चीन में चमत्कार, दर्जनों खनिक बचाए गए
५ अप्रैल २०१०चीन की खानों में आए दिन दुर्घटनाएं होना और हर साल सैकड़ों लोगों का मारा जाना नई बात नहीं है. नई बात यह है कि चीन के शांची प्रदेश में स्थित च्यांगनिंग शहर के पास हुई इस खान दुर्घटना का अंत अधिकांश खनिकों के लिए किसी चमत्कार से वाक़ई कम नहीं है. दुर्घटना के एक सप्ताह बाद मन ही मन सभी यही मान कर चल रहे थे कि अब शायद ही कोई ज़िंदा मिल सकता है.
लेकिन शुक्रवार को खान के भीतर से ठकठकाने की आवाज़ें सुनाई पड़ीं. बचावकर्मी तुरंत खान के भीतर उतरे. रविवार शाम तक नौ खनिकों को जीवित निकालने में सफल रहे. पिछली पूरी रात बचावकार्य चलता रहा. इस बीच पानी भरी खान से जीवित निकाले गए खनिकों की संख्या कम से कम 114 हो गयी बताई जा रही है. लगभग 40 अन्य की खोज अभी जारी है.
चीन के टेलीविज़न चैनल देशप्रेमी जोशीले संगीत के बीच सारा समय दिखाते रहे कि बचावकर्मी किस तरह खनिकों को खान से बाहर निकाल रहे हैं और उन्हें एम्बुलेंस गाड़ियों से अस्पताल पहुंचाया जा रहा है. एक बार फिर एक दुर्घटना को जो चीन के आर्थिक उत्थान की एक नई व्यथा कथा बनने जा रही थी, लगे हाथ वीरगाथा में बदल दिया गया.
जिस खान में यह दुर्घटना हुई, वह एक सरकारी खान है और अभी बन रही थी. दुर्घटना के ठीक पहले खान के मैनजरों ने खनिकों की चेतावनियों को अनसुनी कर दिया कि खान में पानी भर रहा है. मैनेजरों ने खान को तुरंत खाली करने के बदले खनिकों से डटे रहने और काम जारी रखने को कहा. यह प्रश्न फ़िलहाल कोई नहीं पूछ रहा है कि खान के भीतर से ठकठकाने की आवाज़ शुक्रवार से पहले भी तो हुई होगी, पहले क्यों नहीं सुनी गयी.
बाहर निकाले गये मज़दूर सप्ताह भर से भूखे प्यासे थे. पानी में खड़े थे, पर इस डर से पानी भी नहीं पी रहे थे कि वह गंदा और ज़हरीला होगा. कइयों के शरीर पर छाले पड़ गये थे. हफ्ते भर अंधेरे में रहने के कारण बाहर आने पर आँखें चौंधियाने से बचाने के लिए वे अपने चेहरे ढक लेते थे.
बचावकर्मियों का मानना है कि इतने सारे खनिक पानी के बीच इसलिए जीवित बच पाये, क्योंकि वे खानों में बने ऊंचे मचानों पर खड़े थे और थकान या नींद के कारण गिरने से बचने के लिए अपने आप को सुरंगों की दीवारों से बांध रखा था.
चीन जब से तूफ़ानी गति से आर्थिक विकास कर रहा है, वहां खान दुर्घटनाएं भी तूफ़ानी गति से बढ़ गयी हैं. स्वयं सरकारी आंकड़ों के अनुसार वहां पिछले साल 2,631 लोग खान दुर्घटनाओं में मारे गये. साल 2002 में यह संख्या 6,995 थी. चीनी आर्थिक सफलताओं की चकाचौंध के बीच उसके ग़रीब मज़दूरों के इन बलिदानों को भला कौन याद करता है!
रिपोर्ट: एजेंसियां/राम यादव
संपादन:एस गौड़