चिल्का पर गहराती चिंता
५ मार्च २०११अतिक्रमण के कारण प्रदूषण की मार झेलती इस झील के पारिस्थिति तंत्र को ग्लोबल वॉर्मिंग से भी खतरा है. लगातार सिकुड़ते जलक्षेत्र और पानी में घुलते प्रदूषण से इस झील की नैसर्गिक विशेषताओं का लोप होने लगा है. ऐसा लगता है कि लाखों देशी और प्रवासी पक्षियों के इस मशहूर रैन-बसेरे को मानो किसी की नजर लग गई है...
घटती आमद: जनवरी में हुई सालाना पक्षी गणना से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर तो यही कहा जा सकता है. इस साल 18-19 जनवरी को हुई सालाना बर्ड सेंसस के दौरान यहां पक्षियों की संख्या में 13 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई. इसके मुकाबले पिछले साल यहां 924578 पक्षी आए थे जबकि इस साल यहां 804452 पक्षियों की आमद हुई.
चिल्का में स्थित नलबाना बर्ड सेंचुरी तथा उसके आस-पास के क्षेत्र में 18-19 जनवरी (दो दिनों) तक चली इस गणना में लगभग 90 लोगों ने भाग लिया जिनमें वन विभाग के अधिकारी और पक्षी विशेषज्ञ शामिल थे. इस साल होने वाली पक्षी गणना में पक्षियों की कुल 169 प्रजातियां चिंह्नित की गईं जिनमें से 103 प्रवासी पक्षियों की थी. हालांकि पिछले साल 180 प्रजातियों की पहचान की गई थी, जिसमें से 114 प्रवासी पक्षियों की थी.
अधिकारी नहीं है चिंतित: प्रवासी पक्षियों की घटती तादाद पर राज्य वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि दिसंबर में हुई बरसात के कारण इस साल झील में पानी का स्तर बढ़ा हुआ है जिस वजह से शायद प्रवासी पक्षियों की कुछ प्रजातियां यहां नहीं रुकी. इस साल आई कमी को साधारण मानते हुए अधिकारी कहते हैं कि पिछले 5 सालों का रिकॉर्ड दिखाता है कि पक्षियों की तादाद 7 लाख से 9 लाख रहती है जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि इस बार भी इन पक्षियों की संख्या में कोई खास चिंताजनक गिरावट नहीं है.
कुछ स्थानीय पक्षी विशेषज्ञों का कहना है कि अभी भी यूरोप में जाड़े का मौसम है तो उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले दिनों में कुछ और पक्षी यहां आएं. यहां आने वाले प्रवासी पक्षियों की प्रमुख प्रजातियां है, राजहंस (फ्लेमिंगों) हरी और स्लेटी स्टॉर्क, चौड़ी चोंच वाली बतखें तथा स्पूनबिल की कई प्रजातियां, इसके अलावा कई देशज प्रजातियां भी यहां डेरा डालती हैं.
दूर देश से आते मेहमान: साइबेरिया, ईरान, इराक, अफगानिस्तान और हिमालय से हर साल यहां औसतन 10 लाख तक पक्षियों का जमावड़ा लगता है. उत्तरी गोलार्ध की जमा देने वाली सर्दियों से बचने के लिए हर साल अक्टूबर से मार्च तक प्रवासी पक्षी लाखों की तादाद में यहां जमा होते हैं. इन पक्षियों की इतनी बड़ी संख्या चिल्का को भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवासी पक्षियों की सबसे बड़ी शरणस्थली बनाती है.
रिपोर्टः एसएस सिसोदिया(वेबदुनिया)
संपादनः आभा एम