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चीन में दूसरे बच्चे को अनुमति

२८ नवम्बर २०१२

तेजी से बूढ़ी हो रही आबादी को देखते हुए चीन के लोगों को दूसरा बच्चा पैदा करने की इजाजत मिलने वाली है. चीन ने आबादी को काबू में रखने के लिए सालों पहले एक बच्चे की नीति बनाई थी.

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तस्वीर: Getty Images

दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन में योजना अधिकारियों ने सरकार को बताया है कि उनकी आबादी तेजी से बुजुर्ग होती जा रही है. बदलाव के जो प्रस्ताव रखे गए हैं, उसके अनुसार अब शहरी परिवारों को दूसरा बच्चा पैदा करने की अनुमति मिल सकेगी. चीन के एक दैनिक ने राष्ट्रीय आबादी और परिवार नियोजन आयोग के प्रमुख जांग वाइकिंग के हवाले से यह रिपोर्ट दी है.

अभी चीन में जो नियम हैं, उसके तहत भी शहरी आबादी में रहने वाले परिवारों को दूसरे बच्चे की इजाजत है, लेकिन शर्त यह है कि मां या बाप का कोई भाई बहन नहीं होना चाहिए. लेकिन अब इस शर्त को खत्म किया जाने वाला है, जिसके बाद इस बात की संभावना है कि शहरी इलाकों में आबादी बढ़ेगी.

चीन ने 1979 में एक बच्चे वाली नीति लागू की थी, ताकि तेजी से बढ़ रही आबादी को काबू किया जा सके. इस वक्त चीन की आबादी 1.34 अरब है और वह दुनिया में पहले नंबर पर है. भारत दूसरे नंबर पर है और उसकी आबादी 1.2 अरब से भी ज्यादा है.

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तस्वीर: Getty Images

जांग ने बताया कि उन्होंने अपने प्रस्ताव सरकार को सौंप दिए हैं. उन्होंने कहा कि अगर बदलाव होता है, तो इसका असर भी धीरे धीरे ही दिखाई देगा.

राष्ट्रपति हू जिनताओ ने नवंबर के शुरू में पार्टी कांग्रेस में इस बात का हल्का सा जिक्र किया था कि किस तरह जन्मदर कम हो रही है. इसके बाद से ही इस बात के कयास लगाए जाने लगे थे कि एक बच्चे वाली नीति में बदलाव किया जा सकता है.

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर चीन की आबादी तेजी से बुजुर्गियत की तरफ बढ़ जाएगी, तो उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिद्वंद्विता में मुश्किल आ सकती है. उनका यह भी कहना है कि इस नीति की वजह से बहुत ज्यादा गर्भपात कराए जा रहे हैं, जिससे समाज में तनाव बढ़ रहा है. इसके अलावा इस नीति की वजह से पुरुषों और महिलाओं का अनुपात भी बदलता जा रहा है.

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तस्वीर: DW

हालांकि चीन में कानूनी तौर पर जबरन गर्भपात मना है लेकिन यह बात भी सब जानते हैं कि जन्मदर पर काबू पाने के लिए चीन में महिलाओं का गर्भपात कराया जाता है. इस साल शानची प्रांत में सात महीने की गर्भवती एक महिला का गर्भपात करा दिया गया, जिसके बाद इस मुद्दे पर बहस तेज हो गई.

कई विशेषज्ञों का कहना है कि इस नीति की अब जरूरत नहीं है क्योंकि अब समीकरण बदल गए हैं.

एजेए/एएम (रॉयटर्स)

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