जबकि वास्तव में कोई साइकल चालक सड़क पार कर रहा है. बर्लिन के भौतिक शास्त्री कंप्युटर अनुकरणों की सहायता से जानने का प्रयास कर रहे हैं कि यह ऑरा पैदा ही क्यों होता है? अनुकरणों में कंप्युटर पूरे मस्तिष्क की नकल तो पेश नहीं करता , लेकिन, जैसाकि प्रोफ़ेसर एक्केहार्ड श्यौल बताते हैं, उसकी कुछ निर्णायक कार्यविधियों का पता अवश्य देता है:
विज़ुअल कॉर्टेक्स ऐसी नियमित तंत्रिका कोषिकाओं का बना होता है, जो एक बहुआयामी जाल की तरह एक -दूसरे के साथ अनेक बार जुड़ी-बंधी होती हैं. वे काफ़ी दूर-दूर तक एक-दूसरे के साथ संबंद्ध रहती हैं. यदि उनमें से किसी में बिजली की ज़रा-सी भी धारा का स्पंदन होता है, तो पूरे तानबाने में उत्तेजना फैल जाती है.
चश्मा देगा दिमाग़ को फ़ीडबैक
जैसा कि प्रोफ़ेसर श्यौल बताते हैं, बर्लिन के उनके सहयोगी वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क की तंत्रिका कोषिकाओं के बीच संदेश-वहन की क्रिया का अपने कंप्यूटर पर अनुकरण कियाः
हमने जो पाया, वह कुछ इस प्रकार का था. मान लीजिये कि संदेश प्रेषण की यह क्रिया चल रही है और हमारा कंप्यूटर मॉडल एक ऐसे क्षेत्र में है, जहाँ कोई उत्तेजना-लहर नहीं पैदा हो सकती. यानी, हमारा मॉडल एक स्वस्थ व्यक्ति के मस्तिष्क की दशा दिखाता है. लेकिन, यदि अब हम संदेशों के आदान-प्रदान वाले फ़ीडबैक को दबाते हैं, तो सारा मॉडल एक ऐसी अवस्था में पहुँच जाता है, जिसमें उत्तेजना लहरें फैल सकती हैं.
इससे यही संकेत मिलता है कि मस्तिष्क के विज़ुअल कॉर्टेक्स की तंत्रिका कोषिकाओं के बीच फ़ीडबैक में गड़बड़ी ही शायद उस उत्तेजना के लिए ज़िम्मेदार है, जो आधासीसी वाला सिरदर्द पैदा करने में सहायक होती है. अतः कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि यदि कोषिकाओं के बीच संदेशों के आदान-प्रदान वाले फ़ीडबैक को किसी तरह कृत्रिम ढंग से बाहर से पूरा किया जासके, तो इससे सिरदर्द पैदा करने वाली उत्तेजना को टाला जा सकता है. कोलोन के पास युलिश के भौतिक विज्ञान संस्थान के शोधककर्ता इसकी संभावना एक विशेष प्रकार के चश्मे में देख रहे हैं. यह चश्मा सिर के पिछले भाग में लगे ऐसे विशेष संवेदकों की सहायता से काम करेगा, जो मस्तिष्क में चल रही विद्युत धाराओं को मापा करेंगे. मापन-संकेत सामने लगे चश्मे के ऐसे डायोडों को नियंत्रित करेंग, जो रह-रह कर टिमटिमाने वाले प्रकाश-स्पंद पैदा किया करेंगे. ये स्पंद अधकपारी वाले रोगी के अपने ही मस्तिष्क के विद्युत-स्पंदों से संचालित होंगे, किंतु उसे समय के क्षणिक अंतर से दृष्टि-उद्दीपक के तौर पर मिलेंगे. ये उद्दीपक, जैसा कि प्रोफ़ेसर श्यौल बताते हैं, मस्तिष्क की तंत्रिका कोषिकाओं पर अनुकूल प्रभाव डालेंगे:
इस तरह व्यक्ति को बाहर से एक फ़ीडबैक मिलेगा. हम इस विधि का मस्तिष्क की भीतरी उत्तेजना लहर को प्रभावित करने के लिए उपयोग करना चाहते हैं.
आशा यह की जा रही है कि चश्मे से आने वाले प्रकाश-उद्दीपन की सहायता से मस्तिष्क के भीतर पैदा होने वाली ऑरा नमक उत्तेजना को दबाया जा सकेगा और बात सिरदर्द तक नहीं पहुँचेगी. अधकपारी या आधासीसी रोकने वाले इस चश्मे का परीक्षण अब तक केवल स्वस्थ लोगों पर ही किया गया है, किंतु परिणाम उत्साहजनक बताये जा रहे हैं. यह देखना अभी बाक़ी है कि चश्मा आधासीसी वाले रोगियों के सिरदर्द को वाकई रोक पाता है या नहीं.